पटना:दीपों के त्योहार दिवाली का हिंदू धर्म में काफी महत्व है. दिवाली के दिन हर घर दीये जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. शास्त्रों में मिट्टी के दीपक को तेज, शौर्य और पराक्रम का प्रतीक माना गया है. जब भगवान श्रीराम चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब अध्योध्यावासियों ने मिट्टी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था. दिवाली पर मिट्टी के दीपक जलाने के पीछे धार्मिक महत्व भी है.
क्यों जलाते हैं मिट्टी के दीये?: मिट्टी के दीपक जलाना ना सिर्फ प्रकृति के लिए अनुकूल है, बल्कि इससे सुख-समृद्धि और शांति भी आती है. इस संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना पंचतत्वों से हुई है. जिसमें जल, वायु, आकाश, अग्नि और भूमि शामिल है. मिट्टी का दीपक भी इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है. मिट्टी का दीपक वर्तमान का प्रतीक माना गया है. जबकि उसमें जलने वाली लौ भूतकाल का प्रतीक होती है. जब हम रुई की बाती डालकर दीप प्रज्जवलित करते हैं तो वह आकाश, स्वर्ग और भविष्यकाल का प्रतिनिधित्व करती है.
दीये का मंगल और शनि ग्रह से है रिश्ता:दीपक की रोशनी शांति का प्रतीक भी मानी जाती है. इसलिए दीपक जलाने से घर में शांति बनी रहती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना गया है. वहीं मंगल को साहस, पराक्रम का प्रतीक माना जाता है. तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है और शनि को न्याय व भाग्य का देवता कहा जाता है. इसलिए दीपक जलाने से मंगल व शनि ग्रह की अनुकूल दृष्टि बनी रहती है. जिससे जीवन में तरक्की, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
दीपक जलाने की परंपरा:दिवाली के मौके पर घरों की चौखट और मुंडेर पर दीपक जलाने की परंपरा सदियों पुरानी है. कई धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है. आचार्य विश्वरंजन ने कहा कि दिवाली का त्यौहार भी अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है. प्रकाश का यह पर्व हमें सीख देता है कि केवल बाहरी चकाचौंध ही नहीं, अपने मन के भीतर भी प्रकाश उत्पन्न करना जरूरी है. हालांकि ये प्रकाश उस दीये का होना चाहिए जिसका दिवाली के त्यौहार में धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है.