कुरुक्षेत्र: हरियाणा में गेहूं की खेती बड़े स्तर पर की जाती है. गेहूं यहां के किसानों की मुख्य फसल में से एक है. दो माह पहले प्रदेश के किसानों ने गेहूं की बुवाई की थी. फिलहाल किसानों की गेहूं की फसल खेतों में अच्छी लहरा रही है, लेकिन जनवरी में जैसे ही तापमान में उतार-चढ़ाव आता हैं, किसानों को फसल की चिंता होने लगती है. गेहूं की फसल में कई रोग लग जाते हैं. कुछ रोग तो ऐसे होते हैं, जिसका प्रबंध करना काफी जरूरी होता है. अगर किसान इस पर थोड़ी सी भी लापरवाही बरतता है तो उसका प्रभाव गेहूं के उत्पादन पर पड़ता है. गेहूं में लगने वाला मुख्य रोगों में एक रोग है "पीला रतुआ". ये काफी खतरनाक बीमारी है. इससे गेहूं को भारी नुकसान होता है.
आईए आज हम आपको बताते हैं कि "पीला रतुआ" क्या होता है? इसके क्या लक्षण हैं? इसकी रोकथाम किसान कैसे कर सकते हैं?
जानिए क्या होता है "पीला रतुआ":"पीला रतुआ" के बारे में सही जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने कुरुक्षेत्र जिल कृषि उपनिदेशक डॉक्टर करमचंद से बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस समय किसानों ने हरियाणा में गेहूं की फसल लगाई है. गेहूं की फसल में कई तरह की बीमारियां आती हैं, इससे उनके उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ता है. उनमें से एक बीमारी है पीला रतुवा. इससे गेहूं की फसल ज्यादा प्रभावित होती है.
पत्तियों पर दिखता है असर: डॉक्टर करमचंद ने आगे बताया कि "पीला रतुआ" का प्रकोप यमुना से लगे क्षेत्र अंबाला, यमुनानगर अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल से शुरू होता है. यहां से ये आगे बढ़ता चला जाता है. यह जनवरी के 15 तारीख के बाद आना शुरू होता है, इसलिए जनवरी के महीने के अंतिम दिनों में और फरवरी की शुरुआत में अपनी फसल का खास ध्यान रखें. सुबह-शाम अपने खेत में जाएं. "पीला रतुआ" बीमारी का पता पीले रंग से चलता है. यह गेहूं के खेत में शुरुआत में एक दो स्थानों पर आती है बाद में वह धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाती है. इस बीमारी में गेहूं के पौधे की पत्तियों पर पीला पाउडर लगा हुआ रहता है. पौधे की पत्तियों पर पीले रंग की धारियां दिखाई देती है, जो हल्दी जैसा दिखाई देता है. अगर इसका प्रबंध न किया जाए तो यह काले रंग का हो जाता है और पौधे को सूखा देता है. अगर कहीं ऐसा दिखाई दे तो अपने नजदीकी कृषि अधिकारी से संपर्क करके आप उस पर नियंत्रण कर सकते हैं.
नियंत्रण न होने पर उत्पादन पर पड़ता है असर: डॉक्टर करमचंद ने बताया कि यह काफी खतरनाक रोग होता है, जिससे फसल की पैदावार पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है. अगर समय पर किसान इसका प्रबंध न करें, तो यह इतना खतरनाक होता है कि उसे 50 फीसद तक या उससे भी ज्यादा उत्पादन कम हो सकता है, क्योंकि इसमें पौधे के ऊपर जो "पीला रतुआ" पाउडर होता है, वह पौधे की ग्रोथ नहीं होने देता. क्योंकि जो उसके ऊपर पीले रंग का पाउडर होता है, वह सूर्य की किरणों को पौधे पर नहीं पड़ने देती. इससे पौधा कमजोर होकर मर जाता है. इसलिए समय पर इसका नियंत्रण जरूरी है.
ऐसे करें नियंत्रण: डॉक्टर करमचंद ने बताया कि अगर किसी किसान के खेत में आने वाले समय में "पीला रतुआ" का प्रकोप होता है, तो उसके लिए समय रहते ही इसका प्रबंध कर लेना चाहिए. इसके लिए प्रोपिकोनाजोल नाम की दवाई 200 एमएल 250 लीटर पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव करना चाहिए. या फिर मैन्कोजेब या दीथाने एम45 नामक दवाई 800 ग्राम दवाई एक एकड़ खेत में डाले. अगर 10 दिन के अंदर इसका प्रकोप कम होता है तो ठीक है, वरना एक बार फिर से इन्हीं दवाइयों का इस्तेमाल कर खेत में डालें, ताकि उस पर पूरा नियंत्रण हो सके. एक बात हमेशा ध्यान रखें जो भी इसमें स्प्रे किया जाता है अगर किसी खेत में यह रोग आया हुआ है, उसके कपड़े के ऊपर अगर यह पीले रंग का पाउडर लग जाता है तो उन्हें उन्हीं कपड़ों में दूसरे खेत में बिल्कुल नहीं जाना चाहिए. वरना दूसरा खेत भी पीला पाउडर लगने से संक्रमित हो सकता है और उनमें भी "पीला रतुआ" आ सकता है.
फिलहाल "पीला रतुआ" का प्रकोप कहीं पर नहीं है. जैसे-जैसे जनवरी का महीना बीतता जाता है, इसका प्रकोप फसलों पर दिखाई देता है. उस समय मौसम में उतार-चढ़ाव बना रहता है, जिसके चलते फसलों में यह रोग आने के ज्यादा आसार होते हैं. 15 जनवरी से लेकर फरवरी की शुरुआत के महीने तक विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. अगर कहीं भी थोड़ी सी भी उनको इस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं, तो उसमें उसका समय रहते प्रबंध करें. -डॉक्टर करमचंद, जिला कृषि उपनिदेशक, कुरुक्षेत्र
हर साल बीज का करें बदलाव: कृषि विशेषज्ञ डॉ करमचंद ने बताया कि अगर किसी खेत में "पीला रतुआ" दिखाई देता है तो अगले साल उस गेहूं के बीज का प्रयोग अपने खेत में ना करें. हो सके उस बीज को अपने खेत में लगाने से परहेज करें. अगर बीजों का बदलाव करते रहते हैं तो इसमें "पीला रतुआ" का खतरा कम हो जाता है. कुछ ऐसी किस्म है, जिसमें इसका प्रकोप अधिक दिखता है, उस किस्म का प्रयोग ना करें. आजकल कृषि विशेषज्ञों के द्वारा ऐसे बीज तैयार किए हुए हैं, जो उन्नत किस्म भी हैं. उसमें रोग रोधक क्षमता काफी ज्यादा होती है. उस किस्म में इस प्रकार की बीमारी के कम चांस होते हैं. इसलिए कृषि विशेषज्ञ के द्वारा जारी किए गए नए बीजों का प्रयोग करें ताकि इस प्रकार की बीमारी से छुटकारा मिल सके.
"पीला रतुआ" से गेहूं किसान परेशान: इस पूरे मामले में कुरुक्षेत्र के किसान रजनीश का कहना है कि खेत में हर साल "पीला रतुआ" लग जाता है. इससे फसल को काफी नुकसान पहुंचता है. "पीला रतुआ" अगर एक बार खेत में लग जाए तो इससे छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है. कभी-कभी तो स्प्रे करवाने के बाद भी फसल को नुकसान पहुंचता है. वहीं, किसान सुनील ने कहा कि पीला रतुआ की समस्या एक दो माह में आनी शुरू हो जाएगी. बचाव के लिए स्प्रे कराया जाता है. हालांकि पीला रतुआ फसल में आ ही जाता है.इससे किसानों को नुकसान होता है. एक बार स्प्रे में दो से ढ़ाई हजार का खर्च पड़ जाता है.
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