जोधपुर :इजराइल और हिजबुल्ला के बीच जबरदस्त जंग चल रही है. इजराइल के महत्वपूर्ण शहर हाइफा को निशाना बनाया जा रहा है. इसी हाइफा शहर को मारवाड़ के वीरों ने पहले विश्वयुद्ध में आजाद करवाया था, जिससे भारत और इजरायल के रिश्ते आज भी घनिष्ठ हैं. प्रथम विश्वयुद्ध 1914-18 के दौरान इजरायल के शहर हाइफा को तुर्की और जर्मन सेना ने अपने कब्जे में ले लिया था. इस शहर को जोधपुर लांसर के मेजर दलपत सिंह की पलटन ने तलवारों और भालों के दम पर वापस छुड़ाया था. इसके चलते मेजर को हाइफा हीरो की का नाम दिया गया है. इजरायल में 23 सितंबर को हाइफा हीरो दिवस भी मनाया जाता है. वहां के हाइफा चौक में एक शिलालेख भी लगा है. महज 26 वर्ष की उम्र में शहादत देने वाले मेजर दलपत सिंह के प्रति आज भी वहां के लोग कृतज्ञता रखते हैं. दिल्ली के त्रिमूर्ति भवन के सामने भी मेजर दलपत सिंह की मूर्ति लगी है. इसके अलावा लंदन की रॉयल गैलेरी में भी उनकी मूर्ति लगी हुई है.
इसलिए महत्वपूर्ण है हाइफा शहर :जोधपुर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष महेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि बंदरगाह होने की वजह से ब्रिटेन के लिए हाइफा बहुत महत्वपूर्ण शहर था, लेकिन तुर्की और जर्मन सेना ने हाइफा पर कब्जा कर लिया था. आज भी यह शहर इजराइल के चल रहे युद्ध में निशाने पर है. तब ब्रिटिश राज के हुकम पर जोधपुर लांसर सैन्य टूकड़ी जो विश्वयुद्ध में लड़ रही थी, उसे आदेश मिला कि हाइफा को आजाद करवाना है. इस दल का नेतृत्व मेजर दलपत सिंह कर रहे थे. उनके पास हथियारों में तलवार और भाले ज्यादा थे. इनके बूते ही उन्होंने तुर्की और जर्मन सेना से लोहा लेने की ठानी और पहाड़ी पर चढ़ीई शुरू की गई, लेकिन लगातार गोलीबारी से सफल नहीं हुए. इसके बाद उनकी टुकड़ी ने पहाड़ के पीछे से चढ़ना शुरू किया. जर्मन और तुर्की सैनिकों ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी हो सकता है. मेजर दलपत सिंह के नेतृत्व में लड़ाई हुई. मशीनों के सामने तलवारें चली. 23 सितंबर 1918 के दिन कुछ घंटों में ही मेजर दलपत सिंह की पलटन ने ऑटोमन सेना को घुटनों पर ला दिया था, लेकिन इस युद्ध में खुद दलपत सिंह गंभीर घायल हो गए और जीत के बाद वे उसी दिन शहीद हो गए.