जयपुर:आज का समय डिजिटल दुनिया का है. मोबाइल के रूप में दुनिया हमारी मुट्ठी में हो गई है, लेकिन इस दौर में बच्चों को जिस तरह से अश्लीलता परोसी जा रही है, उससे हमारे बच्चे अछूते नहीं रहे. बच्चों को सही गलत कंटेंट देखने की जानकारी बहुत जरूरी है. इस दिशा में मान द वैल्यू फाउंडेशन ने गुड टच, बैड टच के साथ वर्चुअल टच जागरूकता के लिए 'हिफ़ाज़त' 15 दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें बच्चों को सुरक्षित माहौल देने के लिए उन्हें बेसिक अच्छे बुरे कंटेंट की जानकारी दी गई.
मान द वैल्यू फाउंडेशन की संस्थापिका डॉ मनीषा सिंह ने कहा कि आज घर - बाहर बच्चों के हाथ में फोन है. बच्चे कितना समय मोबाइल की स्क्रीन पर बिता रहे हैं, इसको लेकर न पेरेंट्स जागरूक है न स्वयं बच्चे. इस दिशा में फाउंडेशन ने जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया है, जिसमें बच्चों को सुरक्षित माहौल देने के लिए उन्हें बेसिक अच्छे बुरे कंटेंट की जानकारी दी जा रही है. फाउंडेशन की ओर से 15 दिन की कार्यशाला महात्मा गांधी गवर्नमेंट स्कूल, जगतपुरा में आयोजित की गई. जिसमें फाउंडेशन की टीम से सिद्धि रांका, देवयानी शर्मा और कुसुम ने मौजूदा दौर में बच्चों को वर्चुअल टच के प्रति जागरूक किया.
शिविर में बच्चों को दी जानकारी. (ETV Bharat Jaipur) पढ़ें: मोबाइल के उपयोग के बीच अनजान और अनचाहे खतरों का भी शिकार हो रहे बच्चे, अब वर्चुअल टच की जानकारी जरूरी
मनीषा ने बताया कि एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार स्कूली बच्चे गुड टच, बैड टच के साथ अब वर्चुअल टच का शिकार भी हो रहे हैं. इस संबंध में पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने भी चिंता जाहिर की थी और अभिभावकों, स्कूल और कॉलेज को कहा है कि वे बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी दें.
क्या है वर्चुअल टच ? एक्सपर्ट सिद्धि रांका बताती है कि टीनएजर्स सोशल मीडिया के एडिक्ट होते जा रहे हैं, जिससे वे कई अनजान और अनचाहे खतरों का भी शिकार हो रहे हैं. मोबाइल पर बच्चों को अनचाहे कॉन्टेंट भी मिल रहे हैं, जिससे बच्चे मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं. पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि बच्चों को वर्चुअल टच की जानकारी दे . वर्चुअल टच के तहत टीनएजर्स को ऑनलाइन व्यवहार की जानकारी देनी चाहिए. इसमें उन्हें बताना चाहिए कि ऑनलाइन बातचीत के दौरान कोई आपको किस तरह के संकेत भेज सकता है या नहीं, इसका मतलब क्या होता है ?
शुरुआत घर से हो: अभिभावक के रूप में देवयानी शर्मा कहती हैं कि मेरे खुद के भी एक 17 साल का बेटा है और मुझे इस तरह से उसका ख्याल रखना होता है, जैसे पहले हम बेटियों का ख्याल रखते थे, क्योंकि दरिंदगी की शुरुआत तो यही से होती है. आज जितनी भी दरिंदगी वाली घटना हमने देखी है, वह कहीं ना कहीं मोबाइल से कनेक्ट जरूर होती है. सरकार की जिम्मेदारी है कि बच्चों को डिजिटल रूप से परोसे जा रहे अश्लील कंटेंट पर रोक लगाए. पेरेंट्स को भी बिना ठोस वजह के मोबाइल फोन कभी अपने बच्चों को नहीं देना चाहिए. जितनी भी देर मोबाइल दें, उतनी देर बच्चों पर नजर रखें. बच्चों को यह पता होना चाहिए कि हमारे लिए कौनसा कंटेंट अच्छा है और कौनसा नहीं. यह वर्चुअल टच ही सीधे-सीधे बच्चों के दिमाग पर असर डालता है. इसके बाद बच्चों का आचरण और उनके विचार बिल्कुल वैसे ही होने लगते हैं, जैसे वे मोबाइल एसेसरीज में देखते हैं.