भरतपुर :भारत में हर साल 15 सितंबर को इंजीनियर डे मनाया जाता है. इंजीनियरिंग कॉलेजों में एक समय था जब सीटों के लिए मारामारी हुआ करती थी, लेकिन बढ़ते कॉलेजों के कारण अब सीटें काफी हैं. हालात यह है कि कई कॉलेजों में सीटें खाली पड़ी हुई हैं. वहीं, भरतपुर की बात करें तो यहां एक ही परिसर में भरतपुर और करौली जिले के इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हो रहे हैं. करौली के इंजीनियरिंग कॉलेज को बीते 7 साल से खुद का भवन तैयार कराने के लिए फंड तक नसीब नहीं हुआ है. इतना ही नहीं करौली के कॉलेज की करीब 95% और भरतपुर के कॉलेज की करीब 59 फीसदी सीट खाली पड़ी हैं. विद्यार्थी इन कॉलेजों में प्रवेश के लिए रुचि ही नहीं दिखा रहे हैं. ऐसे में देश के लिए योग्य इंजीनियर कैसे तैयार हो सकेंगे?.
7 साल से उधारी के भवन में कॉलेज :भरतपुर और करौली इंजीनियरिंग कॉलेज के प्राचार्य डॉ रवि गुप्ता ने बताया कि कॉलेज में भरतपुर और करौली जिले के इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हैं. करौली का कॉलेज वर्ष 2017-18 में शुरू हुआ था. करौली के कॉलेज को भूमि तो आवंटित कर दी गई है, लेकिन भवन निर्माण के लिए अभी तक फंड नहीं मिल पाया है, जिसकी वजह से यह कॉलेज बीते 7 साल से भरतपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज के परिसर में ही संचालित किया जा रहा है.
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स्कूल से भी पीछे करौली इंजीनियरिंग कॉलेज :करौली कॉलेज को वर्ष 2017 से 2021 तक 300 सीट पर एक भी प्रवेश नहीं मिल पाया. ये सीट चार साल तक रिक्त रहीं, जबकि वर्ष 2024 के सत्र में 300 सीटों पर महज 16 प्रवेश मिल सके, यानी कॉलेज की करीब 95 फीसदी सीट रिक्त पड़ी हैं. इतना ही नहीं वर्ष 2022-23 में 11 और 2023-24 में सिर्फ 16 छात्रों ने प्रवेश लिया. देखा जाए तो इस कॉलेज से ज्यादा प्रवेश तो प्राथमिक स्कूलों में मिल जाते हैं.