उत्तराखंड

uttarakhand

ETV Bharat / state

फेफड़े खराब होने पर भी नहीं मानी हार, 'सांसें' खरीदकर जिंदगी का पहिया चलाने को मजबूर मोहसिन - Roorkee Gul Mohsin

Gul Mohsin Running E Rickshaw रुड़की की सड़कों पर ऑक्सीजन लगाकर रिक्शा चलाते बुजुर्ग मोहसिन की जिंदगी में जितना दर्द है, उससे कहीं ज्यादा बड़ा उनका हौसला है. दोनों फेफड़े खराब होने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर मेहनत कर रहे हैं. जानिए क्या है पूरा मामला...

Gul Mohsin Running E Rickshaw
गुल मोहसिन (फोटो- ईटीवी भारत ग्राफिक्स)

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jul 7, 2024, 2:14 PM IST

Updated : Jul 7, 2024, 8:09 PM IST

फेफड़े खराब होने पर भी नहीं मानी हार (वीडियो- ईटीवी भारत)

रुड़की: उधार की सांसें लेकर सड़कों पर ई रिक्शा चलाने को मजबूर एक बुजुर्ग को देख हर कोई हैरत में है. यह बुजुर्ग अपने घर के साथ अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जिनके दोनों फेफड़े खराब हो चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी है. वे अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर मेहनत कर रहे हैं.

ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई रिक्शा चला रहे गुल मोहसिन (फोटो- ईटीवी भारत)

रुड़की शहर में दौड़ती हजारों ई रिक्शाओं के बीच (उधार की सांस) यानी ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई रिक्शा चलाते 62 साल के गुल मोहसिन अलग ही नजर आ जाते हैं. हालांकि, गुल मोहसिन को देखकर हर किसी के मन में सवाल तो उठना लाजिमी है. अलबत्ता आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसे दूसरों का दर्द जानने की फुर्सत है.

रुड़की की सड़कों पर गुल मोहसिन (फोटो- ईटीवी भारत)

वहीं, ईटीवी भारत ने जब गुल मोहसिन से बातचीत की तो जिंदगी की जद्दोजहद के असल मायने निकल कर सामने आए. दरअसल, दोनों फेफड़े खराब होने के चलते गुल मोहसिन को दो वक्त की रोटी के साथ उन्हें अपनी सांसों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का भी इंतजाम करना पड़ता है. हालांकि, जिनकी परेशानियां कम होती है, वो लोग भी आपको सड़क किनारे हाथ फैलाते हुए नजर आ जाते हैं, लेकिन गुल मोहसिन की खुद्दारी और मेहनत के आगे मुश्किलें भी शर्मिंदा हैं.

गुल मोहसिन (फोटो- ईटीवी भारत)

सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की भीड़ में से किसी ने अभी तक आगे बढ़कर उनका दुख व दर्द बांटने की जहमत भी नहीं उठाई है. मोहसिन को रोजाना 400 से 500 रुपए तक की आमदनी में अपना और पत्नी के खाने-पीने के खर्च के अलावा ई-रिक्शा की किस्त भी निकालना होती है. सिलेंडर और दवाई का इंतजाम करना रोटी से भी ज्यादा जरूरी है. फिर भी अपनी हिम्मत नहीं हारे हैं.

बता दें कि रुड़की के पश्चिमी अंबर तालाब मोहल्ला निवासी गुल मोहसिन पहले टेलर का काम करते थे. कपड़े सिल कर अपने परिवार और बच्चों को पालते थे, लेकिन साल 2009 में उन्हें हार्ट अटैक आ गया. इसके बाद कोरोना काल से तो उनकी जिंदगी परेशानियों से घिरती चली गई. दरअसल, गुल मोहसिन के दोनों फेफड़ों ने जवाब दे दिया और इसी कारण पैर से सिलाई मशीन चलाना तो दूर उनके लिए पैदल चलना भी मुश्किल हो गया.

जब तक जिंदगी है, खरीदनी होगी 'सांसें':डॉक्टरों ने मोहसिन को कह दिया है कि जब तक जिंदगी है, उन्हें सिलेंडर से ऑक्सीजन लेनी पड़ेगी. अलबता गुल मोहसिन ने हार नहीं मानी. गुल मोहसिन ने 2 साल पहले लोन लेकर ई रिक्शा का हैंडल थाम लिया. हालांकि, कारोबार हल्का होने की वजह से गुल मोहसिन कुछ दिन पहले दो-तीन किस्त भी अदा नहीं कर पाए.

वहीं, अब गुल मोहसिन ई रिक्शा की किस्त चुकाने के लिए थोड़ी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें किसी से कोई शिकवा नहीं है. गुल मोहसिन के तीन बेटे और दो बेटियां हैं. सभी की शादी हो चुकी हैं. गुल मोहसिन अब अपनी पत्नी के साथ रहते हैं.

ये भी पढ़ें-

Last Updated : Jul 7, 2024, 8:09 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details