कांकेर की सिंहवाहिनी देवी की महिमा , दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं दुख, बंगाल के बाद कांकेर में ही दूसरी अद्भुत प्रतिमा - Chaitra Navratri 2024
नवरात्रि पर्व की शुरुआत हो चुकी है. देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है.आज हम आपको बताने जा रहे हैं,कांकेर की सिंहवाहिनी देवी की महिमा. पूरे देश में कोलकता के अलावा सिर्फ कांकेर में ही अद्भुत देवी विराजमान हैं.
कांकेर :नवरात्रि का पर्व पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जा रहा है. बात यदि कांकेर जिले की करें तो जिले में माता की मंदिरों में विशेष सजावट की गई है. कांकेर जिले में स्थित मां सिंहवाहिनी मंदिर में भक्तों को मां दुर्गा और काली का आशीर्वाद एक साथ मिलता है. यही वजह है कि दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा अर्चना के लिए सिंहवाहिनी मंदिर में आते हैं.
क्या है मंदिर का इतिहास :मंदिर को लेकर जानकर बताते है कि सिंहवाहिनी मंदिर का निर्माण तत्कालिन नरेश पदुम देव ने सन् 1876 में करवाया था. जो पत्थर की दुर्लभ मूर्ति है. जिसमें मां दुर्गा एवं काली का चित्रण एक साथ है. जानकारों के अनुसार दूसरी मूर्ति इस तरह की कलकत्ता के अलावा और कहीं नहीं हैं. कांकेर के राजापारा स्थित रियासतकालीन माता सिंहवाहिनी मंदिर में पहले सिर्फ दशहरा के दिन राज परिवार के लोग पूजा करते थे. 1984 में इस मंदिर को सार्वजनिक तौर पर खोला गया. इस मंदिर में जो मूर्ति है वह मां काली और दुर्गा का संयुक्त रूप है. पुराने समय में मंदिर में बलि देने की परंपरा थी,जिसे अब बंद किया जा चुका है.
साल में एक बार ही खुलता था पट :कांकेर शहर का राजापारा सिंहवाहिनी मंदिर धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है. सिंहवाहिनी माता की मूर्ति को राजा भोगदेव ने ओड़िसा के आमपानी घाटी के कालाहांडी से लाया था. बताया जाता है कि माता की मूर्ति जमीन के अंदर गड़ी हुई थी. इस मूर्ति को राजा पदुम देव ने विधि विधान से कांकेर में स्थापित किया. मूर्ति के चारों ओर छोटा सा खपरैलनुमा भवन बनाया गया. माता सिंहवाहिनी की मूर्ति में माता दुर्गा के साथ काली का रूप एक साथ नजर आता है. पहले यहां दशहरा के दिन ही पूजा होती थी. 4 अगस्त 1969 में भानुप्रताप देव की मृत्यु के बाद इस मंदिर को बंद कर दिया गया था. बाद में इसे भक्तों की मांग पर खोल दिया गया.1984 से मंदिर में नवरात्र ज्योति कलश प्रज्जवलित करना शुरू किया गया.
मंदिर के पुजारी के शरीर में विराजित होती थी देवी :ऐसी मान्यता है कि यहां ज्योति कलश के विसर्जन पर देवी पुजारी के शरीर में विराजित हो जाया करती थी. राजापारा का सिंहवाहिनी मंदिर पूर्व में खपरैल का बना था. रखरखाव न होने के कारण जीर्ण अवस्था में मंदिर की ऐसी हालत को देखकर राजापारा के धार्मिक श्रद्धालुओं ने बैठक कर मंदिर को सुधारने का बीड़ा उठाया. सर्वप्रथम 1965 में राजा उदयप्रताव देव से मंदिर की हालत सुधारने के लिए मौखिक वचन लिया था. इसके बाद मंदिर की स्थिति दिनों दिन बेहतर होती गई.