फर्रुखाबाद :प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का आगाज हो रहा है. इसी के साथ फर्रुखाबाद के ऐतिहासिक राम नगरिया मेले का भी शुभारंभ इसी दिन से हो जाएगा. यह मेला करीब 7 किमी एरिया में लगता है. इसमें लाखों लोगों के जुटने का अनुमान है. इस मेले का अपना पौराणिक महत्व है. यहां एक महीने तक कल्पवास करना होता है. करीब 50 हजार लोग यह कठिन साधना करते हैं. इस दौरान कई कठोर नियमों का पालन करना जरूरी होता है. माना जाता है कि कल्पवास से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसके अलावा ऊर्जा का संचार भी होता है. दूर-दूर से लाखों लोग मेले में पहुंचते हैं.
पौष पूर्णिमा के दिन से शुरू हो रहे इस मेले को मिनी महाकुंभ के नाम से भी जाना जाता है. लाखों कल्पवासी 13 जनवरी से गंगा में स्नान के साथ कल्पवास व्रत की शुरुआत करेंगे. कल्पवासी मां गंगा की रेती पर मेले में बनी राउटी (टेंट) में रहकर सुबह-शाम गंगा में स्नान करते हैं. जिले में सर्वाधिक शिवालय होने की वजह से फर्रुखाबाद को अपराकाशी के नाम से भी जाना जाता है. यहां के पांचाल घाट पर मेले के दौरान लाखों महिला-पुरुषों के अलावा संतों की भीड़ जुटती है. कल्पवास पौष पूर्णिमा से लेकर माघी पूर्णिमा (15 फरवरी) के स्नान तक चलेगा. कल्पवास की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इसके पीछे के कारण कई मान्यताएं हैं.
एक महीने का कल्पवास 100 साल की तपस्या के बराबर :माना जाता है कि कल्पवास करने पर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. ऐसा माना जाता है कि 100 साल तक बिना भोजन तपस्या करने पर जो फल मिलता है, वह कल्पवास करने से ही मिल जाता है. मेले की शुरुआत से पहले तमाम महिला-पुरुष गंगा की रेती पर पहुंचने लगे हैं. उन्होंने कड़ाके की इस ठंड में गंगा रेती पर अपना ठिकाना बना लिया है.
क्या होती है राउटी :मां गंगा की रेती पर बनी राउटी में हजारों कल्पवासी रहते हैं. राउटी तिरपाल और पन्नी से बनाई जाती है. जमीन पर धान की पुआल बिछाई जाती है. इसके बाद तीन तरफ से पर्दा लगाया जाता है. इसी के अंदर कल्पवासी रहते हैं. एक राइटी में 5 से 6 लोग रहते हैं. राउटी में ही उनकी दिनचर्या के सामान रखे रखते हैं. बिस्तर भी रहता है. मेला क्षेत्र में करीब एक लाख राउटी बनाए जाने की संभावना है.
मेले में पड़ते हैं 6 प्रमुख स्नान : कल्पवासी सुबह उठकर मां गंगा मे स्नान करते हैं. आरती भी करते हैं. मेले में 6 प्रमुख स्नान पड़ते हैं. इनमें मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि शामिल हैं. इन सभी स्नानों का अपना अलग-अलग महत्व है. काफी लोग इन अलग-अलग तिथियों पर गंगा स्नान करते हैं, जबकि कल्पवासी इन सभी स्नानों में शामिल होते हैं.
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान, दिन में एक बार खाना :ईटीवी भारत की टीम मेला क्षेत्र में पहुंची. इस दौरान तमाम महिलाओं ने अपने अनुभव साझा किए. मेले में आई कल्पवासी राजरानी, गायत्री देवी, शीला आदि ने बताया कि वह कई सालों से इस मेले में आ रहीं हैं. कल्पवास के दौरान कई कठोर नियमों का पालन करना जरूरी होता है. प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पहले गंगा स्नान करते हैं. इसके बाद राउटी में आकर पूजा-अर्चना करते हैं. संतों का प्रवचन सुनते हैं.
आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यक्रमों में भी शामिल होते हैं. एक महीने तक जमीन पर सोना होता है. घर से राशन लेकर जाते हैं. चूल्हे पर बना भोजन ही खाते हैं. दिन में एक ही बार खाना होता है. परिवार से दूरी रहती है. ब्रह्मचार्य का पालन करना होता है.