रुड़की: उधार की सांसें लेकर सड़कों पर ई रिक्शा चलाने को मजबूर एक बुजुर्ग को देख हर कोई हैरत में है. यह बुजुर्ग अपने घर के साथ अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जिनके दोनों फेफड़े खराब हो चुके हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी है. वे अपनी जिंदगी का पहिया चलाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर मेहनत कर रहे हैं.
रुड़की शहर में दौड़ती हजारों ई रिक्शाओं के बीच (उधार की सांस) यानी ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर ई रिक्शा चलाते 62 साल के गुल मोहसिन अलग ही नजर आ जाते हैं. हालांकि, गुल मोहसिन को देखकर हर किसी के मन में सवाल तो उठना लाजिमी है. अलबत्ता आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसे दूसरों का दर्द जानने की फुर्सत है.
वहीं, ईटीवी भारत ने जब गुल मोहसिन से बातचीत की तो जिंदगी की जद्दोजहद के असल मायने निकल कर सामने आए. दरअसल, दोनों फेफड़े खराब होने के चलते गुल मोहसिन को दो वक्त की रोटी के साथ उन्हें अपनी सांसों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का भी इंतजाम करना पड़ता है. हालांकि, जिनकी परेशानियां कम होती है, वो लोग भी आपको सड़क किनारे हाथ फैलाते हुए नजर आ जाते हैं, लेकिन गुल मोहसिन की खुद्दारी और मेहनत के आगे मुश्किलें भी शर्मिंदा हैं.
सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की भीड़ में से किसी ने अभी तक आगे बढ़कर उनका दुख व दर्द बांटने की जहमत भी नहीं उठाई है. मोहसिन को रोजाना 400 से 500 रुपए तक की आमदनी में अपना और पत्नी के खाने-पीने के खर्च के अलावा ई-रिक्शा की किस्त भी निकालना होती है. सिलेंडर और दवाई का इंतजाम करना रोटी से भी ज्यादा जरूरी है. फिर भी अपनी हिम्मत नहीं हारे हैं.