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अगर केंद्र सरकार ने मानी पर्यावरणविद सोनम वांगचुक की मांग, तो उत्तराखंड को भी जगेगी ये आस - Sonam Wangchuck

Sonam Wangchuk ends fast, Uttarakhand land law, Uttarakhand Green Bonus लद्दाख में 21 दिन से धरने पर बैठे सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने अपनी भूख हड़ताल मंगलवार को खत्म कर दी. 21 दिन तक सोनम वांगचुक सिर्फ नमक और पानी का सेवन कर रहे थे. धरना खत्म करने के बाद उन्होंने कहा कि पर्यावरण को लेकर उनकी लड़ाई जारी रहेगी. हिमालय भारत के 11 राज्यों तक फैला है. हिमालय का पर्यावरण बचाने और पहाड़ों का दोहन रोकने की सोनम वांगचुक की मांग अगर मान ली जाती है तो, इसका फायदा उत्तराखंड को भी मिल सकता है.

Sonam Wangchuk
सोनम वांगचुक का धरना

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Mar 27, 2024, 7:13 AM IST

Updated : Mar 27, 2024, 10:35 AM IST

देहरादून:लद्दाख में 21वें दिन भूख हड़ताल खत्म करने वाले सोनम वांगचुक की कई मांगे हैं. उनमें में से एक मांग हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण और पहाड़ों के दोहन पर रोक लगाने की भी है. वैसे तो उनकी मुख्य मांग लद्दाख को राज्य का दर्जा दिए जाने और उसे संविधान की 6वीं अनुसूची में शामिल करने की है. लेकिन उनके द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे अगर केंद्र सरकार मानती है तो उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य को भी इसका फायदा मिलेगा. सोनम की कुछ मांग उत्तराखंड में लंबे समय से चली आ रही मांग से मिलती-जुलती है.

सोनम वांगचुक ने 21 दिन बाद भूख हड़ताल खत्म की

सोनम वांगचुक पर बनी थी थ्री इडियट्स फिल्म:प्रसिद्ध पर्यावरणविद्, शिक्षाविद सोनम वांगचुक पर 3 इडियट्स फिल्म बनी थी. आमिर खान ने इस फिल्म में सोनम वांगचुक की भूमिका निभाई थी. वही सोनम वांगचुक 21 दिन तक धरने पर बैठे रहे. 21वें दिन उन्होंने धरना खत्म किया और पीएम मोदी से उनकी मांगें पूरी करने की मांग की. उनकी मांग कई तरह की हैं. वो चाहते है कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा दिया जाए. लद्दाख में संवैधानिक सुरक्षा उपायों की व्यवस्था की जाए.

उत्तराखंड में भू कानून की मांग हो रही है

सोनम वांगचुक की मांग मानी गई तो उत्तराखंड को हो सकता है फायदा:इसके साथ ही वो पर्यावरण को लेकर भी सोनम वांगचुक कई तरह की मांग कर रहे हैं. उनकी मुख्य मांग में 6वीं अनुसूची में लद्दाख को दर्जा देना है. इस मांग के तहत वहां के पहाड़ नदी और सभी चीजों पर एकाधिकार वहां की पंचायतों को होगा. यानी पहाड़ों के लिए जो भी फैसले होंगे, वहीं के लोग उसकी व्यवस्था या रूपरेखा बना पाएंगे. यानी उनका अधिकार उनके क्षेत्र में अधिक होगा.

अलग राज्य बनने के बाद भू कानून में बदलाव होते रहे

उत्तराखंड में भी इसी तरह की मांग लंबे समय से की जा रही है. जिसमें भू कानून और पर्यावरण संरक्षण की मांग के साथ साथ जल और जंगल पर उत्तराखंड के लोगों का ही अधिकार हो. लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई भी ठोस निर्णय नहीं लिया गया है.

भू वैज्ञानिक क्या कहते हैं?

भू वैज्ञानिक क्या कहते हैं:भू वैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक की मांग उनके क्षेत्र के लिए वाजिब है. वो जानते हैं कि कैसे निरंतर ताबड़तोड़ पहाड़ों पर बड़ी परियोजनाओं से हिमालय के क्या हालात हो रहे हैं. आने वाले समय में इनका कितना दुष्परिणाम पहाड़ों में देखने के लिए मिलेगा. उत्तराखंड में भी लम्बे समय से ये मांग उठ रही है कि यहां के भी जल, जंगल और जमीन को बचाने के लिए एक संवैधानिक संरक्षण मिलना चाहिए. मैंने इन पहाड़ों में सालों अध्ययन किया है. मैं जानता हूं कि यहां के पहाड़ अभी इतना दबाव झेलने के लिए नहीं बने हैं. जबकि हम निरंतर पहाड़ों के साथ छेड़छाड कर रहे हैं. इतना ही नहीं भू कानून भी मुझे लगता है इस दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है.

वरिष्ठ पत्रकार की राय

वरिष्ठ पत्रकार क्या कहते हैं:उत्तराखंड को बेहतर तरीके से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत कहते हैं कि सामरिक दृष्टि से जिस तरह से हिमाचल, लद्दाख राज्य हैं, ठीक वैसे ही हमारा उत्तराखंड भी दूसरे देशों की सीमा से जुड़ा है. इसलिए कुछ बातें उत्तराखंड के लिहाज से उनके अनशन में बेहद जरूरी हैं. पर्यावरण के लिए वो लगातार आवाज उठा रहे हैं. हमारे यहां 1200 से अधिक ग्लेशियर हैं. इतना ही नहीं सीमा सुरक्षा और जमीनों से जुड़े मामले में अगर हमारे राज्य को भी इस तरह का संरक्षण मिलता है, तो ये पहाड़ के लिए वरदान होगा. जय सिंह रावत का कहना है कि वांगचुंक की मांग काफी हद तक वैसे तो उनके राज्य के लिए ही है, लेकिन पर्यावरण और पहाड़ों के बचाव में अगर केंद्र कोई रहत उन्हें देता है, तो कल के दिन वो हमारे राज्य और यहां के पहाड़ों और पर्यावरण के लिए भी लागू हो सकता है.
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Last Updated : Mar 27, 2024, 10:35 AM IST

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