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स्वास्थ्य विभाग के उपनिदेशक पहुंचे डायरिया प्रभावित गांव, मरीजों का जाना हालचाल - Effect of diarrhea in Pakur

Diarrhea in Pakur. लिट्टीपाड़ा प्रखंड के आदिम जनजाति बहुल पहाड़िया डायरिया प्रभावित गांव में स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्रीय उपनिदेशक डॉ अजय कुमार सिंह चिकित्सकों की टीम के साथ पहुंची. इस दौरान उपनिदेशक ने मौजूद स्वास्थ्य कर्मियों को आवश्यक निर्देश दिया.

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डायरिया पीड़ितों की जांच करते स्वास्थ्य टीम (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Aug 31, 2024, 8:34 PM IST

पाकुड़: जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के आदिम जनजाति बहुल पहाड़िया डायरिया प्रभावित गांव में बड़ा कुड़िया स्वास्थ्य विभाग के क्षेत्रीय उपनिदेशक डॉ अजय कुमार सिंह चिकित्सकों की टीम के साथ पहुंची. इस दौरान उपनिदेशक ने गांव में मरीजों का हालचाल जाना और मौजूद चिकित्सक एवं स्वास्थ्य कर्मियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए.

संवाददाता टिंकू दत्ता की रिपोर्ट (ETV BHARAT)

जानकारी देते हुए सिविल सर्जन डॉ मंटू कुमार टेकरीवाल ने बताया कि बड़ा कुड़िया गांव में दूषित झरना, नाले का पानी पीने से डायरिया फैला था और कई ग्रामीण बीमार हो गए. लेकिन स्वास्थ्य विभाग की टीम ने समय रहते सभी बीमार मरीजों का इलाज किया और सभी स्वस्थ्य है. उन्होंने बताया कि वर्तमान में तीन मरीज डायरिया की चपेट में है, जिसका इलाज किया जा रहा है. वे सभी खतरे से बाहर हैं.

सिविल सर्जन ने कहा कि ग्रामीणों को यदि शुद्ध पेयजल नहीं मिला तो कभी भी डायरिया फैल सकता है. गांव में ब्लीचिंग का छिड़काव कराया गया है. साथ ही सभी लोगों को पानी उबालकर पीने की सलाह दी गयी है. वहीं, जांच करने पहुंचे क्षेत्रीय स्वास्थ्य उपनिदेशक डॉ अजय कुमार सिंह ने बताया कि डायरिया से दो लोगों की मौत की बात सामने आयी थी. लेकिन जांच में यह पाया गया एक मरीज को पहले से छाती में दर्द था. जिसके लिए उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया और उनकी मौत हो गयी.

जबकि दूसरे ग्रामीण की हुई मौत के कारणों की जांच की जा रही है. उन्होंने बताया कि डायरिया प्रभावित गांव में मेडिकल टीम कैंप कर रही है. फिलहाल सभी बीमार मरीज खतरे से बाहर है. साथ ही गांव के सभी घरों में चिकित्सक पहुंचकर स्क्रीनिंग कर रही है ताकि अन्य कोई भी बीमार रहने पर उसका इलाज किया जा सके.

बता दें कि बड़ा कुड़िया गांव लिट्टीपाड़ा प्रखंड के करमाटांड़ पंचायत में है. यह इलाका पहाड़ और घने जंगलों के बीच रहने, गांव तक सड़क अबतक नहीं बनने और शुद्ध पेयजल नहीं मिलने के कारण ग्रामीण आए दिन बीमार पड़ते है. यहां के लोग चाहकर भी अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते हैं, जिसके चलते झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करवाना पड़ता है.

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