बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का आगाज होते ही दल बदलने का एक दौर शुरू हो गया है. कांग्रेस की सत्ता जाने के बाद कई कांग्रेसी नेता बीजेपी में प्रवेश कर रहे हैं. हाल ही में बिलासपुर लोकसभा के बेलतरा में हुए बीजेपी कार्यकर्ता सम्मेलन में सीएम विष्णुदेव साय के सामने कांग्रेस और अन्य दलों के लगभग 15 सौ कार्यकर्ता और पदाधिकारियों ने भगवा चोला ओढ़ लिया. इसी दिन रायपुर में बिलासपुर की पूर्व महापौर और कांग्रेस उपाध्यक्ष वाणी राव ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली. आपको बता दें पार्टी बदलने में छत्तीसगढ़ के नेताओं का पुराना इतिहास रहा है. केंद्रीय नेता हो या फिर राज्य के बड़े चेहरे कई लोगों ने अपने दलों से किनारा किया,लेकिन कुछ समय बाद जब नई पार्टी से मोह भंग हुआ तो वापस अपने खेमे में आ गए.आज कई नेता दोबारा अपनी पार्टियों में राजनीति कर रहे हैं,तो कई नेता ऐसा हैं जिनका कोई आधार नहीं बचा है.
कांग्रेस के लिए क्यों है खतरे की घंटी :लोकसभा चुनाव से पहले नेताओं और समर्थकों के दल बदलने के कारण पार्टियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. लोकसभा चुनाव होने से पहले अब तक हजारों कांग्रेसी बीजेपी की सदस्यता ले चुके हैं.ऐसे में चुनाव में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है.अब जनता के मन में भी सवाल उठने लगे हैं. ये चर्चाएं जोरों पर है कि लगातार टूट रही कांग्रेस के लिए आने वाला समय कैसा होगा.क्या सत्ता पक्ष विपक्ष को पूरी तरह से खत्म कर देगी.क्या लगातार बड़े नेताओं का पार्टी से जाना कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है.इस सभी सवालों का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने राजनीति के जानकारों से राय ली. राजनीतिक जानकर इस तरह के मामलों में कहते हैं कि पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में कई उदाहरण हैं. जिनमें पार्टी छोड़ने के बाद उनका राजनीतिक अस्तित्व ही खत्म हो गया.लेकिन कई नेता ऐसे हैं जिन्होंने दल बदला फिर भी हार का स्वाद नहीं चखा.
पार्टी बदलने पर नहीं मिला सम्मान :राजनीति के जानकार राजेश अग्रवाल का कहना है कि पार्टी बदलना अब साधारण सी बात हो गई है. छत्तीसगढ़ में भी दल बदल का बहुत लंबा इतिहास रहा है. राज्य बनने के बाद जैसा कि आप देखते हैं कि विद्या चरण शुक्ला पहले कांग्रेस में थे, फिर 2003 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में चले गए थे, फिर उन्हें कुछ ऐसा सुझा कि राज्य में बीजेपी की सरकार आ गई तो वो बीजेपी में शामिल हो गए. जब 2003 का चुनाव हुआ तो कांग्रेस हार गई. तब माना गया था कि विद्याचरण शुक्ल की एनसीपी ने 90 विधानसभाओं में अपने प्रत्याशी खड़े किए थे.इस वजह से कांग्रेस की हार हुई.इसके बाद विद्याचरण शुक्ल बीजेपी में चले गए.लेकिन लोकसभा चुनाव हारने के बाद वापस कांग्रेस ज्वाइन कर ली.
करुणा शुक्ला और नंदकुमार साय का भी हाल हुआ बुरा :इसके बाद यही हाल करुणा शुक्ला का भी रहा. वह वर्षों तक बीजेपी में रही. करुणा शुक्ला और विद्या चरण शुक्ला दोनों अपनी पार्टी में वर्षों तक रहकर बड़े-बड़े पद हासिल किए. नंदकुमार साय बीजेपी की सरकार में केंद्र में अच्छे पदों पर रहे. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति के अध्यक्ष भी रहे. अब नंदकुमार साय ने कांग्रेस में जाकर वहां से भी इस्तीफा दे दिया. अभी बीजेपी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया है. इसी तरह इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में रहे आदिवासी नेता अरविंद नेताम कांग्रेस छोड़ बसपा में गए और बसपा से फिर कांग्रेस में आ गए. अब अपनी एक पार्टी हमर राज पार्टी बनाई है. इस तरह से दल बदलने का बड़ा इतिहास रहा है.