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बनारस में कांग्रेस को बड़ा झटका, पूर्व सांसद राजेश मिश्रा ने 'हाथ' का साथ छोड़कर थामा 'कमल'

बनारस (Banaras) में कई साल से कांग्रेस के किले को मजबूत रखने वाले राजेश मिश्रा (Former MP Rajesh Mishra) ने बीजेपी ज्वाइन कर ली है. जिसके बाद से काशी में कांग्रेस का कौन होगा प्रत्याशी (Who will be the Congress candidate in Kashi) इस पर कयासों का दौर चलने लगा है.

Rajesh Mishra joined BJP
बीजेपी में गए राजेश मिश्रा

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 5, 2024, 4:52 PM IST

वाराणसी:काशी में लंबे समय से कांग्रेस का झंडा उठाए रखने वाले पूर्व सांसद डॉ. राजेश मिश्रा ने मंगलवार को दिल्ली में बीजेपी का दामन थाम लिया. बीएचयू छात्र संघ का चुनाव जीतकर वे सक्रिय राजनीति में कदम रखा. 1996 से 2000 तक दो कार्यकाल के लिए वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे. साल 2004 में राजेश मिश्रा वाराणसी से सांसद बने. 2009 में चुनाव हारने के बाद से उनके सितारे गर्दिश में चल रहे थे.

1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के शंकर प्रसाद जायसवाल के खिलाफ कांग्रेस ने राजेश मिश्रा को वाराणसी से उम्मीदवार बनाया था. हालांकि वह चुनाव हार गए थे. लेकिन 2004 में राजेश मिश्रा ने फिर से चुनाव लड़ा और शंकर प्रसाद जायसवाल को इस बार हार का सामना करना पड़ा. लोकसभा चुनाव में उन्होंने शंकर प्रसाद जायसवाल को करारी शिकस्त दी थी. 2009 के चुनाव में तीसरी बार कांग्रेस ने राजेश मिश्रा को अपना भरोसेमंद मानकर टिकट दिया और उनके सामने बीजेपी के डॉ मुरली मनोहर जोशी थे और बीएसपी के मुख्तार अंसारी. इन दो कद्दावर लोगों के सामने राजेश मिश्रा कि नहीं चल पाई और वह चौथे नंबर पर चले गए.

पूर्वांचल में प्रियंका गांधी के करीबी और मजबूत नेता के तौर पर राजेश मिश्रा की पहचान रही. उनको प्रियंका गांधी को सलाह देने के लिए एक सलाहकार परिषद का सदस्य भी बनाया गया था. लेकिन उस वक्त उन्होंने इस जिम्मेदारी को स्वीकार ही नहीं किया और वह सलाहकार परिषद का हिस्सा नहीं बने. इसके बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि वो कुछ बड़ा कदम उठा सकते हैं.

डॉ. राजेश मिश्रा की सियासी पृष्ठभूमि छात्र संघ से शुरू होती है. ब्राह्मणों के बीच में अपनी एक अलग पहचान बनाने के अलावा मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी राजेश मिश्रा की छवि काफी अच्छी मानी जाती रही है. कांग्रेस में काफी पुराने वक्त से राजेश मिश्रा ने रहते हुए कांग्रेस के झंडाबरदार के रूप में अपने आप को स्थापित किया था. वाराणसी में राजेश मिश्रा ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से छात्र राजनीति के जरिए अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की. 80 के दशक में काशी हिंदू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष भी बनाए गए.

2014 में भारतीय जनता पार्टी ने जब पहली बार नरेंद्र मोदी को वाराणसी से प्रत्याशी बनाया. लेकिन तब कांग्रेस ने अजय राय पर भरोसा जताया. जिसके बाद से राजेश मिश्रा कांग्रेस से दूर होते चले गए. हालांकि 3 साल बाद विधानसभा चुनाव में वाराणसी शहर दक्षिणी विधानसभा से कांग्रेस ने राजेश मिश्रा पर भरोसा जताया और इस ब्राह्मण सीट पर बीजेपी को शिकस्त देने के लिए डॉ. नीलकंठ तिवारी के खिलाफ राजेश मिश्रा को मैदान में उतारा. लेकिन राजेश मिश्रा जीत नहीं सके. मूल रूप से देवरिया के सलेमपुर के रहने वाले राजेश मिश्रा को 2019 के लोकसभा चुनाव में उनके गृह जनपद से भी टिकट मिला, लेकिन कांग्रेस के टिकट पर यहां भी वह महज 27000 वोट ही पाए है और यहां भी उन्हें शिकस्त मिली.

हाल ही में पुराने और कद्दावर नेता के तौर पर पहचान होने के बाद भी राजेश मिश्रा को दरकिनार करते हुए प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अजय राय को कांग्रेस ने आगे बढ़ाया. जिससे भी राजेश मिश्रा बेहद खफा चल रहे थे. राहुल गांधी के वाराणसी में रोड शो और कार्यक्रम के दौरान भी राजेश मिश्रा दूरी बनाए हुए थे. जिसके बाद से ही स्पष्ट हो रहा था कि पार्टी से अनबन के चलते किसी भी वक्त राजेश मिश्रा कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं और आखिर हुआ भी ऐसा ही.

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