उमरिया: उमरिया जिले का बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व यूं तो बाघों की दहाड़ के लिए अपनी खास पहचान रखता है, लेकिन अब हाथियों के लिए भी इसकी एक अलग पहचान बन चुकी है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में अब काफी संख्या में हाथी पाए जाते हैं, जिनकी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में एक मखना हाथी भी मिल गया है.
बांधवगढ़ में मखना हाथी
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व मध्य प्रदेश का एक ऐसा टाइगर रिजर्व है जहां काफी संख्या में पर्यटक बाघों का दीदार करने के लिए यहां पहुंचते हैं. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व 1536 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यहां साल 2018 से हाथियों के आने का सिलसिला शुरू हुआ था. अब उनकी संख्या लगभग 60 से 65 तक पहुंच चुकी है.
अधिकारियों की माने तो साल 2018 से ही 40 हाथियों का एक पूरा दल आया. जिसके बाद से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व उन्हें भा गया. अब इसी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में एक मखना हाथी भी पाया गया है. जो की बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के ताला रेंज में अक्सर देखा जाता है. वो लगातार यहां विचरण कर रहा है, और मस्ती के साथ रह रहा है.
मखना हाथी क्या होते हैं ?
आखिर ये मखना हाथी कैसे होते हैं? इसे लेकर बांधवगढ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पी के वर्मा बताते हैं, ''हाथियों में नर और मादा हाथी तो पाए ही जाते हैं, लेकिन इसी में एक तीसरी प्रजाति भी होती है जिसे मखना कहा जाता है. इसकी पहचान यह होती है कि जो नर हाथी होते हैं उनके दांत होते हैं लेकिन ये मखना हाथी मेल हाथी होता है, लेकिन इसके दांत नहीं निकलते या निकलते भी हैं तो इतने छोटे होते हैं कि वो नजर ही नहीं आते हैं.''
''एक तरह से इसे अनुवांशिक वजह भी मान सकते हैं. इन हाथियों में कई खास बातें होती हैं. इन हाथियों के पास ज्यादातर लोग जाना पसंद नहीं करते हैं. वन्य कर्मी भी इनसे दूरी ही बना कर रखते हैं. ज्यादातर केसेस में देखा गया है कि ये झुंड से अलग ही रहते हैं. झुंड का दंतैल हाथी इसे झुंड में रहने नहीं देता है और झुंड से बाहर हटा देता है. इस तरह के हाथी को पहली बार दक्षिण भारत में देखा गया था. वहीं से मखना हाथी की पहचान हुई थी.
मखना हाथी को पार्टनर मिलने में आती है दिक्कत
पी के वर्मा बताते हैं, मखना हाथी को पार्टनर मिलने में भी दिक्कत होती है. मखना हाथी को फीमेल हाथी भी अपने आसपास भी नहीं भटकने देती हैं. जिससे इसे पार्टनर मिलने में भी दिक्कत आती है. यही वजह है कि वो थोड़ा आक्रामक हो जाता है. हालांकि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में जो मखना हाथी देखा गया है उसमें अभी आक्रामकता के कोई लक्षण नहीं देखे गए हैं, वो पूरी तरह से सामान्य बर्ताव कर रहा है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में भरपूर खाना खा रहा है, पानी पी रहा है. हालांकि उस हाथी के हर मोमेंट पर नजर रखी जा रही है.
बांधवगढ़ में कहां से आए हाथी
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हाथी कहां से आए? इसे लेकर जानकार बताते हैं कि हाथियों का ये पुराना और ट्रेडिशनल रूट है. कई साल पहले जब कभी हाथी सेंट्रल इंडिया लैंडस्केप में थे. तब से इन लोगों को पता है कि इनका पुराना रूट कहां और क्या था, और कहां से इनका कॉरिडोर है. ये हाथी झारखंड और छत्तीसगढ़ की ओर से यहां पहुंचे और संजय गांधी टाइगर रिजर्व वाले एरिया से होकर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पहुंच गए. एक तरह से इन्होंने डिस्टरबेंस से परेशान होकर एक नई सेफ जगह तलाशी.
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बांधवगढ़ में मिला पसंदीदा माहौल
हाथियों के एक्सपर्ट बताते हैं कि, ''हाथियों को जहां भी पर्याप्त मात्रा में आहार, पानी और घना जंगल मिलता है तो वह उस जगह को पसंद करते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि आज के समय में जहां किसी तरह का डिस्टरबेंस नहीं रहता, मतलब मानव हस्तक्षेप नहीं रहता है, उस जगह को हाथी बहुत पसंद करते हैं. इसीलिए जैसे ही हाथी बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व पहुंचे उन्हें ये माहौल मिल गया. क्योंकि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व काफी घना जंगल है. यहां मानव हस्तक्षेप बहुत कम है. कई छोटी बड़ी नदियां बहती हैं. हाथियों को यह जगह बहुत सुरक्षित लगती है. यही वजह है कि यहां अब हाथियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है.