उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

जीआई मैन डॉ. रजनीकांत के प्रयासों से देश की भौतिक संपदा और सांस्कृतिक धरोहर को मिल रही पहचान - GI Man Varanasi

ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI TAG) के प्रणेता पद्मश्री डॉ. रजनीकांत की पहल के बाद देश की भौतिक और सांस्कृतिक धरोहर को विश्वस्तर पर पहचान मिल रही है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में पद्मश्री डॉ. रजनीकांत (GI Man Varanasi) ने अपने अनुभव और विचार साझा किए.

GI Man पद्मश्री डॉ. रजनीकांत.
GI Man पद्मश्री डॉ. रजनीकांत. (Photo Credit: ETV Bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 3, 2024, 6:43 PM IST

ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (GI TAG) की जानकारी साझा करते पद्मश्री डॉ. रजनीकांत . (Video Credit : ETV Bharat)

वाराणसी : भौतिक संपदा और भारत की धरोहर को संभालना बेहद जरूरी है और अगर इनके संरक्षण के साथ इन्हें सुरक्षित रखने के लिए किसी कानून के बनाए जाने के बाद अगर उसके जरिए काम किया जाए तो चीज और बेहतर तरीके से संचालित होती है. हालांकि इन चीजों को ऑपरेट करते हुए देश की संपदा और संस्कृति को सुरक्षित रखने की कवायद कुछ लोग ही कर पाते हैं. ऐसे ही हैं बनारस के जीआई मैन डॉ. रजनीकांत. जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) देश के अलग-अलग राज्यों में ज्योग्राफिकल इंडिकेशन के लिए कई तरह की चीजों को शामिल किया जा चुका है. यह लिस्ट कभी 10 से 12 होती थी, लेकिन आज इनकी संख्या 600 से भी ज्यादा है. इसका श्रेय जाता है वाराणसी के पद्मश्री डॉ. रजनीकांत को.

GI Man पद्मश्री डॉ. रजनीकांत द्वारा की गई पहल. (Photo Credit: ETV Bharat)

ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) हिंदी में इसे भौगोलिक संकेत टैग के नाम से जाना जाता है. जिसे किसी खास क्षेत्र से जुड़े उत्पादों के लिए दिया जाता है. इस टैग से यह पता चलता है कि कोई उत्पाद किसी खास जगह से जुड़ा है. जीआई टैग से उत्पाद की गुणवत्ता और खासियतों को उस जगह की वजह से माना जाता है. यह टैग उत्पाद को दूसरों की नकल से बचाता है और यह भी सुनिश्चित करता है कि सिर्फ़ अधिकृत लोग ही उस उत्पाद के नाम का इस्तेमाल कर सकें. यही वजह है कि इस दिशा में काम करने वाले डॉ. रजनीकांत ने देश के अलग-अलग हिस्सों और अलग-अलग राज्यों से एक-एक करके एक दो नहीं बल्कि 250 से ज्यादा प्रोडक्ट को अपने दम पर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में पूरा करके दर्ज करवाने का काम किया है. जिसकी वजह से इन्हें 2019 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया.

ज्योग्राफिकल इंडिकेशन में यूपी के उत्पाद. (Photo Credit: ETV Bharat)



डॉ. रजनीकांत बताते हैं कि 2007 में उन्होंने इस प्रयास की शुरुआत की थी. उस वक्त उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि आने वाले समय में उनका यह प्रयास बड़ा रूप ले लेगा. उनका कहना है कि भारत में साल 1999 में जीआई टैग को लेकर कानून बनाया गया था और साल 2003 में इसकी प्रक्रिया शुरू हुई. साल 2004 में दार्जिलिंग की चाय को पहला जीआई टैग मिला था. इसके बाद 2007 में उन्होंने इस काम से जुड़कर शुरू की जीआई के लिए लड़ाई. जिसके बाद अब तक भारत में 400 से ज़्यादा चीज़ों को जीआई टैग मिल चुका है.

डॉ. रजनीकांत बताते हैं कि जीआई टैग के अधिकार पाने के लिए चेन्नई के जीआई-डेटाबेस में आवेदन करना होता है. रजिस्ट्री के बाद, यह टैग 10 सालों तक मान्य होता है. इसके बाद इसे रिन्यू करवाना होता है. आज की तारीख में हम 21 राज्यों तक पहुंच चुके हैं. जिसमें अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, सिक्किम, त्रिपुरा, मेंंघालय से लेकर पूरा उत्तर भारत, पूर्वोत्तर और पूर्व का उड़ीसा का जो हिस्सा है वह भी हमारी की यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा है. अभी तक मेरे द्वारा अकेले 250 जीआई को फाइल किया गया है. जिसमें से 149 जीआई ग्रांट हो चुके हैं. उत्तर प्रदेश आज की तारीख में 75 जीआई के साथ देश में सर्वाधिक अंक वाला पहला स्थान का राज्य है. इसी वर्ष हम लोगों ने 60 नए जीआई फाइल किए हैं जनवरी से अभी तक और हमें विश्वास है कि इस वित्तीय वर्ष में 150 जीआई को फाइल करने का हमारा लक्ष्य पूरा होगा. आज अंडमान निकोबार जैसी जहां से सात जीआई की हियरिंग हुई है और वह प्रकाशित होने जा रहा है.

यह भी पढ़ें : बनारस की इस बर्फी से डरते थे अंग्रेज; 80 साल पुराना लाजवाब स्वाद, जबरदस्त डिमांड, GI टैग भी मिल चुका - Tiranga barfi GI tag

यह भी पढ़ें : बनारस की तिरंगी बर्फी और धातु ढलाई शिल्प GI उत्पाद में शामिल, यूपी बना 75 जीआई टैग पाने वाला राज्य - Tricolor Barfi of Banaras

ABOUT THE AUTHOR

...view details