जोधपुर :बढ़ती उम्र में मां बनना खुद के लिए परेशानी भरा होता है. साथ ही संतान के लिए भी ये बड़ा खतरा साबित हो सकता है. तनाव और डिप्रेशन के साथ काम करने वाली महिलाएं जब इस उम्र में मां बनती हैं तो उसका असर साफ तौर पर बच्चे में दिखाई देता है. कई बार तो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे जन्म लेते हैं. दरअसल, ये सब महिलाओं के वर्किंग के साथ सही समय पर फैमेली प्लानिंग न होने के कारण हो रहा है. आत्मनिर्भर बनने की राह पर चल रही महिलाएं बढ़ती उम्र में मां बनने की रिस्क ले रही हैं. सामान्य तौर पर डॉक्टर्स का मानना है कि 30 की उम्र तक फैमेली प्लानिंग हो जानी चाहिए, लेकिन बदलते दौर में इस उम्र तक सैटल होने की चिंता के चलते पति-पत्नी देर से बच्चा प्लान कर रहे है.
आलम यह है कि सौ गर्भवतियों में से 25 की उम्र 30 से 35 के बीच हो रही है और आज ये गायनी विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय है. इसके साथ ही अब 35 से 40 के बीच प्रग्नेंट होने वाली महिलाओं की संख्या और परेशानी दोनों बढ़ रही है, क्योंकि इस उम्र में मां बनना भी किसी जोखिम से कम नहीं है. ज्यादातर मामलों में कंसीव न होने पर आईवीएफ का सहारा लेना पड़ रहा है, जिसकी हाई रिस्क डिलीवरी होती है. इसको लेकर जोधपुर के उम्मेद अस्पताल में एक अध्ययन किया गया, जिसमें बढ़ती उम्र में मां बनने वाली महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी सामने आई है.
डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज की गाइनी विभाग की प्रमुख डॉ. रिजवाना शाहीन (ETV BHARAT JODHPUR) इसे भी पढ़ें -इन समस्याओं का कारण बन सकता है गर्भावस्था में थायराइड - Thyroid during pregnancy
400 गर्भवतियां हैं पंजीकृत :मारवाड़ में मातृ उपचार के सबसे बड़े केंद्र उम्मेद अस्पताल में आठ माह में 35 से 40 की उम्र की 400 से ज्यादा गर्भवतियां जो एंटी नेटल चेकअप के लिए रजिस्टर्ड हुई हैं. इनको नियमित जांच की सलाह दी गई है, जिससे उन्हें भविष्य की परेशानियों से बचाया जा सके. डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज की गाइनी विभागाध्यक्ष डॉ. रिजवाना शाहीन ने बताया कि 35 की उम्र में शादी करने के बाद प्रेग्नेंट होना परेशानियों भरा है. इस एज ग्रुप में इनफर्टिलिटी भी बढ़ रही है और ज्यादातर मामले अबॉर्शन के ही होते हैं.
बेहद जरूरी है परिवार का सपोर्ट :डॉ. रिजवाना शाहीन का कहना है कि महिलाओं को करियर और फैमेली के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत है. इसके लिए जरूरी है कि उन्हें परिवार का सपोर्ट मिले, जो उनको समझा सके कि वे बच्चे के पालन-पोषण में उनकी मदद करेंगे. इससे पेशेवर महिलाएं अपने काम के प्रभावित होने की आशंका से मुक्त होंगी. इसी तरह से समाज में बदलाव लाया जा सकता है. साथ ही अधिक उम्र में प्रेग्नेंसी की समस्या से भी काफी हद तक निजात पाई जा सकती है.
स्टडी में सामने आई ये परेशानियां :डॉ. रिजवान के निर्देशन में हुई इस स्टडी में सामने आया कि 35 से 40 की उम्र में प्रेग्नेंसी अब बढ़ने लगी है और ऐसे मामले 6 से 7 प्रतिशत तक बढ़े हैं. साथ ही आने वाले समय में इसके और अधिक बढ़ने की उम्मीद है. स्टडी के अनुसार इस उम्र में कंसीव होने के बाद डिलीवरी तक बहुत सारे कांपिलेशन होते हैं. इनमें खास तौर से वर्क प्रेशर और टेंशन के साथ डिलीवरी से जन्म लेने वाले बच्चों में डाउन सिंड्रोम की दिक्कतें होती हैं. इसके अलावा कई मामलों में पेट में ही बच्चों की मौत और डिलीवरी के बाद भी ब्लीडिंग, प्रसूता में हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज होना पाया जा रहा है.