बुरहानपुर. जिले में 23 हजार से ज्यादा रकबे में केले की बोवनी की जाती है. फल लेने के बाद किसान केले के तने को वेस्टेज मानकर अक्सर खेतों में मजदूर लगाकर फेंक देते हैं या सूखने पर जला देते है, लेकिन अब इस वेस्टेज से महिलाओं के कदम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि अब इन तनों के इस्तेमाल से बेहद आकर्षक कलाकृतियों व रोजमर्रा के जीवन में उपयोगी घरेलू वस्तुएं बनाई जा रही हैं.
केले के तने से बन रही ये चीजें
महिलाएं प्रशिक्षण लेकर केले के तने से झूला, टोकरी, चटाई, पैन स्टैंड, टेबल मैट, इको फ्रेंडली राखियों, फर्टिलाइजर सहित अनगिनत सैंकड़ों ईको फ्रेंडली वस्तुएं बना रही हैं. इनकी खासियत यह है कि ईको फ्रेंडली होने की वजह से स्थानीय स्तर से लेकर राजधानी तक इसकी खासी डिमांड है. अलग-अलग समूहों की 600 महिलाएं केले के तने से बना मेट तमिलनाडु की एक संस्था को 200 रु मीटर के हिसाब से बेचती हैं. इसके अलावा स्थानीय बाजारों सहित भोपाल में भी घरेलू उपयोग की वस्तुएं सप्लाय होती हैं.