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दिवाली से पहले घूमने लगे कुम्हारों की उम्मीदों के चाक, परंपरागत कला से बन रहे आत्मनिर्भर

छतरपुर के नोगांव के ग्राम पंचायत बिलहरी गांव में 200 कुम्हार परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं.

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 11 hours ago

CHHATARPUR EARTHEN POTS DEMOND
दीवाली से पहले घूमने लगे कुम्हारों की उम्मीदों के चाक (ETV Bharat)

छतरपुर:दिवाली के चार माह पहले से बुंदेलखंड के कुम्हार जाति के लोग मिट्टी के दिए, बर्तन बनाने में जुट जाते हैं. करवा चौथ, धनतेरस, छोटी दिवाली और दिवाली पर मिट्टी के दीए कि मांग बढ़ जाती है. पीएम मोदी के लोकल फॉर वोकल के आवाहन से भी कुम्हारों को बड़ा लाभ हुआ है. जो लोग आधुनिकता के दीए जलाते थे, अब वह पीएम मोदी के आवाहन पर पुरानी परंपरा के अनुसार मिट्टी के दीए जला कर दिवाली मानते हैं. इससे कुम्हरों की आय में बढ़ोतरी हुई है.

पीढ़ियों से ग्रामीण बना रहे मिट्टी के बर्तन

बुंदेलखंड के छतरपुर जिले से 50 किलोमीटर दूर कुम्हरों का इलाका है. जहां करीब 200 परिवार मिट्टी के बर्तन बनाकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं. नोगांव के ग्राम पंचायत बिलहरी के कुम्हार टोली में रहने वाले लोग पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन बनाकर अपना घर चला रहे हैं. इस व्यवसाय में 10 साल के बच्चे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक काम में हाथ बटाते हैं. 4 महीने पहले से करवा चौथ, धन तेरस, छोटी दिवाली बड़ी दिवाली में कुम्हार मिट्टी के दीए और बर्तन बनाने में लग जाते हैं. गणेश और मां दुर्गा की प्रतिमाएं, अन्य मिट्टी के खिलौने बनाते हैं. क्योंकि पूरे साल इन मिट्टी के बने समान की मांग बनी रहती है.

दिवाली पर बढ़ी दीपों की मांग (ETV Bharat)

पात्र लोगों को मिल रहा लाभ

छतरपुर कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने बताया कि "माटी कला बोर्ड योजना के तहत कुम्हार जाति के लोगों को लाभ दिया जाता है. जो इस काम को करता है, जो लोग इस कि पात्रता के दायरे में आते हैं, उनको लाभ दिया जाता है. आवेदन करने पर लाभ जरूर मिलेगा.''

लोकल फॉर वोकल से कुम्हारों को रहा लाभ (ETV Bharat)

'सरकार की योजना का नहीं मिल रहा लाभ'

गांव के कुम्हार बैजनाथ प्रजापतिने बताया कि "यह व्यवसाय उनके परिवार का पारंपरिक धंधा है. यहां के हर परिवार के सदस्य, चाहे वह पुरुष हो, महिला हो या बच्चे. सभी मिट्टी के बर्तन बनाने में अपना योगदान देते हैं. मिट्टी के बर्तनों की लगातार बढ़ती मांग के कारण गांव के कुम्हारों को साल भर काम मिलता है. जिससे वे अच्छा मुनाफा कमाते हैं और अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा पा रहे हैं. दिवाली पर ज्यादा मांग बढ़ जाती है, इस धंधे में लागत कम है मुनाफा ज्यादा है, लेकिन सरकार से कोई मदद नहीं मिल रही और ना ही मिट्टी मिल रही है."

गांव के 200 परिवार मिट्टी के बर्तनों के व्यवसाय से जुड़े (ETV Bharat)

कहां-कहां होती है सप्लाई

मुकेश प्रजापतिबताते हैं कि "नोगांव के बिलहरी के कुम्हारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तन और मूर्तियां बागेश्वर धाम, टीकमगढ़, छतरपुर, निवाड़ी, महोबा, बांदा, कानपुर, और लखनऊ जैसे बड़े शहरों तक सप्लाई की जाती हैं."

लड़कियां भी काम में बटा रहीं हाथ (ETV Bharat)

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बच्चियां भी बन रही हैं आत्मनिर्भर

बबलू प्रजापतिने बताया कि "गांव की करीब 20 बच्चियों को इस काम में शामिल किया गया है. वे अपने परिवार के साथ मिलकर काम करती हैं और बदले में उन्हें मेहनताना भी मिलता है. यह प्रशिक्षण उनके भविष्य के लिए उपयोगी हो रहा है, ताकि वे शादी के बाद भी इस व्यवसाय को जारी रखकर अपने परिवार की मदद कर सकें."

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