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ऊपरी शिमला में वन भूमि पर कब्जा कर बनाए थे अवैध सेब बागीचे, HC ने कब्जाई जमीन की किस्म बताने के दिए आदेश - Illegal apple orchards in Shimla

Illegal apple orchards in Upper Shimla: ऊपरी शिमला में कुछ प्रभावशाली लोगों ने वन भूमि पर अवैध कब्जा कर सेब के बागीचे स्थापित किए थे. एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर अतिक्रमण हटाने की मांग की थी. कोर्ट ने सरकारी भूमि पर सेब बागीचे और भवन निर्माण करने वाले याचिकाकर्ताओं को दो हफ्ते के भीतर कब्जाई गई भूमि की किस्म बताने के आदेश जारी किए हैं.

Himachal High court
हिमाचल हाई कोर्ट (Etv Bharat फाइल फोटो)

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 15, 2024, 10:33 PM IST

शिमला:एक दशक पहले ऊपरी शिमला में कुछ प्रभावशाली लोगों ने वन भूमि पर अवैध कब्जा कर सेब के बागीचे स्थापित कर दिए. यही नहीं, वन भूमि पर अवैध रूप से पक्के ढांचे भी खड़े कर दिए थे तब एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर अतिक्रमण हटाने की मांग की थी.

उस समय हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सारे अवैध कब्जे हटाने के आदेश दिए थे. मामला वर्ष 2014 का था. अब हाईकोर्ट ने इसी मामले में नए आदेश जारी किए हैं. सरकारी वन भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने से जुड़ी नीति की वैधता को लेकर हाईकोर्ट ने सुनवाई की है. अदालत ने सरकारी भूमि पर सेब बागीचे और भवन निर्माण करने वाले याचिकाकर्ताओं को दो हफ्ते के भीतर कब्जाई गई भूमि की किस्म बताने के आदेश जारी किए हैं.

मामले की सुनवाई हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ कर रही है. खंडपीठ ने अवैध कब्जाधारियों को शपथ पत्र के माध्यम से उपरोक्त जानकारी पेश करने को कहा है. अदालत के आदेशानुसार याचिकर्ताओं को बताना होगा कि उन्होंने जिस सरकारी जमीन पर कब्जा किया है, क्या वो वन भूमि है या शामलात जमीन है अथवा अन्य किस्म की जमीन है?

वर्ष 2014 में एक पत्र से मच गई थी हलचल:

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में कृष्ण चंद सारटा ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम पत्र लिख कर बताया था कि ऊपरी शिमला में कुछ लोगों ने जंगलों को काटकर घर, खेत व बगीचे बना लिए हैं साथ ही पत्र में लिखा कि वन विभाग की मिलीभगत से कब्जाधारियों को बिजली पानी के कनेक्शन भी मुहैया करवा दिए गए हैं. अदालत ने पत्र पर संज्ञान लिया और वन विभाग को समय-समय पर आदेश जारी कर अवैध बागीचों में से सेब के पेड़ों को काट कर वन भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त करवाने के आदेश दिए.

वन विभाग ने कोर्ट के आदेशानुसार वन भूमि से सेब के पेड़ों को काटने का अभियान छेड़ा परन्तु कुछ कब्जाधारियों ने विभिन्न अदालतों में मामले दायर कर इस मुहिम को लटकाने की कोशिश की. इसके बाद हाईकोर्ट ने ऐसे मामले देख रहे न्यायालयों को तय समय सीमा के भीतर वन भूमि पर अवैध कब्जों से जुड़े मामलों को निपटाने के आदेश दिए. कई बार कोर्ट ने वन विभाग को आदेश दिए कि वह तय सीमा के भीतर वन भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त करवाए.

सेब बागीचे काटने के खिलाफ लामबंद हुए थे लोग:

जब बड़े पैमाने पर वन भूमि पर अतिक्रमण के मामले सामने आये और सरकार के इस अभियान के खिलाफ लोग लामबंद होने लगे तब सरकार ने कोर्ट में एक आवेदन दाखिल कर पांच बीघा तक की वन भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए एक पॉलिसी के प्रकाशन की इजाजत मांगी थी. पॉलिसी बनने के बाद इसकी वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. सैकड़ों याचिकाकर्ताओं ने भी विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा उन्हें सरकारी भूमि से बेदखल करने के आदेशों को चुनौती दी है. इन सभी मामलों को एक साथ सुनने से पहले हाईकोर्ट ने सभी पक्षकारों की सहमति से निर्णय लिया कि अदालत पहले सरकार की वर्ष 2002 में जारी उस नीति से जुड़े मामले को सुनेगी, जिसमें सरकार ने अवैध कब्जों को नियमित करने की एकमुश्त योजना लाई थी.

पांच बीघा तक अतिक्रमण को नियमित करने की नीति:

हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर 5 बीघा तक अवैध कब्जे को नियमित करने वाली राज्य सरकार की नीति को ध्यान में रखते हुए आदेश जारी कर कहा था कि प्रार्थियों ने अगर इस नीति के मुताबिक अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए आवेदन दाखिल नहीं किया है तो वह तय समय के भीतर उपयुक्त अथॉरिटी के समक्ष आवेदन दाखिल करें. प्रार्थियों का कहना है कि वे हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम 1954 और राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नीति के मुताबिक वे 5-5 बीघा कब्जाई गयी वन भूमि को नियमित करवाने का हक रखते हैं.

राज्य सरकार ने अवैध कब्जों को नियमित करने के विषय में नीति बनाई है कि अगर किसी व्यक्ति द्वारा वन भूमि पर अवैध कब्जा किया है तो सरकार 5 बीघा तक उस कब्जे को नियमित करने के लिए विचार कर सकती है. इसमें एक व्यवस्था थी कि व्यक्ति विशेष की अपनी जमीन व अवैध कब्जे में ली गई जमीन, ये दोनों मिलाकर 10 बीघा से अधिक नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने अवैध कब्जाधारियों को 5 बीघा से अधिक कब्जाई गयी भूमि को स्वत: छोड़ने के आदेश भी दिए थे. वहीं, अदालत ने यह भी स्पष्ट करने को कहा था कि यदि सरकार की 5 बीघा तक कब्जाई भूमि को नियमित करने वाली नीति को कोर्ट गैरकानूनी ठहराता है तो उन्हें अतिक्रमण वाली जमीन बिना शर्त छोड़नी होगी. अब कब्जाधारियों को दो हफ्ते में शपथ पत्र दाखिल करना है कि कब्जे वाली जमीन की किस्म क्या है.

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