प्रयागराज: अथ श्री महाकुंभ कथा पार्ट-1 और पार्ट-2 में अब तक आप लोगों ने समुद्र मंथन की पौराणिक कहानी और प्रयागराज कुंभ के महत्व को जाना. पार्ट-3 में हम आपको ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज की जुबानी बता रहे उस एक महीने की साधना के बारे में जिसे कल्पवास कहा जाता है.
कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का जरिया माना जाता है. संगम पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को कल्पवास कहा जाता है. कहते हैं कि कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिलती है. सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने के फल बराबर पुण्य माघ मास में कल्पवास करने से ही प्राप्त हो जाता है.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज कहते हैं कि कुम्भ मेले के दौरान कल्पवास का महत्व और अधिक हो जाता है. इसका उल्लेख वेदों और पुराणों में भी मिलता है. कल्पवास कोई आसान प्रक्रिया नहीं है. ये एक कठिन साधना है. इसमें पूरे नियंत्रण और संयम का अभ्यस्त होने की आवश्यकता होती है. वीडियो पर क्लिक करके जानिए कल्पवास के नियम और पूरी प्रक्रिया.
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