चरखी दादरी:जिले किसानों का आरोप है कि यहां कपास की सरकारी खरीद महज कागजों तक सीमित है. जिले की मंडियों में कपास की सरकार खरीद दिखाई नहीं दे रही है. हालांकि मार्केट कमेटी के अधिकारियों का दावा है कि जिले में कपास की सरकारी खरीद की जा रही है और करीब 1500 क्विंटल की खरीद भी गई है. दूसरी ओर चरखी दादरी आढ़ती एसोसिएशन के उप प्रधान राधेश्याम मित्तल ने कहा कि जिले में कपास की सरकारी खरीद नहीं हो रही है, जिससे आढ़तियों और किसानों को भारी नुकसान हो रहा है. उन्होंने सरकार से चरखी दादरी जिले में कपास की खरीद शुरू करने की मांग की है. इसके अलावा किसानों ने भी सरकारी खरीद होने से इंकार किया है.
किसानों को कम दाम में बेचनी पड़ रही फसल:दरअसल चरखी दादरी जिले में खरीफ सीजन के दौरान मुख्य रूप से बाजरा, ग्वार और कपास की खेती की जाती है. खरीफ सीजन 2024 के दौरान जिले में करीब 45 हजार एकड़ में किसानों द्वारा कपास की बुआई की गई थी. गुलाबी सूंडी और मौसम की मार के कारण किसानों के मन मुताबिक कपास का उत्पादन नहीं हुआ. वहीं, दूसरी ओर किसानों की फसल भी एमएसपी के तहत नहीं खरीदी जाने के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है. किसान औने-पौने दामों पर अपनी फसल बेचने को मजबूर हैं.
हालांकि मार्केट कमेटी के अधिकारियों का दावा है कि कपास की सरकारी खरीद की जा रही है, लेकिन उनके दावे के अनुसार भी महज 1500 क्विंटल कपास ही खरीदी गई है, जो ऊंट के मुंह में जीरे जैसा है.
किसानों का सरकार पर आरोप:जिले के किसान सतबीर फोगाट ने कहा कि जिले में सरकारी खरीद की हमें कोई जानकारी नहीं है. किसानों से सरकारी खरीद के तहत कोई कपास नहीं खरीदी गई है. किसानों का आरोप है कि बड़े आढ़तियों से कपास खरीदकर सीधे मिलों में भेजा जाता हो तो उन्हें पता नहीं, लेकिन मंडी में कपास खरीद अभी तक नहीं हुई है.