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बुंदेली संग्रहालय में 'बिजना' का संग्रह, रंग बिरंगे हाथ के पंखे गर्मी में कराते हैं ठंडक का एहसास - Bijna Collection in Bundeli Museum

गर्मी के मौसम में लोग खुद को ठंडा रखने के लिए तरह-तरह के उपक्रम तलाशते हैं, लेकिन पुराने समय से लेकर आज भी अगर अचानक बिजली गुल हो जाए तो लोगों को हाथ से हिलाने वाला पंखा ही याद आता है. जिसे बुंदेलखंड की भाषा में बिजना कहा जाता है. पहले के समय के लोगों और आज के बुजुर्गों के हाथ में यह बिजना देखा जाना आम बात है.

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : May 14, 2024, 10:25 PM IST

बुंदेली संग्रहालय में बिजना का संग्रह (ETV Bharat)

सागर। ऊर्जा के तरह-तरह के विकल्पों के बीच गर्मी से निपटने के लिए हम तरह-तरह के उपाय कर सकते हैं, लेकिन बिजली जाने पर हमें "बिजना" की याद आती है. जी हां हम बात कर रहे हैं हाथ के पंखों की जिन्हें बुंदेलखंड में बिजना कहा जाता है. भले ही आज बिजना की उपयोगिता काम रह गई हो, लेकिन गर्मी के सीजन में हर घर में बिजना जरूर देखना मिल जाएगा, क्योंकि बिजली जाने पर गर्मी से निपटने के लिए बिजना के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं रहता है.

बिजना के महत्व और बुंदेलखंड में बनाए जाने वाले तरह-तरह के बिजना को ध्यान रखते हुए बुंदेलखंड की लोक कला संस्कृति और विरासत को सहेजने वाले दामोदर अग्निहोत्री ने अपने घर पर बने सत्यम कला एवं संग्रहालय में बुंदेलखंड के करीब 50 तरह के बिजना सहेजकर रखे हैं. जो गर्मी के मौसम में गर्मी से तो निजात दिलाते ही हैं. साथ ही इनकी खूबसूरती भी आकर्षित करते है.

बिजना से दूर होती गर्मी (ETV Bharat)

गांव-गांव घूमकर बनाया बुंदेली संग्रहालय

सागर नगर निगम के रिटायर कर्मचारी दामोदर अग्निहोत्री की बात करें, तो बुंदेलखंड की कला संस्कृति और विरासत उनको इतनी ज्यादा पसंद है कि रिटायरमेंट के बाद उन्होंने साइकिल से गांव-गांव घूम कर बुंदेलखंड की विरासत को सहेजने का काम किया है. इसी कड़ी में उन्होंने बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में गर्मी के मौसम में हवा करने के लिए बनाए जाने वाले हाथ के पंखे यानि बिजना का संग्रह किया है. उनके सत्यम कला एवं संस्कृति संग्रहालय में करीब 50 तरह के हाथ के पंखों का संग्रह है. सभी पंखों की अपनी कहानी और अपना इतिहास और एक विशेषता है. तरह-तरह की कलाकृति और खासियत वाले इन बिजना को बहुत अच्छे से सजाया गया है.

घास और पत्ते के बिजना

बुंदेली संग्रहालय के बिजना में सामान्य तौर पर बांस से बनने वाले बिजना के अलावा गर्मियों के मौसम के लिए अलग-अलग पेड़ों के पत्तों और घास से बनने वाले बिजना भी रखे गए हैं. बुंदेलखंड में खासकर गर्मियों के मौसम के लिए पत्तों और घास से पंखों यानि बिजना को बनाया जाता रहा है. घास के बिजना में कांस और कुशा,जो एक तरह की घास होती है, उसके बिजना बनाए जाते थे. इसके अलावा सागौन और तेंदूपत्ते से भी हाथ के पंखे बनाए गए हैं. इन पंखों का गर्मी के मौसम में विशेष रूप से उपयोग होता था. इनको पानी से गीला करके हवा की जाती थी, तो बहुत ठंडी हवा मिलती थी. खासकर घास और पत्तों के पंखे विशेष रूप से गर्मी में ही बनाए जाते थे.

घास-फूंस से बने बिजना (ETV Bharat)

कपड़ों और ऊन के खूबसूरत बिजना

घास और पत्तों के अलावा बुंदेलखंड की महिलाएं कपड़ों और ऊन से भी बिजना बनाती थीं. कई दिनों की मेहनत के बाद यह बिजना तैयार होते थे. कपड़ों से तैयार होने वाले बिजना में खादी, जरी और मैटी के बिजना बनाए जाते थे. इसके अलावा जो महिलाएं ऊनी कपड़े तैयार करना जानती थीं. वह क्रोशिया के जरिए ऊन के बिजना बनाती थीं. बुंदेली संग्रहालय में इस तरह के कई खूबसूरत बिजना है, जो बुंदेलखंड का इतिहास बताते हैं.

बुंदेली संग्रहालय में रखे ये बिजना (ETV Bharat)

अंग्रेजों का राजशाही बिजना

दामोदर अग्निहोत्री के संग्रहालय में घास, पत्तों और कपड़ों के बिजना के अलावा एक ब्रिटिश कालीन हाथ का पंखा है. जिसे यहां पर राजशाही पंखा कहते थे. ये ब्रिटिश अधिकारी के चेंबर में लगा रहता था. इसको हिलाने के लिए एक कर्मचारी रहता था, जो चेंबर के बाहर बैठता था और रस्सी के जरिए पंखे को हिलाता था. ये अंग्रेजों के शासनकाल की व्यवस्था का जीता जागता उदाहरण है.

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बुजुर्ग महिलाओं से सीखी बिजना की सजावट

संग्रहालय के इन पंखों को बुंदेली लोक कला से सजाया गया है. इसके लिए हमनें ग्रामीण अंचल में संपर्क किया. जो लोग पंखे बनाते थे और घर की महिलाओं को उनको घरेलू रंगों के जरिए सजाती थी. इसके लिए गांव-गांव घूमकर बुजुर्ग महिलाओं से समझा और उनकी मदद ली. पहले हाथ के पंखों में गोबर और छुई के रंगों का उपयोग इन पंखों को खूबसूरत बनाने के लिए होता था. जो हमारे यहां संरक्षित है.

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