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'नवजात बच्चों की देखरेख के लिए मांगी गई रकम दहेज नहीं', पटना HC ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला - Patna High Court - PATNA HIGH COURT

पटना हाईकोर्ट ने दहेज के मामले में एक अलग तरह का फैसला सुनाया है. कोर्ट ने यह पाया कि लड़की वालों से जिन रुपयों की मांग लड़के पक्ष की ओर से गई थी वो नवजात बच्चों की देखरेख के लिए किए गए थे. जिसका उद्देश्य दहेज की श्रेणी में नहीं आता. कोर्ट ने इस आधार पर एक अहम फैसला सुनाया.जानिए क्या कुछ कहा है पटना हाईकोर्ट ने पढ़ें पूरी खबर-

Patna High Court
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 8, 2024, 7:30 PM IST

Updated : Apr 8, 2024, 7:39 PM IST

पटना : बिहार की पटना हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में ये स्पष्ट किया कि यदि पति अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण के लिए पत्नी के पैतृक घर से धन की मांग करता है, तो ऐसी मांग दहेज की परिभाषा में नहीं आती है. जस्टिस विवेक चौधरी ने नरेश पंडित द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकृति देते हुए यह निर्णय सुनाया.

'नवजात बच्चे के पोषण के लिए धन की मांग दहेज नहीं' : याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत अपनी सजा को चुनौती हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता नरेश का विवाह सृजन देवी के साथ वर्ष 1994 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था. इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निचली अदालत के सभी आदेश रद्द कर दिए.

10 हजार रुपए के दहेज का था आरोप :1994 से लेकर इस दौरान उन्हें तीन बच्चे हुए- दो लड़के और एक लड़की. पत्नी ने आरोप लगाया कि उनकी बेटी के जन्म के तीन साल बाद, याचिकाकर्ता ने लड़की की देखभाल और भरण-पोषण के लिए उसके पिता से 10,000 रुपये की मांग की.

'10 हजार रुपए की मांग का उद्देश्य दहेज नहीं': यह भी आरोप लगाया गया कि मांग पूरी न होने पर पत्नी को प्रताड़ित किया गया. मामले पर विचार कर ये पाया कि 10 हजार रुपये की मांग, शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता के बीच विवाह के विचार के रूप में नहीं की गई थी.

हाईकोर्ट ने रद्द किए निचली अदालत के आदेश : इसलिए, आईपीसी की धारा 498ए के तहत यह 'दहेज' की परिभाषा के दायरे में नहीं आता है. हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा के निर्णय और आदेश को रद्द कर दिया.

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Last Updated : Apr 8, 2024, 7:39 PM IST

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