कानपुर: देश भर के आलू उगाने वाले किसानों के लिए कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (वेजिटेबल) से राहतभरी खबर सामने आई है. यहां के वैज्ञानिकों ने आलू की फसल पर शोध करते हुए पी-118 प्रजाति को तैयार किया है, जिसे केवल 60 दिनों में ही उगाया जा सकेगा. वैज्ञानिकों का कहना है, आमतौर पर आलू की फसल 90 दिनों में तैयार होती है. लेकिन, पी-118 किसानों के लिए अब एक ऐसी फसल होगी जो कम समय में अधिक उत्पादन के साथ खेतों में दिखेगी. इससे किसानों को अब आलू के बीज संकट की स्थिति से भी काफी हद तक निजात मिल जाएगी.
सीपीआरआई के वैज्ञानिक पहुंचे फार्मिंग एरिया, खुद देखी फसल: सीएसए के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में तैयार पी-118 फसल को देखने के लिए केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) के वैज्ञानिक खुद पहुंचे. उन्होंने देखा, किसान 60 दिनों में तैयार आलू के पौधे से सात से आठ आलू को निकाल रहे थे. उन्होंने सीएसए के वैज्ञानिकों के इस शोध को सराहा. साथ ही उन्होंने कहा कि अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षण के लिए भेजने की तैयारी कर लें. सभी मानकों पर खरा उतरने के बाद पी-118 वैरायटी को किसानों के लिए कृषि मंत्रालय की ओर से जारी कराया जाएगा, जिससे देशभर में किसान यह प्रजाति उगा सकें.
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जल्दी फसल होगी तैयार, अभी लगते हैं 75 दिन: सीएसए के शोध निदेशक डॉ.पीके सिंह ने बताया, जब आलू की फसल को तैयार किया जाता है तो अधिकतर प्रजातियों में जहां 90 दिनों के अंदर आलू दिखते हैं, वहीं, कई ऐसी भी प्रजातियां हैं जिनमें महज 75 दिनों में आलू आ जाता है. हालांकि, सीएसए के सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में पी-118 प्रजाति में 60 दिनों के अंदर ही सात से आठ आलू आ गए. इसका मतलब है, किसानों को इस फसल से बहुत अधिक उत्पादन मिल जाएगा. जबकि उनका समय भी बचेगा.
सीपीआरआई किसानों तक पहुंचाएगा बीज: शोध निदेशक डॉ.पीके सिंह ने बताया, इस प्रजाति के बीजों को किसानों तक पहुंचाने के लिए सीपीआरआई के वैज्ञानिक अपने स्तर से पुरजोर प्रयास करेंगे. सबसे पहले वैरायटी केंद्र सरकार की ओर से जारी होगी. फिर इसके बीज सीपीआरआई में पहुंचेंगे. सीपीआरआई देश का एक ऐसा संस्थान है, जहां से अधिकतर राज्यों में आलू के बीज पहुंचते हैं. यूपी में भारत का 30 प्रतिशत आलू उगाया जाता है. इसलिए यहां के जो कृषि संस्थान हैं या कृषि विज्ञान केंद्र हैं उनके माध्यम से हम किसानों तक पी-118 के बीज पहुंचाएंगे.
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