पटनाः 16 दिसंबर 1971 को अस्तित्व में आए बांग्लादेश ने आजादी के 52 साल पूरे कर लिए हैं. इस ऐतिहासिक दिन ने भारतीय उपमहाद्वीप का भूगोल बदला और एक नई पहचान दी. लेकिन आज, बांग्लादेश एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक चुनौतियों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर बढ़ते संकट का सामना कर रहा है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बांग्लादेश को स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित करने में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 'चाणक्य' वाली भूमिका रही थी.
जेपी और इंदिरा में नहीं थे मतभेदः आमतौर पर यह माना जाता है कि इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बीच टकराव था. लेकिन यह भी सत्य है कि 1966 से लेकर 1974 तक दोनों के बीच अच्छे रिश्ते थे. जयप्रकाश नारायण आवश्यक मुद्दों पर इंदिरा गांधी का सहयोग करते थे. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जयप्रकाश नारायण राष्ट्रीय हितों का ख्याल रखते थे. बांग्लादेश संकट के समय इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण से सहयोग मांगा था और जेपी ने भारत सरकार की मदद की थी.
क्या कहते हैं जेपी को जाननेवालेः समाजवादी चिंतक और लेखक राघव शरण शर्मा बताते हैं कि पश्चिमी पाकिस्तान के लोग बांग्लादेश के लोगों पर अत्याचार करने लगे थे. पाकिस्तान सेना ने जुल्म ढाना शुरू कर दिया. बांग्लादेशियों पर उर्दू भाषा थोपी जाने लगी, तब जाकर वहां विद्रोह जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई. शेख मुजीबुर्रहमान ने विद्रोह का नेतृत्व किया. तब जेपी ने इंदिरा गांधी से कहा था कि बीपी कोइराला के पास जो 1100 राइफल है वह बांग्लादेश पहुंचा दीजिए. जब काम हो जाए तो फिर से वापस बीपी कोइराला को लौटा देंगे.
तब दोहरी भूमिका में थे जेपीः राघव शरण बताते हैं कि इस बीच नेपाल के राजा से इंदिरा गांधी के संबंध अच्छे हो गये. बकौल राघव शरण तब इंदिरा गांधी ने राइफल लौटने से मना कर दिया. जिसके चलते इंदिरा गांधी और जेपी के बीच विवाद हो गया. राघव शरण बताते हैं कि "इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को पूरा धन दिया जिससे वो विदेश में जाकर भारत के पक्ष में माहौल तैयार किया." जयप्रकाश नारायण ने विश्व जनमत को भारत के अनुकूल करने में उसे दौर में कड़ी मेहनत की थी. भारत की ओर से जयप्रकाश नारायण को विशेष दूत बनाकर भेजा गया था.