अयोध्या : 22 जनवरी को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव कार्यक्रम के बाद राम जन्मभूमि परिसर में मानो आस्था और आध्यात्म का जन सैलाब उमड़ पड़ा हो. देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन राम जन्मभूमि में दर्शन और पूजन के लिए पहुंच रहे हैं. वहीं, राम जन्मभूमि परिसर के अंदर भी 23 जनवरी से शुरू हुए मंडल उत्सव का अनुष्ठान अनवरत जारी है. उडुपी के पेजावर मठ के प्रसिद्ध संत विश्वेश प्रसन्न तीर्थ महाराज के निर्देशन में चल रहे इस मंडल उत्सव में प्रतिदिन धार्मिक अनुष्ठान के साथ प्रभु श्रीराम की पालकी यात्रा निकाली जाती है और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी होती है. ईटीवी भारत की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में आप उन अनदेखी तस्वीरों को देखेंगे जो आयोजन रामजन्म भूमि परिसर में इन दिनों प्रतिदिन हो रहे हैं.
प्रतिदिन निकाली जाती है पालकी यात्रा :आयोजन समिति से जुड़े कर्नाटक के उडुपी के पूर्व भाजपा विधायक के. रघुपति भट्ट ने बताया कि प्रतिदिन प्रभु श्री राम का मंडल उत्सव कार्यक्रम आयोजित होता है. जिसमें प्रातः काल प्रभु श्री राम की पूजा अर्चना और पुष्पांजलि कार्यक्रम से दिन की शुरुआत होती है. जिसके बाद धार्मिक अनुष्ठान प्रभु श्री राम की आरती और भोगराग के अलावा प्रतिदिन प्रभु श्री राम की प्रतिमा की पालकी यात्रा निकाली जाती है. यह यात्रा राम जन्मभूमि मंदिर की परिक्रमा करती है. वैदिक मंत्रोच्चार और वाद्य यंत्रों के साथ राम जन्म भूमि वर्ष की दो परिक्रमा की जाती है.
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से होता है मनोरंजन :आयोजनों की श्रृंखला में मंदिर प्रांगण के ही समक्ष स्थित खुले परिसर में प्रभु श्री राम के विग्रह को झूला झुलाया जाता है. प्रभु श्री राम के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है. राम भक्त श्रद्धालु दक्षिण भारतीय परंपरा से जुड़े हुए लोग प्रभु श्री राम की स्तुति गाते हैं. इसके अलावा भरतनाट्यम और कथकली जैसी नृत्य शैली से प्रभु श्री राम का मनोरंजन किया जाता है. दिन ढलने के साथ ही पुष्प वर्षा करने के बाद प्रभु श्री राम की आरती उतारी जाती है और एक ओर परिक्रमा पूरी करने के बाद प्रभु श्री राम की पालकी को राम जन्मभूमि मंदिर के अंदर प्रवेश कराया जाता है. जहां से प्रभु श्री राम के इस विग्रह को इस स्थान पर स्थापित कर दिया जाता है. यह प्रक्रिया प्रतिदिन पूरी की जाती है, जिसमें दक्षिण भारत परंपरा के साधु संत शामिल रहते हैं.