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चुनाव से पहले केजरीवाल ने छेड़ा दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का राग, सात दशक बाद भी क्यों नहीं मिला दर्जा, जानें सब कुछ - DELHI FULL STATEHOOD STATUS

पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव से पहले दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का मुद्दा छेड़ दिया है. जानें क्या है इसकी वजह.

AAP कर रही है दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग
AAP कर रही है दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग (Etv Bharat)

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 7, 2024, 4:51 PM IST

Updated : Oct 7, 2024, 5:14 PM IST

नई दिल्ली: चुनावी वर्ष में दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी ने सरकार व संगठन में बड़े बदलाव कर दिए. पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने रविवार को जिस तरह छत्रसाल स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने को लेकर मंशा जाहिर की, क्या इस चुनाव में यह मुद्दा फिर से जोड़ पकड़ेगा? इस सवाल पर चर्चा शुरू हो गई है.

दरअसल, राजनीतिक दल समय-समय पर दिल्ली को एलजी (उपराज्यपाल) के राज से मुक्ति दिलाकर जनता का शासन कायम रखने की बात करते रहे हैं. ऐसे में आम आदमी पार्टी अब इस मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतरेगी, इसके संकेत केजरीवाल ने दे दिए हैं. दिल्ली में बीते दिनों हुए घटनाक्रम में उनकी पार्टी के नेताओं को जेल जाना पड़ा. साथ ही सरकार चलाने के लिए आए दिन एलजी से टकराव होता रहता है.

अभी दिल्ली में कानून व्यवस्था का जो हाल है, इन सबका जिक्र करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के लोगों के खिलाफ निर्णय लेने वाले उपराज्यपाल कौन होते हैं? हमें दिल्ली में जनतंत्र लेकर आना है और यह सभी लोगों का अधिकार है. उन्होंने कहा कि पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से लेकर सभी राज्यों के लोग वोट डालकर जो सरकार चुनते हैं उसके पास पूरी पावर होती है. लेकिन दिल्ली के लोगों के पास अपनी पावरफुल सरकार चुनने का अधिकार नहीं है. आज से 10-12 साल पहले कोई नहीं जानता था कि केजरीवाल कौन है? वह झुग्गियों में काम क्या करते थे. दिल्ली की जनता ने झुग्गियों से उठाकर मुख्यमंत्री बनाया, तो अब दिल्ली को पूर्ण राज्य बना कर रहेंगे. दिल्ली को एलजी राज से मुक्ति दिलाकर जनता का शासन कायम करके रहेंगे.

दशकों पुरानी है दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग

दिल्ली में इन दिनों जिस तरह आम आदमी पार्टी और केंद्र सरकार के बीच में जंग चल रही है, उससे एक बार फिर यह बहस छिड़ गई है कि क्या दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए? संविधान विशेषज्ञ व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव रहे एस के शर्मा के अनुसार दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग सात दशक पुरानी है. यह मांग हर पार्टी की ओर से की गई है, लेकिन सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी यह मांग लगातार उठाती रही है. वर्ष 2022 में दिल्ली विधानसभा में एक विशेष सत्र के दौरान इस पर लंबी चर्चा हुई और तब भी प्रस्ताव पारित कर किया गया था. मगर वह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में है.

उन्होंने बताया कि 29 जून 1998 को तत्कालीन दिल्ली सरकार ने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मसाला तैयार कर लिया था और केंद्र सरकार से इसे पास होना था. हालांकि यह हो नहीं सका. उसके बाद की सरकारों ने इस मुद्दे पर ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. उसके बाद 15 सालों तक कांग्रेस की सरकार रही. फिर आम आदमी पार्टी सत्ता में आई तब से यह मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ है.

दिल्ली की स्वायत्तता को लेकर सवाल उठे तो बनी थी कमेटी

दिल्ली को लेकर कई किताब लिख चुके लेखक व राजनीतिक विश्लेषक जगदीश ममगाई ने बताया कि वर्ष 1911 में अंग्रेजों ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई थी. तब इसमें शामिल पंजाब प्रांत के पांच जिले करनाल, रोहतक, अंबाला, हिसार और गुड़गांव को इससे अलग कर दिया गया. बाद में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1919 और 1935 के तहत दिल्ली को चीफ कमिश्नर का प्रोविंस बना दिया गया. जिसकी मान्यता आज के संघ शासित प्रदेश के बराबर ही है. इस तरह दिल्ली पर गवर्नर जनरल चीफ कमिश्नर के जरिए राज्य करने लगे.

आजादी से एक माह पहले जुलाई 1947 में दिल्ली की स्वायत्तता को लेकर सवाल उठे तब एक बड़ा काम हुआ. पट्टाभी सीतारमैया कमेटी स्थापित की गई, जो देश की राजधानी के तौर पर दिल्ली की स्वायत्तता और सरकार के मॉडल पर अध्ययन करने वाली थी. कमेटी ने जो सिफारिश रखी वह काफी कुछ वर्तमान दिल्ली के प्रशासन का जैसा मॉडल है, इससे मिलता जुलता है. सिफारिश में कहा गया था कि दिल्ली का प्रशासन एलजी संभालेंगे जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है. इसके साथ ही मंत्रियों का एक समूह उनकी सहायता और सलाह के लिए होगा. अगर उपराज्यपाल और मंत्री समूह में कोई मतभेद होता है तो राष्ट्रपति उसका निपटारा करेंगे. केंद्र सरकार की जिम्मेदारी होगी कि दिल्ली में सुशासन हो और वित्तीय समस्या ना हो.

दिल्ली में बनी पहली सरकार का भी हुआ था टकराव

संविधान विशेषज्ञ बताते हैं, संविधान निर्माता बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और जवाहरलाल नेहरू इस कमेटी की सिफारिश के खिलाफ थे. उनका मानना था कि देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में स्थानीय सरकार नहीं हो सकती. आगे चलकर संविधान में आर्टिकल 239 और 240 जोड़े गए जो दिल्ली में गवर्नेंस की कई परतें जोड़ने वाली थी. बाद में सरकार ने संशोधन किया. जिसके तहत दिल्ली में चुनी हुई सरकार शासन करेगी लेकिन कानून व्यवस्था, पुलिस, नगर निगम और जमीन केंद्र के अधीन होंगे. इस कानून के पास होने के बाद दिल्ली में आजादी के बाद 1952 में पहली बार चुनाव हुए. कांग्रेस पार्टी के चौधरी ब्रह्म प्रकाश पहले मुख्यमंत्री बने. हालांकि उस दौरान भी मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल की जगह चीफ कमिश्नर के बीच अक्सर टकराव की स्थिति बनी रहती थी. 3 साल बाद ही मुख्यमंत्री ने अपना इस्तीफा दे दिया. जिसको देखते हुए दिल्ली विधानसभा को 1956 में भंग कर दिया गया. दिल्ली केंद्र शासित राज्य बन गई और उसकी विधानसभा और चुनी हुई सरकार होने का हक छीन लिया गया.

1991 में हुए संविधान संशोधन के बाद हुए विधानसभा चुनाव

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर काफी बहस हुई. विशेष प्रावधान के तहत संविधान के 69वें संशोधन में अनुच्छेद 239 एए को संविधान में जोड़ा गया. वर्ष 1991 के 69 वें संविधान संशोधन अधिनियम ने दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र को विशेष दर्जा प्रदान किया गया. इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली नाम दिया गया तथा दिल्ली का प्रशासक उपराज्यपाल को बनाया गया. इस अधिनियम के तहत दिल्ली के लिए एक विधानसभा और मंत्रिपरिषद का गठन हुआ है. उसके बाद 1993 में दोबारा विधानसभा चुनाव कराया गया.

आम आदमी पार्टी के एजेंडे में शुरू से पूर्ण राज्य बनाने की मांग

आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार बनने से पहले 15 सालों तक लगातार कांग्रेस का राज रहा. उस दौरान दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हुई. इस मुद्दे पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन का कहना है कि केंद्र सरकार दिल्ली की सालाना विभिन्न सेवाओं पर लगभग 37 हज़ार करोड़ से अधिक रुपए खर्च करती है. यह वित्तीय बोझ दिल्ली सरकार को वहन नहीं करना पड़ता है.

दिल्ली मात्र एक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश नहीं है यह राष्ट्रीय राजधानी है, इससे दिल्ली के लोग लाभान्वित होते हैं. कांग्रेस सरकार से पहले 1993 और 1998 में मदनलाल खुराना और साहब सिंह वर्मा दिल्ली के मुख्यमंत्री थे, बीजेपी का शासन था तब पूर्ण राज्य का मुद्दा जोर पकड़ा था. लेकिन 1998 में जब उनकी सरकार नहीं बनी. उसके बाद यह मामला शांत हो गया.

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वर्ष 2015 में जब आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली विधानसभा का चुनाव जीतकर सत्ता में आई, तब पूर्ण राज्य की मांग उठने लगी. AAP की सरकार बनने के कुछ समय बाद ही गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार से भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की सेवाएं वापस ले लीं. इस कदम से दिल्ली सरकार के पास भ्रष्ट आचरण में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ किसी तरह की अनुशासनात्मक या निष्कासन कार्रवाई करने का अधिकार समाप्त हो गया. जिससे राज्य सरकार अपने आप को कमजोर मानने लगी और उन्होंने पूर्ण राज्य की मांग तभी शुरू कर दी थी.

पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने से प्रशासन का नियंत्रण पूरी तरह से राज्य सरकार के अधीन हो जाएगा. इस व्यवस्था से अधिकारियों पर पूरा नियंत्रण सरकार का होगा. दिल्ली सरकार का दावा है कि पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि पर उसका नियंत्रण नहीं होने से शहर के विकास की योजनाएं बनाने में और उसे समय सीमा के भीतर पूरा करने में वह सक्षम नहीं है. दिल्ली की कई निर्वाचित सरकारों ने पूर्ण राज्य का दर्जा न मिलने के नुकसानों का अनुभव किया. लेकिन वर्तमान में जो हालात हैं इसको देखते हुए अब चुनावी वर्ष में आम आदमी पार्टी रणनीति के तहत इस मुद्दे को जोर-जोर से उठाकर दिल्ली की जनता से वोट की अपील करेगी.

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Last Updated : Oct 7, 2024, 5:14 PM IST

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