गया: बिहार के गया में थाई बेसिल की खेती हो रही है. थाई बेसिल की खेती न सिर्फ मुनाफे वाली है, बल्कि यह कई बीमारियों में फायदेमंद साबित होती है. खास बात यह है कि यह है इस थाई बेसिल को लोग घरों में भी लगाते हैं. घरों में थाई बेसिल रहने से मच्छर कोसों दूर रहते हैं. इसका उपयोग कई तरह के व्यंजनों को बनाने में किया जाता है.
गया में यहां हो रही थाई बेसिल की खेती: थाई बेसिल फ्लेवरिंग एजेंट का काम करता है. साउथ कंट्री कंबोडिया, लाओस, वियतनाम के अलावा चीन, इटली समेत कई देशों में इसकी काफी डिमांड है. अंतर्राष्ट्रीय स्थली बोधगया में काफी संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं. ऐसे में थाई तुलसी की यहां काफी डिमांड है. डिमांड को देखते हुए विदेशी तुलसी की खेती बोधगया में पहली बार हो रही है.
गया में थाई बेसिल से कमाई (ETV Bharat) कम लागत में ज्यादा मुनाफा: बोधगया के बकरौर गांव में शोभा देवी नाम की महिला थाई तुलसी की खेती कर रही है. थाई तुलसी की खेती लेमनग्रास की खेती की तरह फैलती है. यह कम लागत में ज्यादा मुनाफे वाला सौदा है. महिलाओं के लिए यह एक अच्छा रोजगार है. कुछ रुपये लगाकर वो हजारों की कमाई आसानी से कर सकती हैं.
किसान कर रहे थाई तुलसी की खेती (ETV Bharat) महिला किसान शोभा देवी कर रही खेती: थाई तुलसी की खेती गया की महिला किसान शोभा देवी कर रही है. थाई तुलसी की डिमांड को देखते हुए इसकी खेती फिलहाल एक कट्ठा में शुरू की गई है. वहीं अब कई एकड़ में थाई तुलसी की फसल लगाई जा रही है. बताया जा रहा है कि जिस तरह से लेमनग्रास की खेती की जाती है, लेमनग्रास की तरह ही थाई बेसिल की खेती होती है. थाई बेसिल सुगंधित भी होती है और गुणवत्तापूर्ण भी है.
फ्लेवरिंग एजेंट का करता है काम (ETV Bharat) पवित्र तुलसी से होती है अलग: थाई बेसिल पवित्र तुलसी से अलग बताई जाती है. इसमें कई प्रकार की मेडिसिनल गुणवत्ता है. विदेशियों के बीच थाई तुलसी काफी लोकप्रिय है. विदेशी खाने के विभिन्न डिश में इसका उपयोग करते है. यही वजह है, कि बोधगया में पर्यटन सीजन के शुरू में थाई तुलसी जहां ₹200 प्रति किलो बिकती है. वहीं धीरे-धीरे यह महंगी होकर ₹500 किलो तक बेची जाती है.
विदेशियों ने ही लाकर दिया था बीज: महिला किसान शोभा देवी बताती है, कि उन्हें थाई तुलसी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. विदेशी आते थे और थाई तुलसी की मांग करते थे. वो लोग खेती करते थे, तो कुछ विदेशी आए और थाई तुलसी का बीज उन्हें दिया. जिसकी बाद उसकी खेती की गई. वहीं थाई तुलिस की पूरी फसल को खरीद लिया गया. किसान का कहना है कि उनकी अच्छी बचत हुई थी और आर्थिक स्थिति भी मजबूत आई. विदेशियों के बीच मांग के बाद अब बोधगया के होटलों से भी डिमांड आने लगी है.
200 से 500 रुपये है कीमत (ETV Bharat) "शुरुआत में इसकी कीमत ₹200 प्रति किलो की दर से बेची जाती है. सीजन के अनुसार कीमत में वृद्धि भी होती है. एक कट्ठा में तुलसी लगाने में कुल लागत सिर्फ ₹500 की आती है. मेहनत भी बहुत ज्यादा नहीं होती. एक कट्ठा में कम से कम आधे क्विंटल के आसपास फसल निकल आती है, जिससे अच्छी आमदनी हो जाती है."- शोभा देवी, महिला किसान
सूप बनाने में होता है उपयोग: शोभा देवी बताती है कि विदेशी इसे खाने में, सूप बनाने में उपयोग करते हैं. इसके पत्ते और बीज का उपयोग किया जाता है. कई बीमारियों में भी यह उपयोगी होता है. इसमें कई प्रकार की गुणवत्ता होती है. डिमांड को देखते हुए ही इस विदेशी बेसिल की खेती कर रहे हैं और अब लगातार इसकी खेती को बढ़ावा दी जा रही है. वह पहली किसान है, जो विदेशी बेसिल की खेती कर रही हैं.
डायबिटीज में है कारगर (ETV Bharat) कई बीमारियों में है फायदेमंद:असिस्टेंट प्रोफेसर पीजी ऑफ बॉटनी मगध विश्वविद्यालय के डॉक्टर अमित कुमार सिंह बताते हैं, कि बोधगया में थाई बेसिल की खेती हो रही है, स्वीट बेसिल की यह वेरायटी है. इसका उपयोग व्यापक पैमाने पर विदेशी करते हैं. साउथ कंट्री कंबोडिया, लाओस, वियतनाम के अलावा चीन, इटली समेत विभिन्न देश के लोग इसका उपयोग करते हैं. थाई बेसिल का विदेशी फूड में उपयोग करते हैं. पत्तियों और बीज को फूड, शॉप, नूडल्स चिकन में उपयोग करते हैं.
देता है कम लागत में अच्छा मुनाफा (ETV Bharat) मेडिकल गुणवत्ता से भरपूर: यह थाई बेसिल फ्लेवरिंग एजेंट का काम करता है. इसके पतियों और सीड्स का उपयोग किया जाता है. थाई बेसिल की मेडिकल गुणवत्ता होती है. कई बीमारियों को नियंत्रित करता है. थाई बेसिल जहां होता है, वहां मच्छर नहीं आते हैं. थाई बेसिल विभिन्न मार्कर के डायबिटीज के मरीजों के लिए भी फायदेमंद है.
"डायबिटीज के जो मरीज थाई बेसिल के पतियों को चबाते हैं, यह उनके शुगर लेबल को लो करता है. इस तरह पौष्टिकता, गुणवता को लेकर विदेशियों के बीच यह काफी लोकप्रिय है. वहीं मेडिकल गुणवत्ता को लेकर भी इसकी खासी अहमियत है. खासकर डायबिटीज के मरीजों के लिए यह रामबाण के समान साबित होता है."-डॉ. अमित कुमार सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, मगध विश्वविद्यालय
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