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यक्षराज जाख देवता मेले के इतिहास में पहली बार हुई अनोखी घटना, एक ही अग्निकुंड में दो पश्वाओं ने किया अंगारों पर नृत्य - dance on burning embers - DANCE ON BURNING EMBERS

केदारघाटी के आराध्य रक्षक यक्षराज जाख देवता के मंदिर में दो दिवसीय जाख मेले का रविवार रात को समापन हो गया है. हालांकि इस बार कुछ अजीब ही देखने को मिला है. नर पश्वा इतिहास में पहली बार, एक अग्गिकुंड में दो पशवा ने नृत्य किया.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 15, 2024, 10:37 AM IST

Updated : Apr 15, 2024, 11:56 AM IST

यक्षराज जाख देवता मेले के इतिहास में पहली बार हुई अनोखी घटना

रुद्रप्रयाग: भगवान जाख देवता के स्थापना काल से लेकर आज तक के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब एक ही अग्निकुंड में दो नर पश्वा पर भगवान यक्ष अवतरित हुए. प्रत्येक वर्ष के बैसाख के दो प्रविष्ट को जाखधार के निकट जाख मंदिर में विशाल अग्निकुंड के दहकते अंगारों पर नृत्य करने की परंपरा है. रविवार को आयोजित कार्यक्रम में उस समय भारी उलटफेर हुआ, जब पूर्व में पूजित यक्ष के पश्वा के अलावा एक अन्य व्यक्ति पर भी यक्ष अवतरित हुए. उन्होंने विशाल अग्निकुंड में लाल-लाल अंगारों पर नृत्य करके लोगों की बलाएं ली. इस अप्रत्याशित दृश्य को देखकर भक्तों की आंखें खुली की खुली रह गईं.

संवत् 1111 से गुप्तकाशी के निकट जाखधार में भगवान जाख देवता का मंदिर अवस्थित है, जहां पर प्रतिवर्ष विशाल अग्निकुंड के धधकते अंगारों पर पशवा नृत्य करके लोगों के सुखमय भविष्य की कामना के साथ-साथ क्षेत्र में सूखाग्रस्त इलाकों में बरसात भी करवाते हैं. प्रतिवर्ष बैसाखी माह के दो प्रविष्ट को इस स्थान पर भव्य जाख मेला आयोजित होता है. प्रातः काल से देर शाम तक हजारों की तादाद में भक्त इस विस्मयकारी दृश्य देखने को अग्निकुंड से कुछ दूरी पर खड़े रहते हैं.

बीते कई वर्षों से नारायणकोटी गांव के पुजारी सच्चिदानंद पर भगवान यक्ष अवतरित होते रहे हैं, जो गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी अग्नि कुंड में एक बार नृत्य करके मंदिर में तनिक विश्राम लेते हैं. इसी दौरान अप्रत्याशित रूप से नाला गांव के एक व्यक्ति पर भगवान यक्ष अवतरित होते हैं और वह विशाल अग्निकुंड में काफी वक्त तक नृत्य करते हैं. हालांकि यह जाख मेले को लेकर इतिहास में पहला घटनाक्रम है, जब एक ही अग्निकुंड में एक ही बार दो-दो यक्ष अवतरित हुए हैं.

दोनों पशवाओं ने सभी भक्तों को आशीर्वाद दिया. हालांकि स्थानीय लोगों ने परंपरा से हटकर किए गए इस कर्म का थोड़ा बहुत विरोध भी किया. इसके काफी देर तक स्थानीय पुजारी, आचार्य और कई गांवों के ग्रामीणों के बीच इस मुद्दे को लेकर खासा विचार-विमर्श भी हुआ.

मंत्र शक्ति से अग्नि होती है प्रज्ज्वलित: गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी नारायणकोटी और कोठेड़ा के ग्रामीणों द्वारा 11 अप्रैल से गोठी का आयोजन किया गया. 13 अप्रैल की रात्रि को लकड़ियों का हवन कुंड बनाकर उस पर मंत्र शक्ति द्वारा अग्नि प्रज्ज्वलित की गई और रात भर जागरण करके भक्तों ने यक्ष के भजन गाए. ये लकड़ियां सुबह तक पूर्ण रूप से जल जाती हैं. काफी लंबे चौड़े अग्निकुंड में दहकते अंगारों के अवशेष रहते हैं.

दो पश्वाओं के नृत्य करने से क्षेत्र में सुगबुगाहट तेज: मेले के दौरान स्थानीय लोगों ने व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से जमकर खरीदारी की और अग्नि कुंड की भभूत को निकालकर प्रसाद स्वरूप अपने घर की ओर ले गए. अग्निकुंड में नृत्य के बाद कुछ देर तक क्षेत्र में बूंदाबांदी जरूर हुई. भगवान यक्ष को बरसात का देवता भी कहा जाता है और पूर्व परंपराओं का संचालन करते हुए इस बार भी अग्निकुंड में नृत्य के बाद कुछ देर के लिए हमेशा की भांति बरसात भी हुई. दो-दो पश्वाओं के अग्निकुंड में नृत्य के बाद से क्षेत्र में कई तरह की सुगबुगाहट शुरू हुई हैं. बहरहाल, अभी स्थानीय लोग और ग्रामीणों में इस मुद्दे को लेकर विमर्श हो रहा है.

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Last Updated : Apr 15, 2024, 11:56 AM IST

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