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यूनिक स्टाइल में बात करते थे आदिमानव, बुंदेलखंड आबचंद के हजारों सालों का रहस्य खुला

मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड मानव सभ्यता के विकास की कहानी को दर्शाता है. बुंदलेखंड के आबचंद की गुफाओं में हजारों साल पुराने शैलचित्र हैं.

BUNDELKHAND ROCK PAINTINGS
बुंंदेलखंड का कोना-कोना कहता है मानव सभ्यता की कहानी (ETV Bharat)

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 4 hours ago

Updated : 3 hours ago

BUNDELKHAND ROCK PAINTINGS:बुंदेलखंड की पहचान यहां की कला संस्कृति और वैभवशाली इतिहास के लिए है. जहां तक बुंदेलखंड में मानव सभ्यता के विकास की बात करें, तो 10 हजार साल पुराने अवशेष यहां आसानी से मिल जाते हैं. सागर दमोह मार्ग पर आबचंद गांव के नजदीक नदी किनारे स्थित गुफाओं में मानव सभ्यता के विकास के 10 हजार साल पुराने अवशेष देखने मिल जाते हैं. जानकारों की माने तो आबचंद की गुफाओं के अलावा बुंदेलखंड में ऐसे कई स्थान है. जो बुंदेलखंड में मानव सभ्यता के विकास की कहानी कहते हैं.

सागर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डॉ मशकूर अहमद कादरी तो कहते हैं कि बुंदेलखंड के सागर जिले को ही अगर पुरातात्विक अवशेषों के लिहाज से देखा जाए, तो सागर जिले के 20% क्षेत्रफल में ऐसे कई स्थान है. जो मानव सभ्यता के विकास की कहानी सुनाते हैं और प्रमाण देते हैं. दुख की बात यह है कि इन स्थानों का ना तो संरक्षण किया जा रहा है और ना ही लोगों को इन स्थानों की जानकारी विस्तार से देने के लिए कोई प्रबंध किया जा रहा है.

क्या कहते हैं इतिहासकार (ETV Bharat)

क्या खास है आबचंद की गुफाओं में

डॉ मशकूर अहमद कादरी बताते है कि 'आबचंद की गुफाएं मानव विकास के 10 हजार साल पुराना इतिहास बताते हैं. आबचंद की गुफाओं में उच्च पुरापाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के रॉक पेंटिंग (शैलचित्र) पाए जाते हैं. डॉ कादरी कहते हैं कि आदिमानव के विकास का अध्ययन करना है, तो आबचंद की गुफाएं आदिमानव की कर्म स्थली है, क्योंकि यहां आदिमानव ने सृजनात्मक गुणों के जरिये मानव सभ्यता के क्रमिक विकास की कहानी कही है. इन गुफाओं और कंदराओं में शिकार,मनोरंजन,पशुपालन और युद्ध के अलावा कई प्रकार के शैलचित्र आसानी से दिखाई देंगे.

सागर जिले में मौजूद आबचंद की गुफाएं (ETV Bharat)

अपनी बात कहने शैलचित्र बनाते थे आदिमानव

डॉ कादरी कहते हैं कि आबचंद की गुफाएं आदिमानव के आवास और उसकी कर्म स्थली है. उस समय कोई भाषा या संप्रेषण का माध्यम नहीं था. इसलिए आदिमानव अपनी बात कहने के लिए शैलचित्र बनाते थे. शैलचित्रों के माध्यम से एक तरीके से अगली पीढ़ी को पढ़ाया गया है. आबचंद की गुफाओं में सबसे प्राचीन शैलचित्र लगभग उच्च पुरापाषाण काल के अंतिम काल से प्रारंभ होते हैं, जिनकी आयु लगभग 8 से 9 हजार साल है. उसके बाद मध्य पाषाण युग 8 से 5 हजार साल का है.

आबचंद की गुफाओं में बने शैल चित्र (ETV Bharat)

हम देखते हैं कि मध्य पाषाण काल से पूरा आबचंद भरा हुआ है. ईसा के 5 हजार साल पहले आबचंद प्रागैतिहासिक मानव का निवास क्षेत्र था. उच्च पुरापाषाण वाले शैलचित्र सादी रेखाओं के बड़े आकार के हैं. मध्य पाषाण युग के चित्र सुंदर, सुघड़ और काफी अच्छे ढंग से बनाए गए हैं. जिसमें मानव, परिवार, जीवन, शिकार के चित्र हैं. उसके बाद ताम्र पाषाण काल में मानव मकान बनाने लगा था, लेकिन आबचंद में मानव शैलाश्रय में रहकर शैलचित्र बना रहे थे.

क्या खास है आबचंद की गुफाओं में (ETV Bharat)

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क्या कहते हैं जानकार

सागर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डॉ मशकूर अहमद क़ादरी का कहना है कि सिर्फ आबचंद ही नहीं बल्कि सागर जिले के बहुत बडे भूभाग में मानव सभ्यता का इतिहास बिखरा पड़ा है. डाॅ कादरी बताते हैं कि सागर जिला पुरातात्विक दृष्टि से बहुत संपन्न है. आबचंद की गुफाएं इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि वहां लोगों की आवाजाही ज्यादा है. सागर जिला लगभग 6 हजार 200 वर्ग किमी में फैला है और शैलचित्र कम से कम एक हजार वर्ग किमी से ज्यादा क्षेत्रफल में फैला है. सागर, नरयावली,खानपुर, कडता, रहली, भापेल, खुरई रोड, जरूआखेडा जैसी जगहों पर शैलचित्र हैं. यहां छोटे-बडे़ शैलाश्रय और गुफाएं मिलती है. इनमें से शैलचित्र भी हैं और जहां शैलचित्र नहीं है. वहां मानव आवास के चिन्ह मिल जाते हैं. इसलिए हम कहते हैं कि यहां मध्य पाषाण और उच्च पुरा पाषाण से लेकर ऐतिहासिक काल तक का एक अनवरत अनुक्रम मिलता है. जो मानव विकास का क्षेत्र रहा है.

Last Updated : 3 hours ago

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