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बिहार का एक ऐसा स्कूल, जहां आज भी भिक्षाटन कर गुरुकुल परंपरा निभाते हैं छात्र - Darbhanga Gurukul Tradition

Gurukul Tradition In Darbhanga: गुरुकुल की परंपरा भारत देश में सदियों से चली आ रही है. भारत में प्राचीन पद्धतियों में गुरुकुल की शिक्षा को सर्वोत्तम माना जाता रहा है. आज दरभंगा के लगमा गांव में गुरुकुल की पद्धति कायम है. गांव में जब माथे पर तिलक लगाएं और कंधे पर भिक्षा की झोली लिए दरवाजे पर 'मां भिक्षां देहि' का स्वर सुनते ही महिलाएं हर्षित होकर बटुकों को दान देतीं हैं.

दरभंगा में गुरुकुल परंपरा
दरभंगा में गुरुकुल परंपरा

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 27, 2024, 6:26 AM IST

दरभंगा में गुरुकुल परंपरा

दरभंगा:पहले के जमाने में स्कूल की जगह गुरुकुल हुआ करते थे. जिनमे बच्चे को धर्म शास्त्रों के साथ शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया जाता था. आज बिहार के दरभंगा के लगमा गांव में भिक्षां देहि.. भिक्षां देहि.. आवाज सुनते ही घरों के दरवाजे खुल जाते हैं और माथे पर चंदन टीका लगाए सामने नजर आते हैं बच्चे. चेहरे पर दिव्यता और वाणी में सौम्यता और विनम्रता से भरे ये बच्चे गुरुकुल की पुरानी परंपरा को संजोए हुए है. वेदों और मंत्रों के उच्चारण में पारंगत होकर कोई आइएएस अधिकारी तो अनेक छात्र संस्कृत के प्रकांड विद्वान हैं.

गुरुकुल परंपरा के तहत शिक्षा ग्रहण करते छात्र

भिक्षां देहि की आवाज से खुल जाते हैं घरों के दरवाजे:गुरुकुल के छात्र ब्रह्म मुहूर्त में उठकर तैयार होकर वंदना, आरती-हवन आदि सुबह 10 बजे तक कर 2.30 बजे तक पढ़ाई होती. दोपहर तीन से पांच तक भिक्षाटन करते है. ये सब आसपास के गांव में जाकर "भिक्षां देहि... भिक्षां देहि" भिक्षाटन करते हैं और आवाज सुनते ही घरों के दरवाजे खुल जाते हैं. फिर संध्या वंदन और आरती कर पढ़ाई करते है.

दरभंगा गुरुकुल स्कूल का परिसर

चेहरे पर वेद का तेज झलकता है: संस्कृत में जब ये बच्चे वेदोच्चारण करते हैं तो सुनने वालों के शरीर में भी ऊर्जा पैदा हो जाती है. इनके चेहरे पर संस्कार और वेद का तेज साफ झलकता है. जगदीश नारायण ब्रह्मचर्य आश्रम में पड़ोसी देश नेपाल और बिहार के साथ आसपास के लगभग 50 बटुक (सात से 12 साल के बालक) वेद कर्मकांड की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.

21 हजार का फीस: दरअसल, दरभंगा जिला मुख्यालय करीब 50 किलोमीटर दूर तारडीह प्रखंड के लगमा गांव में साल 1963 में एक श्मशान भूमि पर जगदीश नारायण ब्रह्मचार्या आश्रम की नींव रखी गई. गुरुकुल में बच्चों के अभिभावकों को पूरी पढ़ाई के लिए 21 हजार का फीस लगता है. साथ ही जो गरीब तबके के बच्चे हैं उनके लिए मुफ्त नामांकन की भी व्यवस्था है.

गाय की सेवा में लगे छात्र

गाय की भी करते हैं सेवा:गुरुकुल संचालक, विशाल जी महाराज ने बताया कि संस्थान को चलाने के लिए नित्य दिन भिक्षाटन का ही सहारा लेना पड़ता है. भागवत और कथा वाचन के अलावा कर्मकांड कराने से जो राशि मिलती है, उसे आश्रम के संचालन में खर्च कर दिया जाता है. गुरुकुल के प्रांगण में दो छात्रावास हैं. आश्रम की गायों की सेवा का जिम्मा इन्हीं छात्रों पर है.

गुरुकुल पद्धति से ग्रहण करते हैं शिक्षा:विशाल जी महाराज ने बताया कि "वर्ष 1963 में स्थापित गुरुकुल में आसपास के जिले के छात्रों के साथ पड़ोसी देश नेपाल के छात्र यहां गुरुकुल पद्धति से वेद और कर्मकांड की शिक्षा लेते हैं. इसी प्रांगण में जगदीश नारायण ब्रह्मचार्या आश्रम आदर्श संस्कृत विद्यालय की स्थापना हुई. 1968 में इसी नाम से संस्कृत महाविद्यालय को मान्यता मिली." वर्तमान में परिसर में जगदीश नारायण ब्रह्मचर्याश्रम आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, जगदीश नारायण ब्रह्मचर्याश्रम संस्कृत उच्च विद्यालय तथा जगदीश नारायण ब्रह्मचर्याश्रम संस्कृत विद्यालय जैसी शैक्षणिक संस्थाएं संचालित होती हैं.

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