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बेलागंज उपचुनाव : 'मुद्दे' नहीं 'समीकरण' पर अल्पसंख्यक वोटरों की नजर, 'वेट एंड वॉच' की स्थिति

बेलागंज विधानसभा क्षेत्र का अल्पसंख्यक समाज क्या सोचता है और उनके चुनावी मुद्दे क्या हैं? इन सवालों पर ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट.

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बेलागंज उपचुनाव (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : 5 hours ago

गया: बिहार के गया जिले के दो विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है, इस में बेलागंज विधानसभा क्षेत्र भी है. बिहार का उपचुनाव 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए लिटमस टेस्ट साबित हो सकता है. बेलागंज में त्रिकोणीय मुकाबला बताया जा रहा है, लेकिन ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी लड़ाई को चतुष्कोणीय बनाने में जुटे हैं. 13 नवम्बर आते-आते सीधे लड़ाई किस से होगी, यह बताने से अभी वोटर पीछे हट रहे हैं. प्रचार प्रसार में सभी पार्टियों के प्रत्याशी पूरी ताकत झोंकने में लगे हैं.

पत्ते नहीं खोल रहे वोटरः सभी पार्टी के प्रत्याशी अल्पसंख्यक वोटरों को साधने में जुटे हैं. लेकिन अल्पसंख्यक समाज में उपचुनाव को लेकर मुद्दे क्या हैं? बेलागंज विधानसभा क्षेत्र का अल्पसंख्यक समाज क्या सोचता है और उनके चुनावी मुद्दे क्या हैं? इस सवाल पर बेलागंज क्षेत्र के अल्पसंख्यकों ने कहा कि अभी समय है. समीकरण बनेंगे और टूटेंगे, अभी वेट एंड वॉच की स्थिति में हैं. जो खुलकर अपने प्रत्याशियों के समर्थन में हैं वह तो बोल रहे हैं, लेकिन आम वोटर अभी प्रत्याशी या गठबंधन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं.

बेलागंज उपचुनाव (ETV Bharat)

जदयू ने दी थी चुनौतीः बेलागंज विधानसभा क्षेत्र के निवासी तारीक अनवर ने कहा कि पिछले पांच चुनाव से देखा जा रहा है कि यहां बेलागंज क्षेत्र से जीतने वाले प्रत्याशी को अल्पसंख्यक समाज का व्यापक समर्थन मिला है. पिछले पांच चुनाव में राजद प्रत्याशी डॉ सुरेंद्र यादव की जीत हुई, लेकिन यह भी सही है कि कई चुनाव ऐसे भी हुए जिस में क्लोज फाइट हुआ. सुरेंद्र यादव हारते हारते बचे. वर्तमान में जन सुराज के प्रत्याशी मो अमजद ने ही जदयू के टिकट पर 2010 और 2004 में कड़ी चुनौती दी थी.

"बेलागंज में विकास मुद्दा कम ही होता है. कई चुनाव में देखा गया है कि मुसलमानों का सिर्फ एक ही एजेंडा रहा है भाजपा हराओ. गिरिराज सिंह का समाज को बांटने वाला बयान को भी मुद्दा बनाया जा रहा है. राजद प्रतायाशी विश्वनाथ यादव के लिए अल्पसंख्यक समाज में मददगार साबित होगा."- सेराज अनवर, वरिष्ठ पत्रकार

डिसाइडिंग फैक्टर है अल्पसंख्यक वोटः माना जाता है कि यहां के चुनाव में अल्पसंख्यक वोट डिसाइडिंग फैक्टर होता है. अल्पसंख्यक समाज का बड़ा हिस्सा अगर इस क्षेत्र में किसी एक प्रत्याशी के समर्थन में हुआ तो उसकी जीत हुई है. पहले भी यहां अल्पसंख्यक प्रत्याशी चुनाव लड़ चुके हैं. 2005 से लेकर 2020 तक पांच चुनाव में अल्पसंख्यक प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे, जिसमें इस उपचुनाव में जन सुराज के प्रत्याशी रहे मोहम्मद अमजद तीन बार चुनाव लड़ चुके हैं.

मोहम्मद अमजद की चुनावी यात्राः मोहम्मद अमजद लोजपा के टिकट से 2005 में पहला चुनाव लड़ा था. इस में राजद के उम्मीदवार डॉ सुरेंद्र प्रसाद यादव को 59157 वोट मिले, जबकि मोहम्मद अमजद को इस चुनाव में 35911 वोट मिले. इसी वर्ष 2005 के अक्टूबर में दूसरे चुनाव में मोहम्मद अमजद ने जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा. राजद प्रत्याशी सुरेंद्र यादव को 33457 वोट मिले. अमजद को 27125 वोट मिले. इस चुनाव में एनडीए की लहर थी, राजद सत्ता से बाहर हो गया फिर भी सुरेंद्र यादव ने जीत दर्ज की थी.

2010 के विधानसभा चुनाव में भी बेलागंज क्षेत्र से राजद के प्रत्याशी सुरेंद्र यादव को 53079 वोट मिले थे. जदयू के प्रत्याशी मोहम्मद अमजद को 48441 वोट मिले. इस चुनाव में जेएमएम के प्रत्याशी बबलू रविदास को लगभग 9000 वोट मिले, इस चुनाव में बसपा से मोहम्मद सदरूद्दीन और कांग्रेस से आज़मी बारी भी प्रत्याशी थे. कांग्रेस प्रत्याशी आज़मी बारी को 2700 वोट मिले और मोहम्मद सदरूद्दीन को 1942 वोट मिले थे. इस चुनाव में मोहम्मद कैफ भी आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था.

2015 में हम पार्टी ने लड़ा चुनावः 2015 में जदयू ने महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा. इसलिए यहां बेलागंज विधानसभा सीट राजद के खाते में गई. इस चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवार डॉ सुरेंद्र प्रसाद यादव थे. एनडीए की ओर से हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा सेकुलर को यह सीट मिली थी. जिस में हम पार्टी ने बिहार सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के पूर्व एडमिनिस्ट्रेटर शारिम अली को उम्मीदवार बनाया था. इस चुनाव में सुरेंद्र यादव को 71067 वोट मिले जबकि एनडीए के प्रत्याशी शारिम अली को 40726 वोट मिले.

कुशवाहा कार्ड काम ना आयाः 2020 के चुनाव में यहां से जदयू ने अपना प्रत्याशी बदला. कुशवाहा कार्ड खेलते हुए अभय कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया. 2020 के विधानसभा चुनाव में सुरेंद्र यादव को 79708 वोट मिले, जबकि जदयू प्रत्याशी अभय कुशवाहा को 55745 वोट मिले थे. इस चुनाव में भी शारिम अली ने चुनाव लड़ा था. पिछले कई विधानसभा चुनाव में छोटी-बड़ी पार्टियों समेत आजाद उम्मीदवार के तौर पर कई मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन हर बार अल्पसंख्यक समाज के एक बड़े हिस्से का राजद को ही साथ मिला.

राजद का है मज़बूत किलाः इस बार उपचुनाव में अल्पसंख्यक प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. हालांकि जदयू ने इस बार अल्पसंख्यक समाज को टिकट नहीं दिया, बल्कि जदयू ने यादव जाति के उम्मीदवार को प्रत्याशी बनाया है. इस बार चुनावी मैदान में जन सुराज ने मोहम्मद अमजद को उतारा है. अब देखना यह होगा कि इस बार अल्पसंख्यक समाज का किस प्रत्याशी पर भरोसा होता है. 23 नवंबर को रिजल्ट आने के बाद स्पष्ट हो जाएगा कि राजद का 30 वर्षो का किला बचता है या गिर जाता है.

स्थानीय मुद्दा गौणःअल्पसंख्यक समाज के लोग क्षेत्र के मुद्दे के साथ-साथ एमवाई समीकरण को भी ध्यान में रखते हैं. स्थानीय मोहम्मद गयासुद्दीन ने कहा कि पूर्व विधायक का क्षेत्र से जुड़ाव रहा है. महागठबंधन के साथ अल्पसंख्यक समाज का जुड़ाव पहले से है. रोजगार, महंगाई और विकास की बात हो रही है, लेकिन अंतिम क्षण में कौन सा मुद्दा हावी होगा यह कहना अभी से मुश्किल है. मोहम्मद नौशाद कहना था कि चुनाव के बाद 5 साल तक कोई नजर नहीं आता, लेकिन सुरेंद्र यादव की एक खूबी है कि वह लोगों से जुड़े रहते हैं.

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