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13 साल की उम्र में जेल जाने वाले 105 साल के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमलाकांत का निधन, राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार - Freedom fighter Kamalakant

संगम नगरी के वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमलाकांत तिवारी ने सोमवार की रात अंतिम सांस ली. 105 साल की उम्र पार कर चुके स्वतंत्रता सेनानी का अंतिम संस्कार मंगलवार को मांडा इलाके में राजकीय सम्मान के साथ किया गया.

संगम नगरी के वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमलाकांत तिवारी ने सोमवार की रात अंतिम सांस ली.
संगम नगरी के वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमलाकांत तिवारी ने सोमवार की रात अंतिम सांस ली. (photo credit etv bharat)

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 18, 2024, 3:40 PM IST

प्रयागराज:संगम नगरी के वयोवृद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कमलाकांत तिवारी ने सोमवार की रात अंतिम सांस ली. 105 साल की उम्र पार कर चुके स्वतंत्रता सेनानी का अंतिम संस्कार मंगलवार को मांडा इलाके में राजकीय सम्मान के साथ किया गया. इस दौरान बुजुर्ग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का अंतिम दर्शन कर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों की भीड़ जुटी रही. मात्र 13 साल की उम्र में जेल जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लंबे समय से बीमार चल रहे थे और उनके निधन की सूचना मिलते ही आसपास के लोग अंतिम दर्शन करने पहुंचे.

अंग्रेजों को चकमा देने में माहिर थे

मांडा के नरवर चौकठा घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया. मांडा में 7 मई 1919 को जन्मे कमलाकांत तिवारी 105 वर्ष की आयु पूरी कर चुके थे. कमलाकांत तिवारी को महज 13 साल की उम्र में ही जेल जाना पड़ा और 6 महीने की कड़ी सजा भुगतनी पड़ी थी. छोटी सी उम्र में आज़ादी की जंग में शामिल होने और जेल की सजा काटने के बाद कमलाकांत की गिनती उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में होने लगी, जो अंग्रेजो को चकमा देने में महारत हासिल कर चुके थे. कमलाकांत के बारे में बताया जाता है कि एक बार जेल जाने के बाद अंग्रेजों के हाथ दोबारा नहीं आए. अपनी फुर्ती की वजह से अंग्रेजो को चकमा देकर भागने के लिए मशहूर हो गए थे.

ट्रेन रोकने के आरोप में भेजा था जेल

कमलाकांत तिवारी जब 13 साल के थे, उसी समय आज़ादी के दीवानों के साथ रहने लगे थे. उसी दौरान 1932 में मेजा इलाके में दिल्ली से हावड़ा जाने वाली ट्रेन को रोकने के लिए साथियों संग रेलवे ट्रैक उखाड़ने गए थे. ट्रैक तोड़ने के दौरान ही किसी की मुखबिरी की वजह से वहां पर अंग्रेज सैनिक पहुंच गए. उसी वक्त पहली और आखिरी बार कमलाकांत अंग्रेजों के चंगुल में फंस गए थे और उन्हें कोड़े मारने के साथ ही 6 महीने जेल की सजा सुनाई गई थी. 6 महीने की सजा काटने के बाद कमलाकांत आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए. कमलाकांत बताते थे कि अंग्रेज सैनिक पिटाई करके अधमरा कर देते थे. उसके बाद चोट पर नमक मिर्च लगाने के साथ ही शरीर में कांटे गड़ाते थे. अंग्रेजों ने जब कमलाकांत को पकड़ा था तो उन्हें भी यातनाएं देने के साथ ही बेरहमी से पीटा गया था.

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