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प्रदेश के युद्ध नायक को भूली सरकारें, अंग्रेजों ने भी इस वीर की बहादुरी को किया था सलाम

बिलासपुर में जन्मे कैप्टन भंडारी राम को आज सरकारें भूल चुकी हैं. अनदेखी के कारण आज उनकी बहादुरी के किस्से धूमिल होते जा रहे हैं.

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 4 hours ago

Updated : 2 hours ago

कैप्टन भंडारी राम
कैप्टन भंडारी राम (ETV BHARAT)

बिलासपुर: हिमाचल की धरती देवभूमि के साथ वीरभूमि भी है. भारत के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा हिमाचल से ही थे. आजादी के बाद से ही नहीं आजादी से पहले भी हिमाचलियों की वीरता दुनिया ने देखी है. ऐसे ही एक वीर थे कैप्टन भंडारी राम. भंडारी राम की वीरता का लोहा अंग्रेजों ने भी माना था. उनके अदम्य साहस के चलते उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था.

कैप्टन भंडारी राम का जन्म 24 जुलाई 1919 को गुगेड़ा परगना में हुआ था, जो उस समय बिलासपुर रियासत के अधीन था. 24 जुलाई 1941 में वे बतौर सिपाही ब्रिटिश सेना की 10वीं बलूच रेजिमेंट में भर्ती हुए थे. उन्होंने 1 सितंबर 1939 से 2 सितंबर 1945 तक छह साल चले सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान अदम्य साहस दिखाया था.

विक्टोरिया रेड क्रॉस विजेता वीर बहादुर की अनदेखी का आरोप (ETV BHARAT)

घायल होने के बाद भी नहीं छोड़ा मोर्चा

सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान 22 नवंबर 1944 को पूर्वी मऊ अराकान में जापान सेना के आक्रमण के दौरान एक पोस्ट को जीतना था. भंडारी राम भी इस दौरान एक टुकड़ी का हिस्सा थे. उनकी पलटन को ढलान पर चढ़ने के साथ नदी किनारे संकीर्ण रास्ते से चलकर पोस्ट तक पहुंचना था. जैसे ही भंडारी राम अपनी टुकड़ी के साथ पोस्ट से करीब 50 गज दूरी पर पहुंचे, जापनी सेना की नजर उन पर पड़ गई. जापानी सेना ने भारी मशीन गन के साथ भारतीय टुकड़ी पर फायरिंग शुरू कर दी. इसमें तीन जवान जख्मी हो गए. भंडारी राम को भी कंधे और टांग में चोट लगी थी. गोली लगने के बाद भी भंडारी राम रेंगते हुए मशीन गन तक पहुंचे और 15 गज की दूरी से दुश्मनों पर ग्रेनेड फेंका. इस दौरान उनकी छाती और चेहरे पर गहरी चोटें आईं थी, लेकिन उन्होंने तीन जापानी सैनिकों को भी मार गिराया.

1945 में विक्टोरिया क्रॉस से किया गया सम्मानित

उनकी इस बहादुरी के बाद उनकी पलटन के लिए आगे बढ़ने का रास्ता खुल गया. उनकी पलटन ने पोस्ट को फतह कर लिया और वहां अपनी पोजीशन ले ली. उनकी बहादुरी के लिए 8 फरवरी 1945 को विक्टोरिया क्रॉस (ब्रिटिश भारत आर्मी में दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान) से सम्मानित किया गया था. वहीं, भंडारी राम आजादी के बाद भी भारतीय सेना में सेवाएं देते रहे और सन 1969 में कैप्टन पद से रिटायर हुए. साथ ही आजादी के बाद भारतीय सेना में उन्हें परम विशिष्ट सेवा मेडल से भी सम्मानित किया गया था. 19 मई 2002 को 82 वर्ष की आयु में भंडारी राम का बिलासपुर के औहर स्थित आवास पर निधन हुआ. भंडारी राम जी के अदम्य साहस को आज भी स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के मौके पर आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रमों में याद किया जाता है, लेकिन उनके परिजन सरकारों पर उनकी अनदेखी का आरोप लगाते नजर आ रहे हैं.

परिवार ने लगाया अनदेखी का आरोप

स्वर्गीय भंडारी राम के पुत्र सुरेश कुमार नड्डा और सतीश नड्डा का कहना है कि, 'द्वितीय विश्व युद्ध के नायक के रूप में पहचान रखने वाले उनके पिता स्वर्गीय भंडारी राम को ब्रिटिश सरकार ने विक्टोरिया क्रॉस मेडल से सम्मानित करने के साथ ही देश-विदेश में उनके स्टेच्यू लगवाए हैं, लेकिन आजतक उनके गृह जिला बिलासपुर में एक भी स्टेच्यू देखने को नहीं मिला. इसके अलावा उनके निधन पर औहर स्थित सरकारी स्कूल का नाम उनके नाम पर रखने का सरकार का वादा भी समय की धारा के साथ धूमिल होता चला गया और यह केवल वादों तक ही सिमट कर रह गया.'

वहीं, सुरेश कुमार नड्डा और सतीश नड्डा ने वर्तमान कांग्रेस सरकार से मांग की है कि, 'स्वर्गीय भंडारी राम की बहादुरी और जीवन के किस्से युवा पीढ़ी तक पहुंच सकें इसके लिए उनका एक स्टेच्यू लगाया जाए जहां उनका बहादुरी का किस्सा अंकित हो. हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में उनकी जीवनी प्रकाशित की जाए और औहर स्थित सरकारी स्कूल का नाम उनके नाम पर रखा जाए, ताकि द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर भारतीय सेना में रहते हुए दी गई उनकी सेवाओं और बहादुरी को सच्ची श्रद्धांजलि मिले सके."

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