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राजस्थान के इस विश्वविद्यालय में धूल खा रही थी लाखों साल पुरानी ये विरासत, अब स्टूडेंट्स जान रहे मानव विकास की 'गाथा' - Exhibition of stone age tools - EXHIBITION OF STONE AGE TOOLS

राजस्थान विश्वविद्यालय में कई सालों से रखे पाषाण युग कालीन औजारों की प्रदर्शनी लगाई गई है. पाषाण काल के औजारों को आर्काइव से निकालकर छात्रों के बीच लाया गया है. इससे छात्र ह्यूमन जर्नी के बारे में और गहराई से समझ सकेंगे.

Exhibition of stone age tool
पाषाण युग कालीन औजारों की प्रदर्शनी (ETV Bharat GFX)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 4, 2024, 6:33 AM IST

Updated : Sep 4, 2024, 9:01 AM IST

पाषाण युग के औजार अब देंगे छात्रों को ह्यूमन जर्नी का ज्ञान (ETV Bharat Jaipur)

जयपुर : पाषाण युग, जिसे प्रारंभिक मानव का दौर कहा जाता है. करीब 26 लाख साल पहले जब मानव ने पहली बार पत्थर के औजारों का उपयोग किया था. उस पुरापाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल की कहानी को बयां करने वाले औजार अब तक राजस्थान विश्वविद्यालय में रखे धूल खा रहे थे. इन औजारों को अब आर्कियोलॉजी, फिजियोलॉजी और हिस्ट्री डिपार्टमेंट ने मिलकर एक प्लेटफार्म दिया है. समय के साथ बदलते ये लाखों साल पुराने औजार ह्यूमन जर्नी का बखान करते हैं और अब इस जर्नी को डॉक्यूमेंट कर डिजिटलाइज किया जाएगा, ताकि ये ज्ञान राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्रों तक ही नहीं, बल्कि देशी-विदेशी छात्रों तक भी पहुंच सके.

पाषाण युग के मनुष्य किस तरह शिकार करते थे ?, उनके औजार क्या हुआ करते थे ?, ये जानना हमेशा से रुचिकर रहा है, लेकिन जब ये औजार खुद अपनी कहानी बयां करें तो मनुष्य की जर्नी को समझना और आसान हो जाता है. कुछ ऐसा ही काम हुआ है राजस्थान विश्वविद्यालय में, जहां पाषाण काल के औजारों को आर्काइव से निकालकर छात्रों के बीच लाया गया है. हिस्ट्री एंड इंडियन कल्चर डिपार्टमेंट एचओडी डॉ निक्की चतुर्वेदी ने बताया कि ये ऑब्जेक्ट संग्रहालय में धूल मिट्टी में पड़े हुए थे. अब अंधकार में पड़े इस ज्ञान को रोशनी में लाया गया है. हैंडेक्स (हस्तकुठार), क्लीवर (विदारणी) और स्क्रैपर (खुरचनी) जैसे टूल्स अलग-अलग पुरापाषाणिक स्थलों से राजस्थान विश्वविद्यालय को मिले. ये सभी ऑब्जेक्ट अपनी कहानी खुद कहते हुए नजर आते हैं.

पाषाण युग के औजारों की प्रदर्शनी (ETV Bharat Jaipur)

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एग्जीबिशन को स्थाई करने की प्लानिंग : निक्की चतुर्वेदी ने कहा कि कई बार कुछ टॉपिक थियोरेटिकल समझा नहीं पाते, लेकिन जब इस तरह के ऑब्जेक्ट होते हैं तो समझाना और सिखाना आसान हो जाता है. आदिमानव के हाथों से निर्मित औजारों को देखने से इतिहास जीवंत हो जाता है. विश्वविद्यालय ने पहली बार इस तरह का प्रयास किया है कि इतिहास के घटनाक्रम, आदिमानव के जीवन, मनुष्य की यात्रा को पुरावस्तुओं के माध्यम से समझा जा सकता है और अब प्लानिंग की जा रही है कि इस एग्जीबिशन को स्थाई किया जाए, ताकि जो छात्र इस एग्जीबिशन को देखकर गए हैं, वो इस पर और ज्यादा अध्ययन करें और गहराई से इसे समझ सकें.

निक्की चतुर्वेदी ने कहा कि ये जर्नी है, जिसमें औजारों की शक्ल बदलती है. पृथ्वी की संरचना बदलती है. बड़े पशुओं के शिकार की जगह छोटे पशुओं का शिकार करना शुरू किया जाता है, तो औजार की आकृति, औजार का कलेवर बदल जाता है. चूंकि नॉलेज ओपन एक्सेस होनी चाहिए. इसलिए अब इन टूल्स को डॉक्यूमेंट किया जा रहा है, जिसमें चित्रों और वीडियो के माध्यम से विजुलाइज कर इसे ऑनलाइन साझा करेंगे, जो विश्वविद्यालय के प्लेटफार्म से सार्वजनिक क्षेत्र में भी उपलब्ध होगा. फिलहाल सोशल मीडिया के माध्यम से जो डाटा साझा किया गया है उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी इसका अच्छा रिस्पांस देखने को मिल रहा है. कोशिश यही है कि जल्द इसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लाया जाए.

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छात्रों को मिलेगा प्रैक्टिकल नॉलेज :विश्वविद्यालय के म्यूजियोलॉजी डिपार्टमेंट के डिप्टी डायरेक्टर डॉ तमेघ पवार ने बताया कि यहां ह्यूमन जर्नी के नाम से एक एग्जीबिशन लगाई गई है, जो छात्रों को एक प्रैक्टिकल नॉलेज देती है. आर्कियोलॉजी के छात्रों को जो पढ़ाया जा रहा है, उसे छात्र देखकर बेहतर ढंग से समझ सकते हैं. छात्र समझ सकते हैं कि मानव जो वर्तमान स्थिति में आया है, यहां तक पहुंचने में किस तरह की जर्नी रही है. एक छोटे से प्लेटफार्म पर पाषाण से पहिए तक के सफर को प्रदर्शित किया गया है. इसमें आर्कियोलॉजी के अलावा हिस्ट्री और म्यूजियोलॉजी के स्टूडेंट को भी फायदा मिलेगा. उन्होंने बताया कि हाल ही में अमेरिका से आई प्रो. ऐनेट बी फार्म ने भी यहां विजिट किया. ऐसे में राजस्थान विश्वविद्यालय में मौजूद पाषाण युग के इन औजारों की चर्चा न सिर्फ यहां बल्कि विदेशों में भी चल रही है.

वहीं, इन पुराऔजारों को एग्जीबिट करने वाले क्यूरेटर प्रियांशु ने बताया कि मानव के जैविक विकास के कारण उसका कल्चरल विकास हुआ. ये कल्चरल आर्टइफेक्ट इसकी गवाही देते हैं. हस्तकुठार, विदारणी, खुरचनी जैसे उपकरण कालक्रम अनुसार मानव और उसकी गतिविधियों को प्रदर्शित करते हैं. उन्होंने बताया कि राजस्थान विश्वविद्यालय में जो भी उपकरण हैं, वो अलग-अलग पुरापाषाणिक स्थलों से मिले हैं. इनका कालक्रम करीब 26 लाख साल पुराना है और करीब 1500 साल पहले तक के उपकरण राजस्थान विश्वविद्यालय में मौजूद है.

पाषाण युग के पत्थर से बने टूल्स :इस ह्यूमन जर्नी को समझने के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय के बाहर से भी छात्र यहां पहुंच रहे हैं. छात्रा मुस्कान ने बताया कि इस ह्यूमन जर्नी में दिखाया गया है कि मनुष्य के विकास से लेकर कल्चर कैसे विकसित हुआ है. एक मनुष्य ने कैसे शुरुआत की और जरूरत के हिसाब से उपकरण का भी विकास किया. यहां पाषाण युग के पत्थर से बने टूल्स मौजूद हैं. ये टूल्स अलग-अलग दौर में तैयार किए गए और समय के साथ-साथ ये टूल्स शार्प और छोटे होते चले गए.

Last Updated : Sep 4, 2024, 9:01 AM IST

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