सिरमौर: चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने जिला सिरमौर के किसानों के लिए अक्तूबर महीने के प्रथम पखवाड़े में किए जाने वाले कृषि एवं पशुपालन कार्यों का ब्यौरा जारी किया है. इस विषय में कृषि वैज्ञानिकों ने जिले के किसानों को कृषि और पशुपालन को लेकर सलाह दी है, जिन्हें अपनाकर जिले के किसान आर्थिक तौर पर लाभान्वित हो सकते हैं.
गेहूं
- किसान हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों के सिंचित एवं असिंचित क्षेत्रों में अक्तूबर के पहले पखवाड़े में गेंहू की अगेती किस्म एचएस-542, एचपीडब्ल्यू-360 एवं वीएल-829 की बीजाई कर सकते हैं.
- बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
- गेहूं के बीज को बीजाई से पहले फफूंदनाशक बाविस्टिन 2.5 ग्राम या वीटावैक्स 2.5 ग्राम या रैक्सिल 1.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
चना
- अच्छे जल निकास वाली दोमट और रेतीली भूमि चने की खेती के लिए उत्तम है.
- इसकी खेती के लिए जमीन थोड़ी ढेलों वाली होनी चाहिए, जिससे जड़ों में हवा अच्छी तरह प्रवेश कर सके.
- चने की बीजाई का मुख्य समय मध्य अक्टूबर है.
- चने की उन्नत किस्मों में हिमाचल चना-1, हिमाचल चना-2, जीपीएफ-2 या एचपीजी-17 उन्नत किस्में हैं.
- छोटे व मध्यम दाने वाली किस्मों का बीज दर 40 से 45 किलोग्राम और बडे़ दाने वाली किस्मों का दर 80 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
- बीजाई से पहले बीज को फफूंदनाशक बाविस्टिन 1.5 ग्राम+थीरम 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार अवश्य करें.
- जीपीएफ-2, हिमाचल चना-2 व हिमाचल चना-1 किस्मों को लाइन में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर, जबकि एचपीजी-17 किस्मों को 50 सेंटीमीटर की दूरी पर बीजाई करनी चाहिए.
- बीज को 10-12.5 सेंटीमीटर गहरा डालें. अन्यथा कम गहरी बुआई करने पर उखेड़ा या विल्ट रोग लग सकता है.
राया (पीली सरसों)
- कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार राया तिलहनी फसल है.
- इसे निचले पर्वतीय क्षेत्रों में शुद्ध एवं गेहूं के साथ मिश्रित खेती के साथ लगाया जाता है.
- फसल को बारानी और सिंचित दोनों परिस्थितियों में उगाया जा सकता है.
- अनुमोदित किस्में: आरसीसी-4 एवं करण राई है.
- बीज की मात्रा 6 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें.
- बीजाई पंक्ति में 30 सेंटीमीटर की दूरी पर और बीज को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर डालें.
- बीजाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए.
सब्जी उत्पादन
- प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में मटर की अगेती किस्म पालम त्रिलोकी, अरकल, वीएल-7 और मटर अगेता की बीजाई करें.
- बीजाई के समय 200 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 185 किलो ग्राम इफको (12:32:16) मिश्रित खाद + म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किलोग्राम + 60 किलोग्राम यूरिया खाद प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें.
- लहसुन की सुधरी प्रजातियां जैसे जीएचसी-1 या सोलन सलेक्सन की रोपाई की जा सकती है.
- खेत तैयारी करते समय इफको (12:32:16) मिश्रित खाद 234 किलोग्राम + म्यूरेट ऑफ पोटाश 37.5 किलोग्राम एवं यूरिया 210 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेतों में अंतिम जुताई के समय डालें.
- चाईनीज बंद गोभी की पौध की रोपाई 45 एवं 30 सेंटीमीटर की दूरी पर करें.
- पालक, मेथी, धनिया, मूली, गाजर व शलजम इत्यादि की भी बीजाई इस पखवाड़े में करें.
- मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में फूलगोभी, बंदगोभी, गांठगोभी, चाईनीज बंदगोभी और ब्रॉकली की तैयार पौध की रोपाई करें.
- रोपाई के समय 250 क्विंटल गोबर की खाद के अलावा 234 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रित खाद, म्यूरेट ऑफ पोटाश 54 किलोग्राम और यूरिया 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर खेत की अंतिम जुताई के समय डालें.
- इन्हीं क्षेत्रों में पालक, मेथी, धनिया, मूली, गाजर व शलजम, कसूरी मेथी आईसी-74 और लहसुन जीएचसी-1 या एग्री फॉउफण्ड पार्वती इत्यादि की भी बीजाई करें.
- खेतों में लगी अन्य सब्जियों में निराई-गुड़ाई करते रहें.
- गुड़ाई करते समय पौधे के जड़ के पास नत्रजन 40-50 किलो ग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें.
- आलू की फसल विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में सफलतापूर्वक लगाई जा सकती है.
- तापमान व जल, आलू के उत्पादन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक हैं.
- आलू के अच्छे अंकुरण के लिए 24-25 डिग्री सेल्सियस एवं उत्पादन एवं वानस्पतिक वृद्धि के लिए 18-20 डिग्री सेल्सियस का औसत तापमान चाहिए.
- कंद निर्माण के लिए 17-20 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान चाहिए.