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अशोक गहलोत बोले- संविधान संशोधन और इसे खत्म करने के खतरे में फर्क - GEHLOT TARGETED RAJNATH

राजनाथ सिंह के बयान पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का बयान, कहा- विपक्ष को पहले नहीं अब दबाया जा रहा.

गहलोत का बीजेपी पर पलटवार
गहलोत का बीजेपी पर पलटवार (फाइल फोटो)

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 6 hours ago

जयपुर.राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान पर पलटवार किया है. जिसमें उन्होंने कहा कि संविधान में कांग्रेस की सरकारों ने संविधान में सबसे ज्यादा बदलाव किए, ताकि विरोधियों को दबाया जा सके. इस पर अशोक गहलोत ने कहा, करीब 35 साल हो गए हैं. इस बीच कई सरकारें बदली हैं. साल 1991 के बाद या पहले भी, संविधान में संशोधन होते आए हैं. संविधान बदलने और संविधान को खत्म करने के खतरे में फर्क होता है. आज सभी क्यों कह रहे हैं कि संविधान बचाओ दिवस मना रहे हैं और संविधान को बचाने की बात कर रहे हैं.

जनता का रुख देखकर फैसला करती हैं सरकारें :गहलोत बोले, यह स्थिति क्यों बनी. पहले तो कभी ऐसा माहौल नहीं बना था. कुछ तो ऐसी बातें हुई होंगी. कुछ तो ऐसी प्रक्रिया अपनाई गई होगी, संविधान संशोधन करते समय. अगर ये लोग प्रक्रिया पूरी करते तो कई बड़े इश्यू होते हैं. जिन्हें पब्लिक डोमेन में लाना पड़ता है. राष्ट्रीय बहस होती है. उसके बाद सरकार फैसला करती है कि जनता का रुख क्या है. ये इन सब से हटकर शार्ट कट के माध्यम से कैबिनेट से पास करवाए. इसलिए जनता में अविश्वास पैदा हो गया. यही लोकसभा चुनाव में मुद्दा बन गया था. इन्होंने जो समय-समय पर ब्लंडर किए. उसके कारण इश्यू बना. अब ये बार-बार खुद ही संविधान का नाम ले रहे हैं. यह नौबत ही क्यों आई.

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संस्थाओं को कमजोर करना संविधान बदलने जैसा :गहलोत बोले, राजनाथ सिंह ने क्या कहा. पंडित नेहरू के जमाने में और उसके बाद लगातार हम देख रहे हैं कि संशोधन होते रहते हैं. इन्होंने विपक्ष को दबाने का आरोप लगाया है. यह तो इनके वक्त में ऐसी स्थिति बनी है. पहले ऐसा कभी नहीं होता था. पंडित नेहरू जैस व्यक्तित्व, वो एक महापुरुष के रूप में थे. उनके बारे में जो कमेंट करते हैं. अब उनसे क्या उम्मीद करें. संविधान कोई एक दिन में नहीं बना है. आजादी के बाद देश में महापुरुषों द्वारा जो-जो भावना प्रकट की गई. उनकी भावनाओं का निचोड़ संविधान में शामिल किया गया है. इसलिए आज जब हम कहते हैं कि लोकतंत्र खतरे में है. संविधान के तहत जो संस्थाएं बनी हुई हैं. अगर इन्हें कमजोर किया जा रहा है. दबाव में काम कर रही हैं. तो ये भी संविधान को बदलने की तरह ही है.

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