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बैतूल का ये परिवार 6 पीढ़ियों से बना रहा ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा, गहनों से विशेष श्रृंगार - Betul Eco Friendly Ganesha - BETUL ECO FRIENDLY GANESHA

बैतूल में 364 सालों से यानी 6 पीढ़ियों से एक परिवार लगातार मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बना रहा है. गणेश प्रतिमा खास तरह की मिट्टी, फूलों, फलों, सब्जियों को मिलाकर बनाए प्राकृतिक रंगों से बनती है. इसके बाद गणेश जी को सोने-चांदी के जेवरातों से सजाया जाता है.

Betul Eco Friendly Ganesha
बैतूल का रावत परिवार 6 पीढ़ियों से बना रहा ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 7, 2024, 3:05 PM IST

बैतूल।बैतूल का रावत परिवार सन् 1660 से यानी 364 बरसों से लगातार ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाकर समाज में संदेश दे रहे हैं. बता दें कि गणेशोत्सव और अन्य त्यौहारों पर जो प्रतिमाएं बिकती हैं, हो सकता है वे मिट्टी से बनी हों लेकिन पूरी तरह से ईको फ्रेंडली नहीं होती. प्रतिमाओं पर साज सज्जा के लिए केमिकल युक्त रंग और प्लस्टिक या कांच से बनी चीजों का इस्तेमाल होता है, लेकिन बैतूल जिले की नगरपंचायत बैतूल बाजार का रावत परिवार इस मामले में पूरे देश के लिए एक मिसाल हैं.

बैतूल का रावत परिवार गणेश जी की प्रतिमा बनाते हुए (ETV BHARAT)

एक माह की मेहनत से तैयार करते हैं गणेश प्रतिमा

रावत परिवार के पूर्वज सैनिक के रूप में लगभग 400 साल पहले उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले से बैतूल आकर बसे थे. रावत परिवार ने गणेश उत्सव में सौ फीसदी ईको फ्रेंडली प्रतिमा बनाकर स्थापित करने की शुरुआत 364 साल पहले 1660 में की थी. तब से आज तक हर साल रावत परिवार के सदस्य एक महीने की कड़ी मेहनत के बाद ये खास गणेश प्रतिमा बनाकर स्थापित करते हैं. प्रतिमा के लिए एक पहाड़ी से खास हरी मिट्टी को लाई जाती है. खास होता है प्रतिमा पर रंगरोगन और सजावट का काम.

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साढ़े तीन सदी से चली आ रही परंपरा का निर्वहन

रावत परिवार के सदस्य भिंडी, अभ्रक, सिंदूर, कुमकुम, मिट्टी और अन्य प्रकृतिक फूल पत्तियों से रंग तैयार करते हैं और इन्हीं रंगों का इस्तेमाल प्रतिमा में किया जाता है. सजावट के लिए कागज का इस्तेमाल होता है. वहीं रावत परिवार की विरासत साढ़े तीन सदी पुराने सोने चांदी के जेवरात भगवान गणेश की इस खास प्रतिमा की रौनक में चार चांद लगा देते हैं. रावत परिवार का इस प्राकृतिक तरीके से बनाई गई प्रतिमा के साथ छह पीढ़ियों का इतिहास जुड़ा है. इसलिए अब इस परम्परा को सहेजने के लिए परिवार के युवाओं को तैयार किया जा रहा है.

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