मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर : सरकार गरीबों तक प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ पहुंचाने के बड़े-बड़े दावे कर रही है, लेकिन जमीनी सच्चाई इसके उलट है. हाल ही में जिले के कुवांरी ग्राम पंचायत, भरतपुर से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. जहां दिव्यांग चंद्रमणि के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप लग रहे हैं.
दिव्यांग से पीएम आवास योजना में धोखाधड़ी :जानकारी के मुताबिक,2018 में कुवांरी ग्राम पंचायत निवासी चंद्रमणि को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला. जैसे ही पैसा खाते में आया, उसके सपने खिल उठे कि अब उसे कच्चे मकान से मुक्ति मिलेगी. बारिश के दौरान होने वाली समस्याओं से राहत मिलेगी. लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक पाई. आरोप है कि प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत काम कर रहे आवास मित्र ने दिव्यांग चंद्रमणि के पैसा हड़प लिया.
आवास मित्र पैसे हड़पने के आरोप : चंद्रमणि ने आरोप लगाया कि आवास मित्र धर्मेंद्र ने उसे भरोसा दिलाया कि वह उसका पक्का मकान बनवाएगा. झांसे में आकर चंद्रमणि ने सारा पैसा उसे सौंप दिया. जिसके बाद धर्मेंद्र ने न तो मकान बनवाया और न ही पैसा लौटाया. इस वजह से आज चंद्रमणि फिर उसी कच्चे और टूटे-फूटे मकान में रहने को मजबूर है.
आवास मित्र पर दिव्यांग का पैसे हड़पने के आरोप (ETV Bharat)
चंद्रमणि कान से सुन नहीं सकता, इसी का फायदा उठाकर आवास मित्र ने सारा पैसा निकाल लिया और मकान नहीं बनवाया. शिकायतें कई जगह की गई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई.: बबलू, ग्राम निवासी
सवालों के घेरे में प्रशासन का रवैया : इस मामले में जिला पंचायत परियोजना उपनिदेशक नितेश कुमार उपाध्याय ने बताया कि लाभार्थी के पैसे का आहरण हो चुका है और जिओ-टैगिंग भी की गई है. लेकिन, हकीकत यह है कि आज भी चंद्रमणि अपने अधूरे मकान में रहने को मजबूर है. हालांकि, परियोजना निदेशक नितेश कुमार उपाध्याय ने आश्वासन दिया है कि यदि जांच में कोई गड़बड़ी सामने आएगी तो दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
मीडिया के माध्यम से यह जानकारी मिली है. इसे हम हम गंभीरता से लेंगे और चेक कराएंगे कि क्या कारण है कि क्यों घर नहीं बन पाया है. नियमानुसार कार्रवाई भी की जाएगी. : नितेश कुमार उपाध्याय, परियोजना उपनिदेशक, जिला पंचायत भरतपुर
मनेन्द्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर में इस तरह के केस सामने आने के बाद जिले में इस तरह और भी फर्जीवाड़ा सामने आने की संभावना बढ़ गई है, जहां अधूरे मकानों को पूरा दिखाकर जिओ-टैगिंग कर दिया गया है. इस मामले के बाद आवास मित्रों की भूमिका पर भी सवाल उठने लाजमी हैं. अब यह देखना होगा कि जांच में क्या तथ्य निकलकर सामने आते हैं और यदि गड़बड़ी साबित होती है तो कब तक ऐसे भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसी जाएगी.