भोपाल।यदि आपको भोपाल में रहना है, तो आग से बचने के पुख्ता इंतजाम करने होंगे, क्योंकि भोपाल नगर निगम के पास आपको आग से बचाने के लिए पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं. जो हैं भी उनमें 50 फीसदी से अधिक दमकलें कंडम हो चुकी हैं. जब तक ये मौके पर पहुंचती हैं, वहां सबकुछ जलकर राख हो चुका होता है. यदि समय रहते पहुंच भी जाएं तो जरुरी नहीं कि आग से बचाने में सक्षम होंगी. क्योंकि 35 से 40 साल पुरानी ये दमकल लोड भी नहीं उठा पाती है. ऐसे में यदि बड़ी आग लग जाए तो सीआईएसएफ, मिलेट्री और पुलिस फायर कंट्रोल की मदद लेनी पड़ती है, तब जाकर आग पर काबू पाया जाता है.
भोपाल में आग से बचाने के लिए ये हैं इंतजाम
बता दें कि शहर की 412 वर्ग किमी की हदों में रहने वाली करीब 29 लाख की आबादी को फायर सिक्योरिटी देने का जिम्मा निगम फायर ब्रिगेड का है. इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए उसके पास 32 फायर फाइटर्स (दमकल) का बेड़ा है, जो आबादी और एरिया के हिसाब से कम है. इनमें से 20 से 46 साल पुरानी 16 दमकलें ऐसी हैं कि जिनका दम निकल चुका है. यही हाल रेस्क्यू व्हीकल और एम्बुलेंस का भी है. दो हाइड्रोलिक प्लेटफार्म में से एक करीब 30 साल पुराना है. यानी फायर ब्रिगेड का 50 फीसदी बेड़ा आउटडेटेड हो चुका है. अमले के नाम पर भी फायर ब्रिगेड तंगहाल है. 800 से 1000 फायर कर्मियों की जरूरत है, लेकिन महज कर्मचारी 410 ही हैं.
दो दशक में घट गई फायर ब्रिगेड की क्षमता
बीते दो दशक में शहर का दायरा बढ़ने के साथ ही रिहायशी और व्यवसायिक इलाके भी बढ़े हैं, लेकिन फायर ब्रिगेड की क्षमता बढ़ने के बजाए घटती जा रही है. मौजूदा हालात ये हैं कि फायर अमला करीब 50 साल पुराने संसाधनों के बूते आग पर काबू पाता है. इसकी बानगी ये है कि निगम फायर अमले की 32 दमकलों में से महज 10 गाड़ियां ऐसी हैं, जो आग बुझाने के लिए फिट हैं. जबकि 16 दमकलें 20 से 46 साल पुरानी यानी आउटडेटेड हैं. हालांकि फायर ब्रिगेड को अपडेट करने के कई बार प्रस्ताव बने, लेकिन हुआ कुछ नहीं. जबकि नेशनल फायर एडवाइजरी कमेटी के मुताबिक एक दमकल की लाइफ 10 साल होती है. अपनी उम्र पूरी करने वाली दमकलों को फायर ब्रिगेड से हटा दिया जाता है.
दुर्घटना के समय स्टार्ट नहीं होती गाड़ियां
जिन गाड़ियों के भरोसे नगर निगम शहर में फायर सेफ्टी का दावा करता है, वह अग्नि दुर्घटना के वक्त स्टार्ट ही नहीं होती. ऐसे एक नहीं कई मामले हैं, जब गाड़ियां स्टार्ट ही नहीं हुई और दूसरे फायर स्टेशनों से गाड़ियां रवाना करनी पड़ी. वहीं नई दमकल का एवरेज जहां 15 से 18 किलो मीटर प्रति लीटर होता है. इधर, पुरानी फायर ब्रिगेड की 16 गाड़ियों का एवरेज 2 से 4 किमी प्रति लीटर है. ऐसे में फायर ब्रिगेड में उम्मीद से ज्यादा डीजल की खपत होती है.
नए हाईड्रोलिक प्लेटफार्म भी नहीं बुझा पाते आग
ऊंची इमारतों में आग लगने के दौरान जिस हाईड्रोलिक प्लेटफार्म की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. निगम के पास दो हाइड्रोलिक प्लेटफार्म हैं. इनमें से एक 70 फीट ऊंचा हाइड्रोलिक प्लेटफार्म 1988 में खरीदा गया था. जबकि दूसरा 171 फीट ऊंचा प्लेटफार्म पिछले साल खरीदा गया. यह प्लेटफार्म 18 मंजिल तक आग बुझा सकता है, लेकिन, यहां बताना जरूरी है कि 2012 में जब इस प्लेटफार्म को खरीदने की कवायद शुरू हुई. तब शहर में सबसे ऊंची बिल्डिंग 13 मंजिला ही थी, लेकिन अब शहर में 35 मंजिला यानी (350 फीट) ऊंची इमारतें बन चुकी हैं. ऐसे में ये नया आधुनिक हाइड्रोलिक प्लेटफार्म भी बौना साबित हो रहा है.
नगर निगम का फायर अमला एक नजर में
- शहर में फायर स्टेशन- 11 (फतेहगढ़, बैरागढ़, गांधी नगर, माता मंदिर, बोगदापुल, गोविंदपुरा, आईएसबीटी, कोलार, कबाड़खाना, अरेरा हिल्स)
- प्रत्येक में फायर फाइटर-3
- फायर अमला-410
- एक साल में आग लगने की औसत घटनाएं- 1200
- एक माह में आग लगने की औसत घटनाएं- 100