अलीगढ़:अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के मुद्दे पर आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है. सर्वोच्च अदालत ने एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा है. 7 जजों की संवैधानिक बेंच ने 4-3 के बहुमत से जजमेंट पारित किया. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए 3 जजों की एक नई रेगुलर बेंच गठित कर दी है. यह बेंच अल्पसंख्यक स्टेटस को लेकर सुनवाई करेगी. इस फैक्ट की जांच-पड़ताल की जाएगी कि क्या एएमयू को अल्पसंख्यकों ने स्थापित किया था? माना जा रहा है कि रेगुलर बेंच के अंतिम फैसले के बाद ही तय हो सकेगा कि यूनिवर्सिटी के इंटरनल छात्रों को एडमिशन में 50 फीसदी आरक्षण मिलता रहेगा या नहीं?
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिनों की सुनवाई के बाद 1 फरवरी 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब फैसले की संभावना इसलिए जाहिर की जा रही है क्योंकि जिन सात जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही थी. उसमें शामिल मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं. दरअसल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संविधान पीठ ने 2006 के फैसले के बाद एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने 2019 में इस मामले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. अब दीपावली अवकाश के बाद जब कोर्ट खुला तो सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया. इसको लेकर विश्वविद्यालय में भी चर्चाएं शुरू हो गई हैं.
एएमयू और एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील डॉ. राजीव धवन और कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पेश की. वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद और सादान इंटरवेनर की ओर से उपस्थित हुए थे. केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरामिनी ने किया.