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दमोही कांसा दिमाग करे आइंस्टीन जैसा तेज, खून से खोजकर फेंकेगा एसिड, इसमें खाने टूटी पूरी सरकार - Mohan Yadav Return Damoh Kansa - MOHAN YADAV RETURN DAMOH KANSA

दमोह में बनने वाली कांसे की थालियों में मंत्रिमंडल को परोसा जाएगा भोजन.

DAMOH BRONZE BUSINESS
महंगाई से फीकी पड़ी कांसा की चमक (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 4, 2024, 9:39 PM IST

Updated : Oct 5, 2024, 8:03 AM IST

दमोह: मध्य प्रदेश के दमोह जिले में शनिवार को होने वाली मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक में मेहमानों को जिन कांसे की थालियों में भोजन परोसा जाएगा. वह थालियां दमोह जिले में ही बनती हैं. दरअसल, एक समय पर यहां बनने वाले बर्तनों की चमक मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि प्रदेश के बाहर भी फैला करती थी, लेकिन समय के साथ-साथ अब यह उद्योग दम तोड़ता जा रहा है. दरअसल, दमोह जिले के हटा अनुविभाग के अंतर्गत आने वाले पटेरा ग्राम क्षेत्र में बनने वाला कांसा पूरे मध्य प्रदेश के साथ भारत के कई हिस्सों में विख्यात है.

मंहगाई के कारण चलन कम

यह आम आदमी के लिए तो महज यह धातु के बर्तन ही हैं, लेकिन इसमें कितनी मेहनत और समय लगता है. इसे सिर्फ बनाने वाला ही जानता है. इस समय कांसा का मूल्य 1500 से 2000 प्रति किलोग्राम तक चल रहा है. इतनी अधिक महंगी धातु होने के कारण कांसे का चलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. पटेरा के कांसा कारीगर गया प्रसाद ताम्रकार बताते हैं कि "उनकी पीढ़ियां गुजर गई. कांसा और तांबे के बर्तनों का निर्माण करते हुए, लेकिन अब यह उद्योग दम तोड़ता जा रहा है. कांसा और तांबा दोनों ही बहुत ही महंगी धातु है. इसलिए इन्हें अब कोई खरीदना नहीं चाहता. लोग सस्ते सुंदर और टूट फूट से रहित स्टील के बर्तन खरीदने में लगे हैं. जहां स्टील 250 से 300 रुपए किलो आता है. वहीं कांसा की कीमत 5 से 7 गुना तक अधिक है."

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कांसा बनाने की विधि

कांसा अभी भी पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है. इसके लिए कोयला और लकड़ी का उपयोग किया जाता है. जो कि काफी महंगी है. इन बर्तनों को बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल है. पहले कच्चे माल को भट्टी में पानी की तरफ पिघलाया जाता है. इसके बाद उसकी ढलाई की जाती है, फिर उनकी पिटाई और छिलाई करके उन्हें रंगत प्रदान की जाती है. बता दें कि नई पीढ़ी के लोग अब यह कारोबार नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि भट्ठियों से निकलने वाला जहरीला धुआं लोगों को बीमार बना रहा है. लोग फेफड़ों की गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं. जबकि सरकार की तरफ से इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए न तो किसी तरह का अनुदान दिया जाता है और ना ही सुविधा मुहैया कराई जाती है.

कांसा की प्लेट और कटोरी चम्मच (ETV Bharat)

बढ़ती महंगाई से कांसा उद्योग हो रहा खत्म

बता दें कि एक समय था जब पूरे पटेरा क्षेत्र में लगभग 80% लोग यही कारोबार करते थे, लेकिन अब मुश्किल से कुछ परिवार ही कांसा और तांबा से बर्तन बनाने का काम कर रहे हैं. स्थानीय व्यापारी विजय ताम्रकारबताते हैं कि "पहले यहां के बने बर्तन मध्य प्रदेश के अलावा कई दूसरे बड़े शहरों में जाते थे. लोगों को अच्छी खासी कीमत मिलती थी. जिसे लोग इन बर्तनों को बनाने में रुचि रखते थे, लेकिन लगातार बढ़ती महंगाई और धातुओं की आसमान छूती कीमतों ने इस उद्योग को खत्म सा कर दिया है. अब लोग स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों पर पूरी तरह से निर्भर हो गए हैं. वह सस्ते होने की कारण टिकाऊ भी हैं. जबकि कांसा एक ऐसी धातु है जो रखरखाव में जरा सी चूक होने पर नष्ट हो जाती है."

कांसा के बर्तन बनाते कारीगर (ETV Bharat)

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जरा सी चूक में टूट जाते हैं कांसा के बर्तन

कांसे के बर्तनों को बड़ी हिफाजत से रखा जाता है. अगर जरा सी भी चूक हो जाए तो टूटने का डर भी बना रहता है. साथ ही आसमान में जब बिजली कड़कती है तो वह बर्तन टूट जाता है. जबकि स्टील और प्लास्टिक में ऐसा नहीं है. इसलिए भी लोग अब कांसा के बर्तन कम ही खरीदते हैं. कभी कभार जब शादी विवाह का सीजन आता है, तभी लोग पर पैर पखराई के लिए कांसा की थाली आदि लेते हैं. अन्यथा कोई भी इतने महंगे बर्तन लेना नहीं चाहता है.

Last Updated : Oct 5, 2024, 8:03 AM IST

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