नई दिल्लीः दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वित्त पोषित अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अपना प्रिंसिपल, टीचर्स और दूसरे स्टाफ को नियुक्त करने का पूरा अधिकार है. शुक्रवार को सुनवाई करते हुए जस्टिस सी हरिशंकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सरकार की ओर से अल्पसंख्यक संस्थानों को मदद देने का मतलब यह नहीं है कि इन संस्थाओं का कानूनी अधिकार खत्म हो जाता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों को दिए जाने वाले ग्रांट के उपयोग की मॉनिटरिंग कर सकती है, लेकिन सरकार अल्पसंख्यक संस्थानों के हर फैसले तय नहीं कर सकती है जैसे प्रिंसिपल, टीचर्स और दूसरे स्टाफ की नियुक्ति का मामला. हाईकोर्ट ने विभिन्न फैसलों का उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट में वित्त पोषित अल्पसंख्यक संस्थानों को काफी अधिकार देता है ताकि वे अपने अल्पसंख्यक संस्थान के चरित्र को बरकरार रख सकें.
हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार को भाषाई अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित किए जा रहे संस्थानों के प्रशासन और प्रबंधन में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 29(1) के मुताबिक भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित रखने का पूरा अधिकार है. ऐसे में उन संस्थानों को भी वैसे लोगों को चुनने का अधिकार है, जो भाषा और संस्कृति को संरक्षित रख पाने की योग्यता रखते हों.
दरअसल, हाईकोर्ट दिल्ली तमिल एजुकेशन एसोसिशएन की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में मांग की गई थी कि कोर्ट दिल्ली शिक्षा निदेशालय को निर्देश दे कि वो प्रिंसिपल और शिक्षकों के खाली पदों पर नियुक्ति को स्वीकृति दे. याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि दिल्ली शिक्षा निदेशालय की भूमिका केवल प्रिंसिपल और टीचर्स की योग्यता और अनुभव को रेगुलेट करने तक सीमित है.
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