नई दिल्ली: चुनावी वर्ष में दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी ने सरकार व संगठन में बड़े बदलाव कर दिए. पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने रविवार को जिस तरह छत्रसाल स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने को लेकर मंशा जाहिर की, क्या इस चुनाव में यह मुद्दा फिर से जोड़ पकड़ेगा? इस सवाल पर चर्चा शुरू हो गई है.
दरअसल, राजनीतिक दल समय-समय पर दिल्ली को एलजी (उपराज्यपाल) के राज से मुक्ति दिलाकर जनता का शासन कायम रखने की बात करते रहे हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी अब इस मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरेगी, इसके संकेत केजरीवाल ने दे दिए हैं. दिल्ली में बीते दिनों हुए घटनाक्रम में उनकी पार्टी के नेताओं को जेल जाना पड़ा. साथ ही सरकार चलाने के लिए आए दिन एलजी से टकराव होता रहता है.
अभी दिल्ली में कानून व्यवस्था का जो हाल है, इन सबका जिक्र करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के लोगों के खिलाफ निर्णय लेने वाले उपराज्यपाल कौन होते हैं? हमें दिल्ली में जनतंत्र लेकर आना है और यह सभी लोगों का अधिकार है. उन्होंने कहा कि पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से लेकर सभी राज्यों के लोग वोट डालकर जो सरकार चुनते हैं उसके पास पूरी पावर होती है. लेकिन दिल्ली के लोगों के पास अपनी पावरफुल सरकार चुनने का अधिकार नहीं है. आज से 10-12 साल पहले कोई नहीं जानता था कि केजरीवाल कौन है? वह झुग्गियों में काम क्या करते थे. दिल्ली की जनता ने झुग्गियों से उठाकर मुख्यमंत्री बनाया, तो अब दिल्ली को पूर्ण राज्य बना कर रहेंगे. दिल्ली को एलजी राज से मुक्ति दिलाकर जनता का शासन कायम करके रहेंगे.
दशकों पुरानी है दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग
दिल्ली में इन दिनों जिस तरह आम आदमी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच में जंग चल रही है, उससे एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है कि क्या दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए? संविधान विशेषज्ञ व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव रहे एस के शर्मा के अनुसार दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग सात दशक पुरानी है. यह मांग हर पार्टी की ओर से की गई है, लेकिन सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी यह मांग लगातार उठाती रही है. वर्ष 2022 में दिल्ली विधानसभा में एक विशेष सत्र के दौरान इस पर लंबी चर्चा हुई और तब भी प्रस्ताव पारित कर किया गया था. मगर वह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में है.
उन्होंने बताया कि 29 जून 1998 को तत्कालीन दिल्ली सरकार ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मसाला तैयार कर लिया था और केंद्र सरकार से इसे पास होना था. हालांकि यह हो नहीं सका. उसके बाद की सरकारों ने इस मुद्दे पर ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. उसके बाद 15 सालों तक कांग्रेस की सरकार रही. फिर आम आदमी पार्टी सत्ता में आई तब से यह मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ है.
दिल्ली की स्वायत्तता को लेकर सवाल उठे तो बनी थी कमेटी
दिल्ली को लेकर कई किताब लिख चुके लेखक व राजनीतिक विश्लेषक जगदीश ममगाई ने बताया कि वर्ष 1911 में अंग्रेजों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई थी. तब इसमें शामिल पंजाब प्रांत के पांच जिले करनाल, रोहतक, अंबाला, हिसार और गुड़गांव को इससे अलग कर दिया गया. बाद में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 और 1935 के तहत दिल्ली को चीफ कमिश्नर का प्रोविंस बना दिया गया. जिसकी मान्यता आज के संघ शासित प्रदेश के बराबर ही है. इस तरह दिल्ली पर गवर्नर जनरल चीफ कमिश्नर के जरिए राज्य करने लगे.
आजादी से एक माह पहले जुलाई 1947 में दिल्ली की स्वायत्तता को लेकर सवाल उठे तब एक बड़ा काम हुआ. पट्टाभी सीतारमैया कमेटी स्थापित की गई, जो देश की राजधानी के तौर पर दिल्ली की स्वायत्तता और सरकार के मॉडल पर अध्ययन करने वाली थी. कमेटी ने जो सिफारिश रखी वह काफी कुछ वर्तमान दिल्ली के प्रशासन का जैसा मॉडल है, इससे मिलता जुलता है. सिफारिश में कहा गया था कि दिल्ली का प्रशासन एलजी संभालेंगे जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है. इसके साथ ही मंत्रियों का एक समूह उनकी सहायता और सलाह के लिए होगा. अगर उपराज्यपाल और मंत्री समूह में कोई मतभेद होता है तो राष्ट्रपति उसका निपटारा करेंगे. केंद्र सरकार की जिम्मेदारी होगी कि दिल्ली में सुशासन हो और वित्तीय समस्या ना हो.
दिल्ली में बनी पहली सरकार का भी हुआ था टकराव