BUNDELKHAND ROCK PAINTINGS:बुंदेलखंड की पहचान यहां की कला संस्कृति और वैभवशाली इतिहास के लिए है. जहां तक बुंदेलखंड में मानव सभ्यता के विकास की बात करें, तो 10 हजार साल पुराने अवशेष यहां आसानी से मिल जाते हैं. सागर दमोह मार्ग पर आबचंद गांव के नजदीक नदी किनारे स्थित गुफाओं में मानव सभ्यता के विकास के 10 हजार साल पुराने अवशेष देखने मिल जाते हैं. जानकारों की माने तो आबचंद की गुफाओं के अलावा बुंदेलखंड में ऐसे कई स्थान है. जो बुंदेलखंड में मानव सभ्यता के विकास की कहानी कहते हैं.
सागर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डॉ. मशकूर अहमद कादरी तो कहते हैं कि बुंदेलखंड के सागर जिले को ही अगर पुरातात्विक अवशेषों के लिहाज से देखा जाए, तो सागर जिले के 20% क्षेत्रफल में ऐसे कई स्थान है. जो मानव सभ्यता के विकास की कहानी सुनाते हैं और प्रमाण देते हैं. दुख की बात यह है कि इन स्थानों का ना तो संरक्षण किया जा रहा है और ना ही लोगों को इन स्थानों की जानकारी विस्तार से देने के लिए कोई प्रबंध किया जा रहा है.
क्या खास है आबचंद की गुफाओं में?
डॉ. मशकूर अहमद कादरी बताते हैं कि 'आबचंद की गुफाएं मानव विकास के 10 हजार साल पुराना इतिहास बताते हैं. आबचंद की गुफाओं में उच्च पुरापाषाण काल से लेकर ऐतिहासिक काल तक के रॉक पेंटिंग (शैलचित्र) पाए जाते हैं. डॉ कादरी कहते हैं कि आदिमानव के विकास का अध्ययन करना है, तो आबचंद की गुफाएं आदिमानव की कर्म स्थली है, क्योंकि यहां आदिमानव ने सृजनात्मक गुणों के जरिये मानव सभ्यता के क्रमिक विकास की कहानी कही है. इन गुफाओं और कंदराओं में शिकार,मनोरंजन,पशुपालन और युद्ध के अलावा कई प्रकार के शैलचित्र आसानी से दिखाई देंगे.
अपनी बात कहने शैलचित्र बनाते थे आदिमानव
डॉ. कादरी कहते हैं कि आबचंद की गुफाएं आदिमानव के आवास और उसकी कर्म स्थली है. उस समय कोई भाषा या संप्रेषण का माध्यम नहीं था. इसलिए आदिमानव अपनी बात कहने के लिए शैलचित्र बनाते थे. शैलचित्रों के माध्यम से एक तरीके से अगली पीढ़ी को पढ़ाया गया है. आबचंद की गुफाओं में सबसे प्राचीन शैलचित्र लगभग उच्च पुरापाषाण काल के अंतिम काल से प्रारंभ होते हैं, जिनकी आयु लगभग 8 से 9 हजार साल है. उसके बाद मध्य पाषाण युग 8 से 5 हजार साल का है.