अनिकेत कृष्ण शास्त्री की बड़ी चेतावनी, कहा-राष्ट्रीय चिन्ह के साथ सरकार ना करें खिलवाड़ - Aniket Krishna Shastri
Aniket Krishna Shastri बृज बिहारी सरकार के कथावाचक अनिकेत कृष्ण शास्त्री ने गुरुवार को रायपुर में गौवंश की सुरक्षा पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि जब गाय की सुरक्षा होगी और गाय को राष्ट्र माता का दर्जा दिया जाएगा तो ऐसी स्थिति में वृषभ यानी बैल भी सुरक्षित होंगे.
अनिकेत कृष्ण शास्त्री की चुनौती (ETV Bharat Chhattisgarh)
रायपुर:बृज बिहारी सरकार के कथावाचक अनिकेत कृष्ण शास्त्री ने बताया कि हमारे राष्ट्रीय चिन्ह में चार प्रतीक दिखाई पड़ते हैं. जिसमें घोड़ा, हाथी, शेर और बैल है. शेर हाथी और घोड़ा के लिए सरकार ने कानून बनाया है. लेकिन वृषभ यानि बैल के लिए कोई कानून नहीं बना है, जबकि बैल भी हमारे राष्ट्रीय चिन्ह में शामिल है. शास्त्री ने कहा कि घोड़े हाथी और शेर को नहीं मार सकते जबकि बैलों को मारा जा रहा है. कथावाचक ने इसके लिए सरकार को चेतावनी भी दी.
1947 में देश में गायों की संख्या 78 करोड़ थी. लेकिन आज सिर्फ 17 करोड़ गाय बची है. 51 करोड़ गोवंश को मारा गया है.- अनिकेत कृष्ण शास्त्री
तिरुपति लड्डू पर अनिकेत कृष्ण: अनिकेत कृष्ण शास्त्री ने कहा कि "देश में सनातन संस्कृति को चूर चूर कर दिया गया. देश में कई ऐसे लोग है जो लहसुन प्याज खाना पसंद नहीं करते. ऐसे लोगों को प्रसाद में गौ माता की चर्बी डाल कर दी गई. लड्डू के घी में मिलाकर यह कितना बड़ा खिलवाड़ हो रहा है. हम प्रसाद को पवित्र मानते हैं. भगवान बालाजी के पवित्र प्रसाद में इस तरह की घिनौनी हरकत की गई. बावजूद इसके सरकारें मौन है. यही सबसे बड़ी लज्जा की बात है."
अनिकेत कृष्ण शास्त्री रायपुर में (ETV Bharat Chhattisgarh)
"संस्कृति पर खतरा": अनिकेत कृष्ण शास्त्री ने कहा कि 1857 में बारुद में गाय की चर्बी मिलाने के बाद मंगल पांडे ने क्रांति करवा दी थी. बारूद में चर्बी थी और इसे मुंह से छीलना था. जिसका मंगल पांडे जैसे सेनानी में पुरजोर विरोध किया.आज के राजनेता खुद को हिंदूवादी कहते हैं उसके बाद भी प्रसाद मेंं गाय की चर्बी मिलने के मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.
तिरुपति लड्डू में गाय की चर्बी मिलाने वाले आरोपियों को केंद्र सरकार फांसी पर चढ़ा दें- अनिकेत कृष्ण शास्त्री
मंदिर की व्यवस्था ब्राह्मणों को देने की मांग:अनिकेत कृष्ण शास्त्री ने कहा कि हमारे संतों और धर्माचार्यों ने ही मंदिरों को चलाया है. मंदिर की पवित्र व्यवस्था एक ब्राह्मण और एक संत से अच्छा कौन जान सकता है. क्योंकि हमने वेद को पढ़ा है. शास्त्री ने आगे कहा कि "अयोध्या राम मंदिर बनने के बाद भगवान राम की मूर्ति स्थापित होने के समय सबसे पहले विरोध शंकराचार्य जी ने किया था. क्योंकि राम का जन्म नवमी तिथि के दिन हुआ था. ऐसे में 22 जनवरी को राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति क्यों स्थापित की गई. मंदिर का शिखर पूर्ण रूप से बनने तक कोई भी मूर्ति स्थापित नहीं की जाती है. ऐसा करने पर उस मूर्ति के भीतर असुरी शक्तियां प्रवेश करती है. यह कौन जानता है. यह केवल शास्त्र को पढ़ने वाले धर्माचार्य ही जानते हैं. इसलिए सरकार को मंदिरों की व्यवस्था धर्मचार्यों के हाथों में देनी चाहिए."