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पिता की मौत के बाद छूटी पढ़ाई, शुरु किया बिजनेस, आज करोड़ों का टर्नओवर, जानिए अनिकेत टंडन की कहानी - SUCCESS STORY OF ANIKET TANDON

रायपुर के अनिकेत टंडन ने अपनी मेहनत और लगन से मुकाम हासिल किया है.आईए जानते हैं अनिकेत की सफलता की कहानी.

Success story of Aniket Tandon
अनिकेत टंडन की कहानी (ETV BHARAT CHHATTISGARH)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 11, 2025, 8:13 AM IST

Updated : Jan 12, 2025, 4:10 PM IST

रायपुर : जयपुर की यूनिवर्सिटी से बीटेक की पढ़ाई कर रहे एक युवा ने पिता की मौत के बाद कुछ ऐसा किया, जिससे आज वो कामयाब बिजनेसमैन बन चुका है. इस युवा का नाम अनिकेत टंडन है. अनिकेत का सपना ऑफिसर बनने का था. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. जब अनिकेत अपनी पढ़ाई कर रहा था तो उसके पिता की मौत हो गई. उस वक्त अनिकेत की उम्र 19 साल थी.

पिता की मौत के बाद अनिकेत अपनी पढ़ाई छोड़कर वापस रायपुर आ गया. इसी के साथ अनिकेत के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी भी आ गई. घर पर मां और छोटे भाई की जिम्मेदारी अनिकेत पर थी. फिर बिजनेस करने का मन बनाया, लेकिन अनिकेत के पास पैसा नहीं था. लिहाजा उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के माध्यम से 25 लाख का लोन लिया. इसके बाद जो अनिकेत ने किया, वो किसी करिश्मे से कम नहीं है. लेकिन इससे पहले कि हम आपको अनिकेत के बिजनेस के बारे में बताएं, आईए जानते हैं अनिकेत की सफर कैसा था.

Success story of Aniket Tandon
तिल्दा में डाली चिप्स की फैक्ट्री (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

अनिकेत की सफलता की कहानी : ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान अनिकेत टंडन ने बताया कि मैंने स्कूल की पढ़ाई रायपुर में की. साइंस मैथ्स से बारहवीं पास की. 12वीं परीक्षा पास करने के बाद जयपुर यूनिवर्सिटी में बीटेक के लिए एडमिशन लिया था. पढ़ाई के साथ-साथ यूपीएससी की तैयारी भी कर रहा था. लेकिन इसी बीच साल 2020 में पिता की मौत हो गई.इसके बाद घर की सारी जवाबदारी मुझ पर आ गई. मेरे घर में मेरी मां और मेरा एक छोटा भाई था.

उस समय मेरी उम्र लगभग 19 साल रही होगी. इसके बाद मैंने वहां की पढ़ाई छोड़ दी और वापस रायपुर आ गया.उस समय मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. इसके बाद रायपुर में प्राइवेट यूनिवर्सिटी से बीए की पढ़ाई के लिए अप्लाई किया. इस दौरान मुझे समझ में आया कि अब मैं यूपीएससी नहीं कर पाऊंगा और फिर पढ़ाई के साथ-साथ कुछ जॉब करने का विचार किया.लेकिन कोई जॉब नहीं मिला. फिर मैंने खुद का काम यानी बिजनेस करने का विचार किया.- अनिकेत टंडन, युवा उद्यमी

फूड बिजनेस करने का आया आइडिया : बिजनेस के लिए पूंजी की जरूरत होती है ,जो मेरे पास नहीं थी. फिर ऐसे में आगे क्या करें, इसकी चिंता मुझे सता रही थी. अनिकेत ने बताया कि उन्होंने बिजनेस शुरु करने के लिए मार्केट रिसर्च किया. इस दौरान कई तरह के बिजनेस की जानकारी आई. इसके लिए बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत थी. पैसे हमारे पास नहीं थे. तभी रिसर्च के बाद पता चला कि कोई ऐसा बिजनेस करना चाहिए, जो 12 महीना चले. यह सिजनेबल नहीं होना चाहिए. जिसमें सिर्फ खाने का कोई आइटम ही है, जो हर महीने चल सकता है, इसलिए फूड सेक्टर में काम किया. उसमें भी आखिर किस चीज का काम किया जाए, रिसर्च में यह सोचा कि ऐसी चीज बनाएं जो ब्रांड भी बन जाए और उस काम को बहुत कम लोग यहां कर रहे हों. यह रिसर्च 2021 में शुरू किया था. लगभग 6-7 महीने रिसर्च किया. पूरे छत्तीसगढ़ में घूम घूमकर फीडबैक लिया.

रिसर्च में सामने आई सच्चाई : रिसर्च के बाद पता चला कि लोग जो चिप्स से पैकेट खरीदते हैं , उसमें आधा आलू भी नहीं आता है. उसमें केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. उसे खाने के बाद में बच्चों का पेट खराब हो जाता है. यह अच्छा नहीं है. ये फीडबैक लोगों से मिला. यह भी पता चला कि नए मसाले नहीं आ रहे हैं, वही स्वाद लगातार मिल रहा है. हमने अपने टीम से बात किया कि इसमें आगे क्या कर सकते हैं. एक सवाल उठा कि पहले भी लोग काफी आलू खाते थे, लेकिन उनका पेट खराब नहीं होता था. अब ऐसा क्या है कि जरा सा आलू खाने के बाद पेट खराब हो रहा है तो पता चला कि पैकेट के अंदर जो केमिकल इस्तेमाल किया जा रहा है, उसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है.

नैचुरल चिप्स बनाने की ठानी : अनिकेत ने रिसर्च के बाद नैचुरल चिप्स बनाने का प्लान किया, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी हो और किसी तरह का उसमें केमिकल भी ना हो. इस बीच में 6 महीने क्या बिजनेस करना है, यह रिसर्च किया और उसके बाद डेढ़ साल कैसे बिजनेस करना है, वह रिसर्च किया. इसके बाद टीम ने यम्मी पोटैटो चिप्स लॉन्च किया. अनिकेत बताते हैं कि पहले हम मार्केट से चिप्स लेकर आते थे, उसमें होममेड मसाला मिलाकर पैकिंग कर मार्केट में बेचने जाते थे. इसके अलावा अलग अलग जगह पर स्टाल भी लगाते थे. इस दौरान हम लोगों को फ्री में भी चिप्स टेस्ट कराते थे और उनका फीडबैक लेते थे कि चिप्स में क्या कमी है, क्या किया जा सकता है. लगभग एक लाख लोगों से फीडबैक लिया गया और इस फीडबैक से हमें मॉटिवेशन मिला. इस तरह लगभग डेढ़ साल तक हमने इस प्रोडक्ट की मार्केटिंग की. उस दौरान हम लूज पैकिंग का इस्तेमाल करते थे. बाद में फिर हमने 5 रुपए पैकेट लॉन्च करके डिस्ट्रिब्यूशन पर ध्यान दिया.हर जिले में एक व्यक्ति रखकर काम किया.

कैसे शुरु की मैन्युफैक्चरिंग: अनिकेत ने बताया कि साल 2023 में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत 25 लाख का लोन लिया. जिसमें हमें एक ट्रेनिंग भी दी गई. इसके बाद मैंने चिप्स का प्लांट लगाया और मैन्युफैक्चरिंग शुरू की. हमने बिजनेस को बेहतर तरीके से शुरू किया. हमें नए प्रोडक्ट लॉन्च करने थे और इस बीच हमारी मार्केट डिमांड तेजी से बढ़ गई थी. हम सप्लाई करने की स्थिति में नहीं थे. उस दौरान मात्र 600 किलो का उत्पादन करते थे. लेकिन अब ऑटोमेटिक मशीन लगाने के बाद हमारी कैपेसिटी बढ़ गई है. अनिकत कहते हैं कि इसी बीच मैंने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया की ओर से आईआईएम जम्मू से स्मार्ट बिजनेस डेवलपमेंट डिप्लोमा भी किया.

दोनों चिप्स में क्या है अंतर : अनिकेत से जब पूछा गया कि दूसरों के चिप्स से उनका चिप्स अलग कैसे है तो उन्होंने दावा किया कि दूसरे के चिप्स आप पांच पैकेट खाएंगे तो आपका पेट दुखने लगेगा, लेकिन हमारा चिप्स खाने के बाद आपका पेट खराब नहीं होगा. क्योंकि हम नेचुरल चिप्स बनाते है.जिसमें किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं. हमारे मसाले होममेड हैं. उसमें किसी तरह का भी केमिकल नहीं है. वहीं दूसरी कंपनी के द्वारा एक पैक में 10 से 12 ग्राम चिप्स दिया जाता है जबकि हमारे क्वांटिटी ज्यादा है हम 16 ग्राम चिप्स देते हैं , यही वजह है कि हमारे चिप्स की डिमांड मार्केट में ज्यादा है.

रेट को कैसे दिया कॉम्पटिशन : अनिकेत ने बताया कि इस चिप्स के लिए विशेष प्रकार के आलू की जरूरत होती है. यह आलू हम किसानों के खेत पर जाकर उनसे सीधे खरीदते हैं. हम उनके खेत पर जाते हैं, उनसे डील करते हैं. वहां पर लाइव लोकेशन और फोटो लेते हैं और उसी दौरान कुछ राशि भी उन्हें दे देते हैं. जब आलू तैयार हो जाता है तो उसके बाद हम उसे ले लेते हैं. इसका फायदा यह होता है कि किसान डायरेक्ट हमको आलू देते हैं और उस रेट में देते हैं, जिस रेट में ब्रोकर हमें देता है तो ब्रोकर का कमीशन भी किसान को मिलता है. इससे किसान को अतिरिक्त आय हो जाती है. हमें अच्छे क्वॉलिटी के आलू मिल जाते हैं. इस समय तीन चार राज्यों में ढाई तीन हजार किसानों से कांटेक्ट कर रखा है. हम आलू के बीज भी किसानों को देते हैं, जिन्हें जरूरत होती है.

फैक्ट्री में काम करती हैं महिलाएं : अनिकेत ने बताया कि हमारी फैक्ट्री में खास बात यह है कि हमारे यहां मैनपावर में एक भी मैन नहीं हैं. सब वूमेन काम करती हैं. हमारी 9 फीमेल की टीम है , जो पूरा काम करती है. हम वहां हों या ना हों, ये महिलाएं पूरी मेहनत और ध्यान से उस फैक्ट्री का संचालन करती हैं. इस दौरान कुछ महिलाओं को हमने ट्रेनिंग भी दी है. कुछ को बाहर ट्रेनिंग के लिए भी भेजा है. उन्हें बाहर जाने में थोड़ी दिक्कत हुई, लेकिन आज बेहतर काम कर रही हैं. 2 साल से लगातार वे हमारे यहां काम कर रहे हैं. हमारी फैक्ट्री तिल्दा में है और दूसरी यूनिट रायपुर में लगाने की तैयारी कर रहे हैं. अनिकेत टंडन अपने चिप्स के बिजनेस से सालाना 2 करोड़ का टर्नओवर ले रहे हैं, जो आने वाले दिनों में बढ़ने की उम्मीद है.

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रायपुर : जयपुर की यूनिवर्सिटी से बीटेक की पढ़ाई कर रहे एक युवा ने पिता की मौत के बाद कुछ ऐसा किया, जिससे आज वो कामयाब बिजनेसमैन बन चुका है. इस युवा का नाम अनिकेत टंडन है. अनिकेत का सपना ऑफिसर बनने का था. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. जब अनिकेत अपनी पढ़ाई कर रहा था तो उसके पिता की मौत हो गई. उस वक्त अनिकेत की उम्र 19 साल थी.

पिता की मौत के बाद अनिकेत अपनी पढ़ाई छोड़कर वापस रायपुर आ गया. इसी के साथ अनिकेत के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी भी आ गई. घर पर मां और छोटे भाई की जिम्मेदारी अनिकेत पर थी. फिर बिजनेस करने का मन बनाया, लेकिन अनिकेत के पास पैसा नहीं था. लिहाजा उन्होंने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के माध्यम से 25 लाख का लोन लिया. इसके बाद जो अनिकेत ने किया, वो किसी करिश्मे से कम नहीं है. लेकिन इससे पहले कि हम आपको अनिकेत के बिजनेस के बारे में बताएं, आईए जानते हैं अनिकेत की सफर कैसा था.

Success story of Aniket Tandon
तिल्दा में डाली चिप्स की फैक्ट्री (ETV BHARAT CHHATTISGARH)

अनिकेत की सफलता की कहानी : ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत के दौरान अनिकेत टंडन ने बताया कि मैंने स्कूल की पढ़ाई रायपुर में की. साइंस मैथ्स से बारहवीं पास की. 12वीं परीक्षा पास करने के बाद जयपुर यूनिवर्सिटी में बीटेक के लिए एडमिशन लिया था. पढ़ाई के साथ-साथ यूपीएससी की तैयारी भी कर रहा था. लेकिन इसी बीच साल 2020 में पिता की मौत हो गई.इसके बाद घर की सारी जवाबदारी मुझ पर आ गई. मेरे घर में मेरी मां और मेरा एक छोटा भाई था.

उस समय मेरी उम्र लगभग 19 साल रही होगी. इसके बाद मैंने वहां की पढ़ाई छोड़ दी और वापस रायपुर आ गया.उस समय मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. इसके बाद रायपुर में प्राइवेट यूनिवर्सिटी से बीए की पढ़ाई के लिए अप्लाई किया. इस दौरान मुझे समझ में आया कि अब मैं यूपीएससी नहीं कर पाऊंगा और फिर पढ़ाई के साथ-साथ कुछ जॉब करने का विचार किया.लेकिन कोई जॉब नहीं मिला. फिर मैंने खुद का काम यानी बिजनेस करने का विचार किया.- अनिकेत टंडन, युवा उद्यमी

फूड बिजनेस करने का आया आइडिया : बिजनेस के लिए पूंजी की जरूरत होती है ,जो मेरे पास नहीं थी. फिर ऐसे में आगे क्या करें, इसकी चिंता मुझे सता रही थी. अनिकेत ने बताया कि उन्होंने बिजनेस शुरु करने के लिए मार्केट रिसर्च किया. इस दौरान कई तरह के बिजनेस की जानकारी आई. इसके लिए बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत थी. पैसे हमारे पास नहीं थे. तभी रिसर्च के बाद पता चला कि कोई ऐसा बिजनेस करना चाहिए, जो 12 महीना चले. यह सिजनेबल नहीं होना चाहिए. जिसमें सिर्फ खाने का कोई आइटम ही है, जो हर महीने चल सकता है, इसलिए फूड सेक्टर में काम किया. उसमें भी आखिर किस चीज का काम किया जाए, रिसर्च में यह सोचा कि ऐसी चीज बनाएं जो ब्रांड भी बन जाए और उस काम को बहुत कम लोग यहां कर रहे हों. यह रिसर्च 2021 में शुरू किया था. लगभग 6-7 महीने रिसर्च किया. पूरे छत्तीसगढ़ में घूम घूमकर फीडबैक लिया.

रिसर्च में सामने आई सच्चाई : रिसर्च के बाद पता चला कि लोग जो चिप्स से पैकेट खरीदते हैं , उसमें आधा आलू भी नहीं आता है. उसमें केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. उसे खाने के बाद में बच्चों का पेट खराब हो जाता है. यह अच्छा नहीं है. ये फीडबैक लोगों से मिला. यह भी पता चला कि नए मसाले नहीं आ रहे हैं, वही स्वाद लगातार मिल रहा है. हमने अपने टीम से बात किया कि इसमें आगे क्या कर सकते हैं. एक सवाल उठा कि पहले भी लोग काफी आलू खाते थे, लेकिन उनका पेट खराब नहीं होता था. अब ऐसा क्या है कि जरा सा आलू खाने के बाद पेट खराब हो रहा है तो पता चला कि पैकेट के अंदर जो केमिकल इस्तेमाल किया जा रहा है, उसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है.

नैचुरल चिप्स बनाने की ठानी : अनिकेत ने रिसर्च के बाद नैचुरल चिप्स बनाने का प्लान किया, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी हो और किसी तरह का उसमें केमिकल भी ना हो. इस बीच में 6 महीने क्या बिजनेस करना है, यह रिसर्च किया और उसके बाद डेढ़ साल कैसे बिजनेस करना है, वह रिसर्च किया. इसके बाद टीम ने यम्मी पोटैटो चिप्स लॉन्च किया. अनिकेत बताते हैं कि पहले हम मार्केट से चिप्स लेकर आते थे, उसमें होममेड मसाला मिलाकर पैकिंग कर मार्केट में बेचने जाते थे. इसके अलावा अलग अलग जगह पर स्टाल भी लगाते थे. इस दौरान हम लोगों को फ्री में भी चिप्स टेस्ट कराते थे और उनका फीडबैक लेते थे कि चिप्स में क्या कमी है, क्या किया जा सकता है. लगभग एक लाख लोगों से फीडबैक लिया गया और इस फीडबैक से हमें मॉटिवेशन मिला. इस तरह लगभग डेढ़ साल तक हमने इस प्रोडक्ट की मार्केटिंग की. उस दौरान हम लूज पैकिंग का इस्तेमाल करते थे. बाद में फिर हमने 5 रुपए पैकेट लॉन्च करके डिस्ट्रिब्यूशन पर ध्यान दिया.हर जिले में एक व्यक्ति रखकर काम किया.

कैसे शुरु की मैन्युफैक्चरिंग: अनिकेत ने बताया कि साल 2023 में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत 25 लाख का लोन लिया. जिसमें हमें एक ट्रेनिंग भी दी गई. इसके बाद मैंने चिप्स का प्लांट लगाया और मैन्युफैक्चरिंग शुरू की. हमने बिजनेस को बेहतर तरीके से शुरू किया. हमें नए प्रोडक्ट लॉन्च करने थे और इस बीच हमारी मार्केट डिमांड तेजी से बढ़ गई थी. हम सप्लाई करने की स्थिति में नहीं थे. उस दौरान मात्र 600 किलो का उत्पादन करते थे. लेकिन अब ऑटोमेटिक मशीन लगाने के बाद हमारी कैपेसिटी बढ़ गई है. अनिकत कहते हैं कि इसी बीच मैंने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया की ओर से आईआईएम जम्मू से स्मार्ट बिजनेस डेवलपमेंट डिप्लोमा भी किया.

दोनों चिप्स में क्या है अंतर : अनिकेत से जब पूछा गया कि दूसरों के चिप्स से उनका चिप्स अलग कैसे है तो उन्होंने दावा किया कि दूसरे के चिप्स आप पांच पैकेट खाएंगे तो आपका पेट दुखने लगेगा, लेकिन हमारा चिप्स खाने के बाद आपका पेट खराब नहीं होगा. क्योंकि हम नेचुरल चिप्स बनाते है.जिसमें किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं करते हैं. हमारे मसाले होममेड हैं. उसमें किसी तरह का भी केमिकल नहीं है. वहीं दूसरी कंपनी के द्वारा एक पैक में 10 से 12 ग्राम चिप्स दिया जाता है जबकि हमारे क्वांटिटी ज्यादा है हम 16 ग्राम चिप्स देते हैं , यही वजह है कि हमारे चिप्स की डिमांड मार्केट में ज्यादा है.

रेट को कैसे दिया कॉम्पटिशन : अनिकेत ने बताया कि इस चिप्स के लिए विशेष प्रकार के आलू की जरूरत होती है. यह आलू हम किसानों के खेत पर जाकर उनसे सीधे खरीदते हैं. हम उनके खेत पर जाते हैं, उनसे डील करते हैं. वहां पर लाइव लोकेशन और फोटो लेते हैं और उसी दौरान कुछ राशि भी उन्हें दे देते हैं. जब आलू तैयार हो जाता है तो उसके बाद हम उसे ले लेते हैं. इसका फायदा यह होता है कि किसान डायरेक्ट हमको आलू देते हैं और उस रेट में देते हैं, जिस रेट में ब्रोकर हमें देता है तो ब्रोकर का कमीशन भी किसान को मिलता है. इससे किसान को अतिरिक्त आय हो जाती है. हमें अच्छे क्वॉलिटी के आलू मिल जाते हैं. इस समय तीन चार राज्यों में ढाई तीन हजार किसानों से कांटेक्ट कर रखा है. हम आलू के बीज भी किसानों को देते हैं, जिन्हें जरूरत होती है.

फैक्ट्री में काम करती हैं महिलाएं : अनिकेत ने बताया कि हमारी फैक्ट्री में खास बात यह है कि हमारे यहां मैनपावर में एक भी मैन नहीं हैं. सब वूमेन काम करती हैं. हमारी 9 फीमेल की टीम है , जो पूरा काम करती है. हम वहां हों या ना हों, ये महिलाएं पूरी मेहनत और ध्यान से उस फैक्ट्री का संचालन करती हैं. इस दौरान कुछ महिलाओं को हमने ट्रेनिंग भी दी है. कुछ को बाहर ट्रेनिंग के लिए भी भेजा है. उन्हें बाहर जाने में थोड़ी दिक्कत हुई, लेकिन आज बेहतर काम कर रही हैं. 2 साल से लगातार वे हमारे यहां काम कर रहे हैं. हमारी फैक्ट्री तिल्दा में है और दूसरी यूनिट रायपुर में लगाने की तैयारी कर रहे हैं. अनिकेत टंडन अपने चिप्स के बिजनेस से सालाना 2 करोड़ का टर्नओवर ले रहे हैं, जो आने वाले दिनों में बढ़ने की उम्मीद है.

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Last Updated : Jan 12, 2025, 4:10 PM IST
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