रांची:देश की आजादी के ठीक बाद साल 1948 में कनाडा की INDAL कंपनी ने झारखंड और पश्चिम बंगाल की सीमा पर मौजूद मुरी में एलुमिना रिफाइनरी प्लांट की स्थापना की थी. तब हर साल 4 हजार टन एलुमिना का उत्पादन होता था जो 75 वर्षों में बढ़कर प्रति वर्ष 4 लाख टन हो गया है. उत्पादन तब बढ़ा, जब साल 2005 में इस प्लांट को आदित्य बिड़ला ग्रुप ने हिंडाल्को कंपनी के नाम से टेकओवर किया.
1948 में हुई थी एलुमिना रिफाइनरी प्लांट की स्थापना
मुरी प्लांट करीब 334.2 एकड़ में फैला हुआ है. 1948 में जब INDAL नाम के एलुमिना रिफाइनरी प्लांट की स्थापना हुई थी कि तब की तस्वीर में शायद ही आपको कोई पेड़ नजर आए, लेकिन आज एरियल तस्वीर में प्लांट के चारों ओर ग्रीनरी नजर आती है. एक और खास बात है कि इस प्लांट में काम करने वाले 3,921 कर्मचारियों में से 799 स्थायी हैं, जबकि शेष कांट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं. इनमें करीब 90 प्रतिशत कर्मी स्थानीय हैं.
रेड मड को खपाना बड़ी चुनौती
बढ़ते उत्पादन के साथ बॉक्साइट से एलुमिना निकालने के बाद बचे रेड मड नाम के वेस्टेज को खपाना सबसे बड़ी चुनौती बनी रही. अब मुरी प्लांट से निकल रहे रेड मड को सीमेंट फैक्ट्रियों में भेज दिया जाता है. हिंडाल्को कंपनी का दावा है कि लंबे रिसर्च के बाद रेड मड को री-यूज करने का तरीका बहुत हद तक ढूंढ लिया गया है.
कहां हो रहा रेड मड का इस्तेमाल
प्लांट के प्रेसिडेंट/सीईओ सह एलुमिना और केमिकल एक्सपर्ट सौरभ खेड़ेकर ने ईटीवी भारत से बातचीत में रेड मड से उत्पन्न चुनौतियों और समाधान की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि अब इसका इस्तेमाल सीमेंट उद्योग में होने लगा है. बहुत जल्द एनएचएआई के साथ टाईअप कर सड़क निर्माण में भी रेड मड का इस्तेमाल होने लगेगा. इस वेस्टेज से खनन की जा चुकी खदानों को भी भरा जा सकता है.
लाल आपदा से हरी संपदा का सफर
अब सवाल है कि 75 वर्षों से मुरी में संचालित हिंडाल्को एलुमिना रिफाइनरी से निकला रेड मड किस हाल में है. मुरी स्थिति हिंडाल्को का एलुमिना रिफाइनरी प्लांट साल 2019 में तब सुर्खियों में आया था, जब प्लांट से थोड़ी दूरी पर डंप किया जा रहा रेड मड फेंसिंग को तोड़ते हुए आसपास के खेतों में फैल गया था. कई डंपर इसकी जद में आ गये थे.