भोपाल: साल 1984 में हुई भोपाल गैस लीक त्रासदी में पीड़ित मरीजों के लिए बनाए गए बीएचएमआरसी हॉस्पिटल को भोपाल एम्स के साथ विलय करने की तैयारी चल रही है. लेकिन गैस पीड़ित संगठन बीएचएमआरसी और भोपाल एम्स के मर्जर के खिलाफ हैं. उनका मानना है कि एम्स में विलय होने के बाद बीएचएमआरसी की विशिष्टता खत्म हो जाएगी. अस्पताल प्रबंधन को एम्स के अनुसार काम करना होगा. इससे गैस पीड़ित मरीजों के हितों का नुकसान होगा. इसके लिए संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी हवाला दिया है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को लिखा पत्र मर्जर रोकने की मांग
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) और भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (BHMRC) के मर्जर की बात को लेकर पीड़ित संगठनों ने गुरुवार को एक प्रेस कांफ्रेंस रखी थी. प्रेस वार्ता में भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचरी संघ की अध्यक्ष राशिदा बी ने कहा कि,"एम्स भोपाल के साथ प्रस्तावित विलय से गैस लीक पीड़ित मरीजों के स्वास्थ्य नीति को काफी नुकसान होगा."
उन्होंने कहा, "यह मूर्खतापूर्ण प्रस्ताव 2018 में भी लाया गया था, लेकिन उस समय सरकार द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने अगस्त 2019 में इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. अब एक बार फिर इसके मर्जर की बात चल रही है. ऐसे में भोपाल गैस पीड़ितों की आवाज उठाने वाले 5 संगठनों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को पत्र लिखकर मर्जर के प्रस्ताव को खारिज करने का आग्रह किया है."
'गैस पीड़ितों को नहीं मिलेगा सुविधाजनक उपचार'
यूनियन कार्बाइड के खिलाफ 'बच्चे' नामक संगठन की अध्यक्ष नौशीन खान ने बताया कि, "9 अगस्त 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि बीएचएमआरसी का किसी दूसरे अस्पतालों में विलय नहीं किया जा सकता है. चूंकि यह गैस पीड़ितों के लिए विशेषतौर पर बनाया गया है. इसलिए इसे स्वायत्त संस्था के तौर पर ही विकसित किया जाए. जिससे कर्मचारियों के हितों की रक्षा हो और मरीजों को सुविधाजनक उपचार मिल सके. नौशीन ने बताया कि भोपाल एम्स में गैस पीड़ित मरीजों को उपचार कराने के लिए घंटो लाइन में समय बर्बाद करना होगा. यहां कि प्रक्रिया भी जटिल है. जबकि बीएचएमआरसी में मरीजों को आसानी से उपचार मिल रहा है."