पटना:प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ के दौरान अर्धनारीश्वर धाम के वैष्णव किन्नरअखाड़े में किन्नर जगद्गुरू हिमांगी सखी ने अद्विका सखी को बिहार से पहले महामंडलेश्वर की उपाधि से नवाजा है. महामंडलेश्वर की उपाधि प्राप्त करने के बाद श्री श्री 1008 अद्विका सखी पटना वापस आ गई हैं और फिर अमृत स्नान के लिए 27 जनवरी को प्रयागराज के लिए प्रस्थान करेंगी.
बिहार की पहली किन्नर महामंडलेश्वर अद्विका सखी: इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि अब उनकी जिम्मेदारी बढ़ गई है और अब वह सनातन को मजबूत करने के लिए कार्य करेंगी. इसके लिए वह सबसे पहले गंगा नदी की स्वच्छता के लिए अभियान में शामिल होंगी. अद्विका सखी ने बताया कि जैसे सभी ट्रांसजेंडर लोगों की कहानी होती है वैसे ही उनकी भी कहानी है.
अद्विका सखी की रुला देने वाली कहानी: अद्विका सखी ने कहा कि घर में बेटा के रूप में पैदा हुई थी. घर में हर्षोल्लास का माहौल था, लेकिन समय के साथ जब बाद में पता चला कि वह किन्नर है तो समाज में उन्हें काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ी. सबसे अधिक प्रताड़ना उनकी मां ने झेला, उनके घर परिवार के लोगों ने उनकी मां को ताने मारे कि कैसा कोख है, जिसने किन्नर पैदा कर दिया.
''जब रिश्तेदारों को पता चला कि मैं किन्नर हूं तो मां को ताने सुनने पड़े, कैसा कोख है जिसने किन्नर पैदा कर दिया. मेरे चलने का अंदाज लड़कियों जैसा था और स्वभाव में महिला प्रवृत्ति हावी थी. मेरे दोस्त अलग-अलग नाम से ताना मारते थे और छेड़ते थे. हॉस्टल इंचार्ज से या प्रोफेसर से कंप्लेंट करने जाती तो उल्टे डांट पड़ती थी कि लड़कियों जैसा चाल ढाल क्यों रखते हो.''- अद्विका सखी, बिहार की पहली किन्नर महामंडलेश्वर
'घर छोड़ने को होना पड़ा मजबूर':उन्होंने कहा कि समाज में मर्दों को दोष नहीं दिया जाता और उनकी मां को काफी ताने सुनने पड़े. उन्होंने कहा कि कोई पुरुष महिला या किन्नर पैदा होता है तो यह नारायण की मर्जी होती है. इसमें किसी स्त्री का कोई दोष नहीं होता है. वह किन्नर है लेकिन वह भी एक इंसान है और वह भी नारायण की मर्जी से ही है. उन्होंने बताया कि कहीं ना कहीं सामाजिक स्वीकार्यता नहीं होने के कारण एक समय उन्हें घर से निकलना पड़ा और जीवन में कई उतार चढ़ाव देखने पड़े.
दसवीं तक एक लड़का के रूप में पढ़ाई:अद्विका सखी ने बताया कि अंशु कुमार से अद्विका सखी बनने के सफर में काफी संघर्ष रहे हैं. दसवीं कक्षा तक उन्होंने अंशु कुमार के नाम से पढ़ाई की. दरभंगा की मूल रूप से रहने वाली हैं लेकिन उनकी आइडेंटिटी डिस्क्लोज होने के बाद परिवार को शहर छोड़ना पड़ा. उन्होंने बताया कि दसवीं के बाद फरीदाबाद में वह मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा का पढ़ाई करने चली गई.
'हर कदम पर मां का रहा साथ': अद्विका सखी ने बताया कि एक समय ऐसा आया कि लगा कि जीवन खत्म कर लूं, लेकिन फिर उन्होंने हिम्मत किया और डिप्लोमा की पढ़ाई बीच में छोड़कर हॉस्टल से वापस घर भाग गई. इसके बाद उन्होंने बिहार में आकर अपनी सर्जरी पूरी कराई. सर्जरी पूरी करने के बाद वह एक लड़की की तरह हो गई थी और यह शरीर उन्हें काफी पसंद आ रहा था.
'5 साल से नहीं गई घर': उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी आइडेंटिटी शेयर कर दी, इसके बाद परिवार में कोहराम मच गया. बाद में उन्हें परिवार छोड़कर भागना पड़ा, लेकिन शुरू से अभी तक उनकी मां का पूरा सपोर्ट उनके साथ रहा. परिवार के लोग जाकर उनकी मां से कहते कि ट्रेन में मैंने उसे भीख मांगते देखा या कोई कहता कि सड़क किनारे उसे धंधा करते देखा. जबकि जीवन में यह दोनों काम उन्होंने कभी नहीं किया. लगभग पांच साल से वह घर नहीं गई हैं.
घर छोड़ा तो करना पड़ा मेड का काम:अद्विका सखी ने बताया कि जब वह अंशु कुमार से अद्विका चौधरी बनी थी तब घर छोड़कर अकेले दम पर जीवन के सफर में आगे बढ़ना पड़ा. 12वीं तक पढ़ी-लिखे होने के बावजूद उन्होंने नोएडा में मेड का काम किया. एक जर्मनी से लौटी हुई आंटी थी जो अपने पति से अलग होकर अपने बेटे के साथ रहने के लिए शिफ्ट हुई थी. वहां उन्हें ₹8000 मिलते थे.
'सनातन में कोई जातीय भेद नहीं':महामंडलेश्वर अद्विका सखी ने बताया कि उनका एक ही मकसद है, समाज का उत्थान हो. कैसे भारतीय संस्कृति और समाज का उत्थान हो इस दिशा में वह काम करेंगी. इसके अलावा जो किन्नर समाज है उसे सनातन परंपरा से जोड़ना है.
"किन्नर समाज के जो लोग हैं वह कहीं न कहीं पैसे कमाने के चक्कर में सनातन से दूर हो गए हैं और कई लोग उन्हें सनातन से दूर भी कर रहे हैं. इनके बीच सनातन का महत्व समझाना है कि कैसे सनातन में किसी से कोई भेद नहीं किया जाता है. सनातन परंपरा में ना कोई लैंगिक भेदभाव होता है, ना कोई जातिय भेदभाव होता है. यहां पेड़, पौधे, नदी, पशु, पक्षी और इंसान के बीच में कोई भेद नहीं होता और सबको सम्मान दिया जाता है."- अद्विका सखी, बिहार की पहली किन्नर महामंडलेश्वर