बस्तर : विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में सोमवार को रथ परिक्रमा का समापन हो गया है. सोमवार को राजपरिवार के सदस्य कुम्हड़ाकोट जंगल से विशालकाय रथ को लाने पहुंचे. परंपरा अनुसार पूजा पाठ और नवाखाई के बाद भव्यता के साथ रथ को वापस लाया गया है. इस आखिरी रथ परिक्रमा के रस्म को "बाहर रैनी रस्म" कहा जाता है.
बाहर रैनी रस्म के साथ रथ परिक्रमा का समापन : परंपरा के अनुसार, भीतर रैनी रस्म के दौरान रविवार रात किलेपाल परघना के माड़िया जनजाति के ग्रामीण 8 पहिए वाले रथ को चुराकर कुम्हड़ाकोट जंगल ले गए थे. जिसके बाद राज परिवार के सदस्य कुम्हड़ाकोट पहुंचकर ग्रामीणों को मनाने पहुंचे और उनके साथ नए चावल से बने खीर "नवाखानी" खाया. जिसके बाद रथ को वापस शाही अंदाज में राजमहल लाया गया. इस रस्म को "बाहर रैनी रस्म" कहा जाता है. इस महत्वपूर्ण रस्म में बस्तर संभाग के असंख्य देवी देवताओं के छत्र और डोली भी शामिल किए गए.
बस्तर दशहरा में बाहर रैनी रस्म पूरी (ETV Bharat)
एक दिन पहले भीतर रैनी रस्म अदायगी की गई और आज सोमवार को बाहर रैनी रस्म पूरी की गई. शाही अंदाज में राजपरिवार सदस्य कुम्हडाकोट पहुंचते हैं. जहां पूजा पाठ करके माड़िया जनजाति के साथ नए फसल का भोज ग्रहण करते हैं. जिसके बाद चोरी किए गए विशालकाय रथ को वापस लाया जाता है. ससम्मान रथ पर सवार दंतेश्वरी देवी के क्षत्र को उतार कर दंतेश्वरी मंदिर में रखा जाता है. यह परंपरा 600 सालों से चली आ रही है और इसी रस्म के साथ रथ परिक्रमा का समापन होता है. : कमलचंद भंजदेव, सदस्य,बस्तर राजपरिवार
बस्तर दशहरा के रथ परिक्रमा का इतिहास :जानकारी के मुताबिक, बस्तर के राजा पुरषोत्तम देव को जगन्नाथपुरी से रथपति की उपाधि मिली थी. जिसके बाद बस्तर में दशहरे के अवसर पर राजा ने रथ परिक्रमा की प्रथा आरंभ की थी, जो कि आज तक अनवरत चली आ रही है. 10 दिनों तक चलने वाले रथ परिक्रमा में विजयदशमी के दिन भीतर रैनी की रस्म पूरी की जाती है. इस दौरान माड़िया जाति के ग्रामीण शहर के बीच स्थित सिरहसार भवन से आधी रात को रथ चुराकर मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुम्हड़ाकोट जगंल ले जाते हैं.
अगले दिन राजा कुम्हड़ाकोट जगंल पहुंचकर ग्रामीणों को मनाते हैं और पूजा पाठ के बाद नवाखाई भोज करते हैं. जिसके बाद रथ को भव्यता के साथ वापस राजमहल लेकर आते हैं. इसे बाहर रैनी रस्म कहा जाता है. इसी के साथ रथ परिक्रमा का समापन हो जाता है. विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा के इस आखिरी रस्म को देखने हर साल लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता है.