ETV Bharat / state

केवलादेव में दिखा मांसाहारी पौधा 'यूट्रीकुलेरिया', जानिए कैसे करता है शिकार - UTRICULARIA IN KEOLADEV

भरतपुर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में यूट्रीकुलेरिया की दुर्लभ प्रजाति पाई गई है, जो पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. जानिए खासियत...

मांसाहारी पौधा 'यूट्रीकुलेरिया'
मांसाहारी पौधा 'यूट्रीकुलेरिया' (ETV Bharat Bharatpur)
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 11, 2025, 6:32 AM IST

Updated : Jan 24, 2025, 5:58 PM IST

भरतपुर : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में इस बार एक दुर्लभ और अनोखे मांसाहारी पौधे, यूट्रीकुलेरिया की बड़ी संख्या में उपस्थिति दर्ज की गई है. आमतौर पर मेघालय और दार्जिलिंग में पाया जाने वाला यह पौधा, जिसे 'ब्लैडरवॉर्ट' के नाम से भी जाना जाता है. यह पौधा छोटे कीट-पतंगों का शिकार कर पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे घना की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को नया आयाम मिलेगा.

ऐसे करता है शिकार : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि यूट्रीकुलेरिया मांसाहारी पौधों की एक अनूठी प्रजाति है. यह छोटे जीवों को पकड़ने के लिए मूत्राशय जैसे जाल (ब्लैडर) का इस्तेमाल करता है. ब्लैडर के अंदर आने के बाद जीव फंस जाता है और वहीं मर जाता है. यूट्रीकुलेरिया मुख्य रूप से प्रोटोजोआ, कीड़े, लार्वा, मच्छर और टैडपोल जैसे जीवों का शिकार करता है. इस पौधे की स्थलीय प्रजातियां पानी से भरी मिट्टी में उगती हैं और वहीं तैरने वाले छोटे जीवों को पकड़ती हैं.

घना निदेशक मानस सिंह (ETV Bharat Bharatpur)

निदेशक मानस ने बताया कि इस साल केवलादेव घना में पांचना बांध से भरपूर पानी मिलने के कारण इस पौधे की मौजूदगी संभव हो सकी है. यह पौधा घना के एल, के और बी ब्लॉक में देखा जा रहा है. वहीं, सेवानिवृत्त प्रो. डॉ. एमएम त्रिगुणायत ने बताया कि कई साल पहले जब घना को पांचना बांध का पानी मिलता था, उस समय यह पौधा नजर आता था. इस बार पानी अच्छा मिला है तो यह फिर से दिखा है.

इसे भी पढ़ें- वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर हीरा पंजाबी की ऐतिहासिक तस्वीर ने घना को दिलाई 10 देशों में नई पहचान

यूट्रीकुलेरिया की खोज और महत्व : निदेशक मानस ने बताया कि यूट्रीकुलेरिया की दुर्लभ प्रजातियों की भारत में मौजूदगी पिछले कुछ वर्षों में चर्चा का विषय रही है. उत्तराखंड के चमोली जिले की मंडल घाटी में 2021 में यूट्रीकुलेरिया फ़रसीलेटा नाम की एक दुर्लभ प्रजाति को खोजा गया था. इस प्रजाति को 36 साल बाद भारत में रिकॉर्ड किया गया था. इसे मेघालय और दार्जिलिंग के कुछ हिस्सों में भी देखा गया है. अब केवलादेव घना में इसकी उपस्थिति, पर्यावरण के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है.

निदेशक मानस ने बताया कि यूट्रीकुलेरिया जैसे मांसाहारी पौधे पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह छोटे कीट-पतंगों और पानी में मौजूद सूक्ष्मजीवों की संख्या को नियंत्रित कर पारिस्थितिकीय चक्र को स्थिर बनाए रखते हैं. केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है और जैव विविधता के लिए जाना जाता है. यूट्रीकुलेरिया का केवलादेव घना में बड़े पैमाने पर उगना न केवल एक अनोखी घटना है, बल्कि पारिस्थितिकीय सुधारों का संकेत भी है. यह पौधा पर्यावरण संतुलन में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है और जैव विविधता को संरक्षित करने में मददगार साबित हो रहा है.

भरतपुर : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में इस बार एक दुर्लभ और अनोखे मांसाहारी पौधे, यूट्रीकुलेरिया की बड़ी संख्या में उपस्थिति दर्ज की गई है. आमतौर पर मेघालय और दार्जिलिंग में पाया जाने वाला यह पौधा, जिसे 'ब्लैडरवॉर्ट' के नाम से भी जाना जाता है. यह पौधा छोटे कीट-पतंगों का शिकार कर पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे घना की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को नया आयाम मिलेगा.

ऐसे करता है शिकार : निदेशक मानस सिंह ने बताया कि यूट्रीकुलेरिया मांसाहारी पौधों की एक अनूठी प्रजाति है. यह छोटे जीवों को पकड़ने के लिए मूत्राशय जैसे जाल (ब्लैडर) का इस्तेमाल करता है. ब्लैडर के अंदर आने के बाद जीव फंस जाता है और वहीं मर जाता है. यूट्रीकुलेरिया मुख्य रूप से प्रोटोजोआ, कीड़े, लार्वा, मच्छर और टैडपोल जैसे जीवों का शिकार करता है. इस पौधे की स्थलीय प्रजातियां पानी से भरी मिट्टी में उगती हैं और वहीं तैरने वाले छोटे जीवों को पकड़ती हैं.

घना निदेशक मानस सिंह (ETV Bharat Bharatpur)

निदेशक मानस ने बताया कि इस साल केवलादेव घना में पांचना बांध से भरपूर पानी मिलने के कारण इस पौधे की मौजूदगी संभव हो सकी है. यह पौधा घना के एल, के और बी ब्लॉक में देखा जा रहा है. वहीं, सेवानिवृत्त प्रो. डॉ. एमएम त्रिगुणायत ने बताया कि कई साल पहले जब घना को पांचना बांध का पानी मिलता था, उस समय यह पौधा नजर आता था. इस बार पानी अच्छा मिला है तो यह फिर से दिखा है.

इसे भी पढ़ें- वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर हीरा पंजाबी की ऐतिहासिक तस्वीर ने घना को दिलाई 10 देशों में नई पहचान

यूट्रीकुलेरिया की खोज और महत्व : निदेशक मानस ने बताया कि यूट्रीकुलेरिया की दुर्लभ प्रजातियों की भारत में मौजूदगी पिछले कुछ वर्षों में चर्चा का विषय रही है. उत्तराखंड के चमोली जिले की मंडल घाटी में 2021 में यूट्रीकुलेरिया फ़रसीलेटा नाम की एक दुर्लभ प्रजाति को खोजा गया था. इस प्रजाति को 36 साल बाद भारत में रिकॉर्ड किया गया था. इसे मेघालय और दार्जिलिंग के कुछ हिस्सों में भी देखा गया है. अब केवलादेव घना में इसकी उपस्थिति, पर्यावरण के लिहाज से एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है.

निदेशक मानस ने बताया कि यूट्रीकुलेरिया जैसे मांसाहारी पौधे पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यह छोटे कीट-पतंगों और पानी में मौजूद सूक्ष्मजीवों की संख्या को नियंत्रित कर पारिस्थितिकीय चक्र को स्थिर बनाए रखते हैं. केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है और जैव विविधता के लिए जाना जाता है. यूट्रीकुलेरिया का केवलादेव घना में बड़े पैमाने पर उगना न केवल एक अनोखी घटना है, बल्कि पारिस्थितिकीय सुधारों का संकेत भी है. यह पौधा पर्यावरण संतुलन में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है और जैव विविधता को संरक्षित करने में मददगार साबित हो रहा है.

Last Updated : Jan 24, 2025, 5:58 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.