जबलपुर।बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक में मोबाइल की लत इस कदर हो रही है कि वह खाने से लेकर सोने तक मोबाइल का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आ रहे हैं और उनकी दुनिया मोबाइल तक ही सिमटती जा रही है. नौजवान बच्चों का ये हाल है कि वो अपने बड़े-बुजुर्गों से बात करने के दौरान भी फोन चलाने में व्यस्त रहते हैं. अगर आपके घर में छोटे बच्चे हैं और आप उन्हें रोता देखकर मोबाइल थमा देते हैं तो यह खबर आपके लिए सतर्क करने वाली है. मोबाइल की वजह से मासूम बच्चों के मस्तिष्क क्षमता पर ब्रेक लगने के साथ साथ सोचने समझने की क्षमता पर भी ब्रेक लग रहा है. यह मासूम अन्य भाषाएं सीख रहे हैं जिसको लेकर अब डॉक्टर भी हैरत में हैं. डॉक्टरो को चिंता सता रही है कि यह मासूम बच्चे कहीं न कहीं ऑटिज्म जैसी बीमारी के शिकार हो रहे हैं.
'ऑटिज्म' बीमारी के शिकार हो रहे हैं बच्चे
यह खबर उन पेरेंट्स के लिए है जो अपने मासूम बच्चों को रोता बिलखता हुआ हुआ देखकर मोबाइल थमा देते हैं कि उनका बच्चा किसी प्रकार से शांत हो जाए, लेकिन अभिभावकों को यह नहीं मालूम की उनका बच्चा मोबाइल में रील्स, वीडियो देखते-देखते जापानी व चीनी जैसी भाषा सीख रहे हैं. यह मासूम मोबाइल में चलने वाली रील्स के कंटेंट को देखते-देखते उस शैली में ही संवाद की कोशिश कर रहे हैं. डॉक्टर की माने तो यह मासूम बच्चे दिन रात मोबाइल स्क्रीन में अधिक समय बिताने के कारण यह 'ऑटिज्म' बीमारी के शिकार हो रहे हैं, और यही वजह है कि चीनी जापानी जैसी भाषा अलग होने के कारण अभिभावक समझ भी नहीं पा रहे हैं.
चीनी-जापानी भाषा शैली में संवाद
संस्कारधानी के रहने वाले एक दंपति एक कंपनी में नौकरी करते हैं. पति-पत्नी प्राइवेट नौकरी के चलते दोनों ड्यूटी जाते हैं. उस परिस्थिति को देखते हुए दोनों ने बच्चे की देखभाल के लिए घर में एक आया रख ली. मासूम जब भी रोता तो आया मासूम बच्चे को मोबाइल पकड़ा दिया करती थी. लगातार 8 से 10 घंटा तक मासूम मोबाइल में रील्स ही देखते रहता था. चीनी जापानी रील्स देखते देखते मासूम 4 वर्ष का हो गया लेकिन अब हिंदी नहीं बोल पा रहा है. रील्स कंटेंट की तरह चीनी जापानी भाषा शैली में संवाद कर रहा है,अब इन्हीं सब बातों को लेकर वह दंपति चिंतित हैं. उन्होंने अपने मासूम बच्चे को इलाज के लिए जबलपुर के नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल अस्पताल में भर्ती किया है. जहां मासूम का इलाज चल रहा है.
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